UP में कयासों के बीच क्यों है केशव प्रसाद मौर्य पर नजर, बयानों के पीछे क्या गेमप्लान
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उत्तर प्रदेश में भाजपा में क्या चल रहा है? इस पर सभी की नजरें हैं। लेकिन सबसे ज्यादा निगाहें जिस शख्स पर टिकी हैं, वह डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य हैं। वह बुधवार शाम को दिल्ली से लौटे तो बिना कुछ बोले ही एयरपोर्ट से निकल गए।फिलहाल उनके बयानों, सोशल मीडिया पोस्ट और गतिविधियों पर नजर है। 14 जुलाई को केशव प्रसाद मौर्य ने राज्य कार्यसमिति की मीटिंग में कहा था कि संगठन सरकार से बड़ा था, है और रहेगा। उनके इस बयान के मायने निकाले जा रहे हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ से उतार-चढ़ाव भरे रिश्तों का उनका इतिहास रहा है। 2017 में योगी को सीएम बनाए जाने के बाद से ही दोनों के बीच रिश्ते सहज नहीं रहे हैं।केशव प्रसाद मौर्य ने जब कार्यसमिति में कहा कि मेरे आवास 7 कालिदास मार्ग के दरवाजे हमेशा कार्यकर्ताओं के लिए खुले हैं तो इसे भी एक संकेत ही समझा गया। मौर्य ने कहा कि मैं कार्यकर्ता पहले हूं और डिप्टी सीएम बाद में हूं। माना गया कि वह संकेत देना चाहते हैं कि यदि कार्यकर्ताओं में कोई असंतोष है तो वह उनके साथ हैं। इस तरह संगठन में अपना कद बड़ा करने की कोशिश केशव प्रसाद मौर्य ने की। उनका संकेत साफ था कि वह संगठन के आदमी हैं। केशव के ये बयान लोकसभा चुनाव के बाद आए हैं, जिनमें कमजोर प्रदर्शन की वजहें पार्टी तलाश रही है।

खासतौर पर तब जब 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं। केशव प्रसाद मौर्य दिल्ली भी गए और वहां पार्टी चीफ जेपी नड्डा से मुलाकात की। इसके अलावा भूपेंद्र चौधरी भी दिल्ली पहुंचे। पीएम नरेंद्र मोदी के आवास पर भी मीटिंग हुई। पर अब तक कुछ साफ नहीं है कि क्या चर्चाएं हुईं। कयास जरूर लगातार लग रहे हैं। भाजपा को 2017 में जब यूपी की सत्ता मिली तो उसका 14 सालों का वनवास पूरा हुआ था। तब प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य था उन्हें श्रेय भी मिला कि वह पिछड़े वर्ग को भाजपा के साथ जोड़ने में सफल रहे हैं। वह 2012 में सिराथू से जीते थे और फिर 2014 में पहली बार फूलपुर लोकसभा सीट पर भाजपा का परचम लहराया।

कौशांबी, प्रतापगढ़ और प्रयागराज भी हारी है भाजपा

कौशांबी जिले को उनके प्रभाव क्षेत्र वाला माना जाता है, लेकिन वहीं की सिराथू विधानसभा से वह खुद 2022 में हार गए। यही नहीं कौशांबी की सभी 5 सीटें भाजपा ने खो दीं। तीन पर सपा और दो पर राजा भैया के जनसत्ता दल को जीत मिली। यह उनके लिए करारा झटका था। फिर 2024 के आम चुनाव में भाजपा प्रतापगढ़, कौशांबी और प्रयागराज सीटों पर हार गई। तीनों जिलों में मौर्य का असर कहा जाता है। इन नतीजों से चर्चा तेज हुई कि भाजपा को मौर्य और कुशवाहा वोट नहीं मिला है और INDIA अलायंस को समर्थन कर दिया।

लोकसभा के नतीजों पर केशव मौर्य का खेमा क्या मानता है

वहीं मौर्य कैंप का कहना है कि यह परिणाम ओबीसी नेताओं की उपेक्षा की वजह से आया है। अब जो घटनाक्रम हैं, उससे कई कयास लग रहे हैं। लेकिन एक चर्चा यह भी है कि दिल्ली में जेपी नड्डा ने मौर्य से कहा कि वह ऐसे बयान न दें, जो राज्य सरकार को असहज करते हों। फिर मौर्य ऐसा क्यों कर रहे हैं? इस सवाल का जवाब यह माना जा रहा है कि वह खुद को पार्टी में बड़े नेता के तौर पर पेश करना चाहते हैं। खुद को संगठन का आदमी बताने की कोशिश है। इसके अलावा योगी सरकार में खुद को कथित तौर पर उपेक्षित महसूस करने वाले एक वर्ग को वह साधना चाहते हैं।

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