INDIA अलायंस की मीटिंग के अगले ही दिन पंजाब में दरार, अकेले लड़ना चाह रही AAP
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दिल्ली में INDIA अलायंस की मंगलवार को मीटिंग हुई थी और यह सहमति बनी थी कि इसी महीने के आखिर तक सीट शेयरिंग पर सहमति बना ली जाएगी। लेकिन अगले ही दिन पंजाब में इसके उलट अलगाव की स्थिति बनती दिख रही है।

यहां सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी का कहना है कि वह सभी 13 सीटों पर अकेले ही लड़ेगी। कुछ दिन पहले ही अरविंद केजरीवाल ने भी जनता से अपील की थी कि वह आप को पंजाब की सभी 13 सीटें जिताए। अब AAP के अन्य नेता भी ऐसी ही बात कर रहे हैं। भले ही यह फाइनल नहीं है, लेकिन ‘आप’ के इस रुख को कांग्रेस पर दबाव की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है।

अहम बात यह है कि कांग्रेस भी यहां समझौते के मूड में नहीं है बल्कि वह भी सभी सीटों पर दावेदारी कर रही है। पंजाब कांग्रेस चीफ अमरिंदर राजा वड़िंग ने कहा कि पार्टी सभी 13 सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारेगी। उन्होंने कहा कि हमारी तो यही दावेदारी है, लेकिन आखिरी फैसला तो हाईकमान को ही करना है। अमरिंदर ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि कोई फैसला लेने से पहले हमसे भी सलाह दी जाएगी। बता दें कि आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल फिलहाल 10 दिनों के लिए पंजाब के होशियारपुर में विपश्यना के लिए निकले हैं।

6 राज्यों में हैं 230 सीटें, पर कांग्रेस के हाथ आएंगी कितनीं

इस दौरान अरविंद केजरीवाल राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहेंगे। INDIA अलायंस के लिए सीट शेयरिंग एक गंभीर मसला बना हुआ है। बंगाल में ममता बनर्जी तीन से ज्यादा सीटें कांग्रेस को देने के लिए तैयार नहीं हैं। वहीं बिहार में भी लगभग इतनी ही सीटें महागठबंधन में उसे मिलने की संभावना है। यूपी में अखिलेश यादव के भी तेवर सख्त हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि बंगाल से पंजाब तक कांग्रेस के हाथ लड़ने के लिए कितनी लोकसभा सीटें आती हैं। दरअसल बंगाल, बिहार, यूपी, दिल्ली, पंजाब और महाराष्ट्र में लोकसभा की कुल 230 सीटें आती हैं। ऐसे में इन राज्यों में यदि कांग्रेस का शेयर कम रहा तो फिर उसके लिए चुनाव बाद की स्थितियां कठिन होंगी।

उत्तर में सिर्फ एक राज्य में सरकार, साउथ पर कांग्रेस को ज्यादा भरोसा

फिलहाल उत्तर भारत में कांग्रेस 4 राज्यसभा सीटों वाले हिमाचल में ही सत्ता में है। इसके अलावा उसकी सरकार दक्षिण भारत के कर्नाटक और तेलंगाना में ही है। ऐसे में उसकी उम्मीदें भी उत्तर के मुकाबले साउथ इंडिया से ही अधिक हैं। तमिलनाडु में वह साथी डीएमके पर निर्भर है, लेकिन केरल में उसकी अच्छी स्थिति है। हालांकि आंध्र प्रदेश में भी उसकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।

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