हरियाणा की राजनीति में पल-पल बदलाव हो रहे हैं। सत्ताधारी भाजपा जहां अपनी सरकार को लेकर निश्चिंत नजर आ रही है, वहीं मुख्य विपक्षी कांग्रेस को अब पूर्व उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) का साथ मिलता नजर आ रहा है।
लेकिन इसमें ट्विस्ट ये आ गया है कि अब जजपा ही फूट की कगार पर जा पहुंची है। जजपा के तीन विधायकों ने कल पानीपत में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मुलाकात की थी। इनका नेतृत्व जजपा के बागी विधायक देवेंद्र बबली कर रहे हैं। 24 घंटे के अंदर ही जजपा के बागियों की संख्या छह पहुंच गई है।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि जजपा के कुल 10 में से 8 विधायक दुष्यंत चौटाला के खिलाफ हो गए हैं और पार्टी विधायक दल का नेता बदलने की तैयारी कर रहे हैं। सिर्फ दुष्यंत चौटाला और उनकी मां नैना चौटाला,जो बाढड़ा से विधायक हैं, ही जजपा में एक साथ रह गए हैं बाकी सभी एक तरफ हो गए हैं। यह स्थिति दुष्यंत चौटाला के लिए जमीन खिसकने जैसी है। एक दिन पहले ही जजपा के उपाध्यक्ष दुष्यंत चौटाला ने हरियाणा गवर्नर को चिट्ठी लिखकर तुरंत विधानसभा सत्र बुलाने और सैनी सरकार का विश्वास मत परीक्षण कराने का अनुरोध किया था।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि साढ़े चार साल से चल रही भाजपा-जजपा की जुगलबंदी अचानक टूट गई और अब सहयोगी रही भाजपा जजपा का ही वजूद संकट में डालने पर उतारू हो गई है। दरअसल, इसका बीज 2020 में ही बोया जा चुका था, जब किसानों ने केंद्र सरकार के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन शुरू किया था। जजपा को जाटों और किसानों की पार्टी समझा जाता रहा है। ओम प्रकाश चौटाला के जेल जाने और उनके बेटे अभय सिंह चौटाला के कमजोर पड़ने के बाद दुष्यंत सिंह चौटाला ने 2018 में हरियाणा विधानसभा चुनावों से पहले अपनी अलग पार्टी जननायक जनता पार्टी बनाई। तब जाटों और हरियाणा के युवाओं का उसे खूब समर्थन मिला और पार्टी ने पहले ही विधान सभा चुनाव में 10 सीटें जीत लीं।
सत्ता का लोभ और लाभ में दुष्यंत ने भाजपा के साथ चुनाव बाद गठबंधन कर लिया और मनोहर लाल खट्टर की सरकार में वह उप मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन जब किसानों की बात आई तो अंदर ही अंदर दोनों पार्टियों के बीच की गांठ खुलने लगी। जजपा को अपना वोट बैंक खिसकता नजर आ रहा था। इससे पहले कि 2024 के चुनावों से ऐन पहले जजपा कोई एक्शन ले भाजपा ने मार्च में खुद सीएम खट्टर से इस्तीफा दिलवाकर जजपा को सरकार से वंचित कर दिया और फिर नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में नई सरकार बनवा दी।
दरअसल भाजपा को यह अहसास हो चुका था कि जजपा उस पर अब बोझ है क्योंकि उससे जाट वोटर और युवा मतदाता छिटक चुके हैं। दूसरी तरफ दोनों पार्टियां परस्पर विरोधी विचारधारा की रही हैं। जजपा जहां जाटों की राजनीति करती है, वहीं भाजपा गैर जाट राजनीति करती हैं। इसलिए दोनों का एक साथ रहना मुश्किल हो रहा था। अगर दोनों एक साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ते तो उन्हें दिक्कत होती। लिहाजा भाजपा ने ऐसे मोड़ पर और ऐसे वक्त पर लाकर गठबंधन तोड़ा है कि जजपा संभलते नहीं संभल पा रही है।
ऐसे में साढ़े चार साल तक सत्ता की मलाई खाने वाले दुष्यंत अब कहीं के नहीं रह गए थे। उनकी सियासी जमीन खिसक चुकी थी क्योंकि भाजपा ने उन्हें अपनी नाव से पहले ही पैदल कर दिया था, दूसरी तरफ किसान और जाट दुष्यंत को सबक सिखाने पर अड़ चुके थे। ऐसी स्थिति में कई जगहों पर दुष्यंत चौटाला को भीड़ के गुस्से का शिकार होना पड़ा है। दुष्यंत कभी चौटाला परिवार में एकता की बात तो कभी कांग्रेस के साथ सुलह के दरवाजे तलाश रहे थे। लेकिन जब तीन निर्दलीय विधायकों ने सैनी सरकार से समर्थन वापस लेकर कांग्रेस का साथ देने का फैसला किया, तब एक बार फिर दुष्यंत को उम्मीद की किरण दिखाई दी।
दुष्यंत चौटाला ने कांग्रेस का साथ देने की तैयारी कर ली लेकिन उससे पहले ही भाजपा के चतुर खट्टर ने उसके तीन विधायकों को अपने पाले में कर लिया और अब करीब 8 विधायकों के बागी होने की रिपोर्ट से दुष्यंत चौटाला के पैरों तले जमीन खिसकती दिख रही है। वह ना ता घर के और ना ही घाट के दिखाई जान पड़ते हैं।