केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को आगामी चुनावों खासकर लोकसभा चुनावों में पिछड़ी जाति के वोट परसेंट में कमी आने की आशंका घर कर रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल जाति जनगणना का दांव चल पिछड़े तबके का वोट अपने पाले में करने की कोशिशों में जुटे हैं।
बिहार की नीतीश-तेजस्वी सरकार ने इस दिशा में दो कदम आगे बढ़ा दिया है। वहां न सिर्फ जाति जनगणना हुई बल्कि उसके आंकड़ों के आधार पर 75 फीसदी तक आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मंजूरी कैबिनेट दे चुकी है।
आज बिहार विधानसभा में आरक्षण बढ़ाने का बिल भी पास हो गया है। बिल में अत्यंत पिछड़ा वर्ग को 25 फीसदी, पिछड़ा वर्ग को 18 फीसदी (कुल OBC को 43 फीसदी), अनुसूचित जाति को 20 फीसदी, अनुसूचित जन जाति को 2 फीसदी और EWS को 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है।
BJP का फोकस सिर्फ OBC सर्वे पर क्यों
यह बात सर्वविदित है कि 1990 के दशक में बिहार और उत्तर प्रदेश में जनता दल, समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों ने पिछड़ी जातियों की लामबंदी के बल पर न सिर्फ चुनाव जीता बल्कि लंबे समय तक वे सत्ता पर काबिज रहीं। बिहार में लालू-राबड़ी ने 15 वर्षों तक शासन किया, जबकि उसके बाद से नीतीश कुमार लगातार (कुछ महीनों को छोड़कर) राज्य के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। कभी बीजेपी के साथ गठबंधन कर तो कभी राजद के साथ गठबंधन कर। राजद और जदयू के गठबंधन और अब लोकसभा चुनावों के लिए INDIA महागठबंधन ने जातीय गोलबंदी को और हवा दी है।
तेजी से बदला है OBC वोटरों का मूड
कहना ना होगा कि हाल की राजनीतिक कोशिशों से पिछड़ी जातियों की गोलबंदी तेजी से हुई है, जो बीजेपी के लिए चिंता का कारण बन रही है। 2014 में जब बीजेपी केंद्र की सत्ता में आई तो उसमें भी पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की बड़ी भूमिका रही थी। 2019 के चुनावों में भी पिछड़े वर्ग ने बीजेपी का खूब साथ दिया लेकिन बिहार में जातीय गणना और गैर बीजेपी शासित राज्यों खासकर झारखंड, कर्नाटक और तमिलनाडु में बढ़ाई गई ओबीसी आरक्षण की सीमा ने फिर से पिछड़ा वर्ग को बीजेपी से दूर करना शुरू कर दिया है, जो उसके लिए बड़ी चिंता है।
10 वर्षों के आंकड़ों में देखें OBC का क्या रुख?
CSDS के आंकड़ों के मुताबिक, 2009 के चुनाव में जहां 22 फीसदी OBC मतदाताओं ने बीजेपी को वोट दिया था, वह 2014 में बढ़कर 34 और 2019 में 44 फीसदी तक पहुंच गया। कांग्रेस को 2009 में सिर्फ 24 फीसदी ओबीसी वोट मिले थे, जो 2014 और 2019 में घटकर 15-15 फीसदी रह गए। ओबीसी समुदाय ने क्षेत्रीय पार्टियों को 2009 में 54 फीसदी वोट दिए थे, जो 2014 में 51 और 2019 में घटकर 41 फीसदी रह गया।
BJP की चिंता क्या?
यह स्पष्ट है कि बीजेपी की जीत में ओबीसी वोट बैंक ने अहम भूमिका निभाई थी। इसमें बीजेपी और संघ की वह नीति सफल रही जिसके जरिए नरेंद्र मोदी को (एक पिछड़े वर्ग के नेता को) प्रधानमंत्री पद के लिए नामित किया गया था। अब, जब मोदी सरकार के 10 साल होने को हैं, तब एंटी इनकमबेंसी फैक्टर के अलावा मंडल बनाम कमंडल की लड़ाई फिर से तेज हो गई है। बीजेपी को यही चिंता है कि कहीं कमंडल पर मंडल का दांव भारी न पड़ जाए? क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी के वोट परसेंट में बड़ी गिरावट आ सकती है, जो उसे केंद्र समेत कई राज्यों की सत्ता से दूर कर सकती है। बीजेपी को 2019 में कुल 37.4 फीसदी और 2024 में 31.1 फीसदी वोट मिले थे।