आगामी लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ सियासी रण का रोचक मैदान बनेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 मार्च को सपा के गढ़ में चुनावी बिगुल फूंकेंगे। भाजपा ओमप्रकाश राजभर को एनडीए में लाने के साथ कैबिनेट मंत्री भी बना चुकी है।
सियासी समीकरण साधने को घोसी सीट भी सुभासपा को दी है। अब पीएम महाराजा सुहेलदेव चिकित्सा महाविद्यालय का शुभारंभ करने के साथ जनसभा भी करेंगे। इस आयोजन से सियासी एजेंडे को धार देने की तैयारी है।
भाजपा की नजर पूर्वांचल की 2019 में हारी सीटों पर है। इन सीटों के लिए पार्टी बेहद सोची-समझी रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है। सहयोगी दलों के साथ सीटों का बंटवारा भी इसी गुणा-गणित के तहत किया गया है। जहां तक आजमगढ़ लोकसभा सीट का सवाल है तो यह सपा के प्रभाव वाली रही है। सपा के संस्थापक स्व. मुलायम सिंह यादव और पार्टी के मौजूदा मुखिया अखिलेश यादव यहां से सांसद रह चुके हैं। भाजपा 2019 में यह सीट नहीं जीत पाई थी, मगर अखिलेश यादव ने करहल से विधायक बनने के बाद यह सीट छोड़ दी थी।
पूरे पूर्वांचल पर दिखेगा असर
उपचुनाव में भाजपा ने इसे सपा से छीन तो लिया था, मगर इस बार भी यहां का चुनावी संग्राम बेहद रोमांचक रहने वाला है। भाजपा इस सीट को बरकरार रखने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती। यही कारण है कि प्रधानमंत्री रविवार को आजमगढ़ को कई चुनावी सौगात देने वाले हैं। भाजपा प्रधानमंत्री की रैली की तैयारियों में पूरे जोर-शोर से जुट गई है। आजमगढ़ में होने वाली पीएम की रैली का असर आसपास की लोकसभा सीटों सहित पूरे पूर्वांचल पर दिखेगा।
पेशबंदी में जुटे सपा-भाजपा
आजमगढ़ सीट से भाजपा ने भोजपुरी स्टार और मौजूदा सांसद दिनेश लाल यादव निरहुआ पर फिर से दांव लगाया है। सपा से खुद अखिलेश यादव के यहां से मैदान में उतरने की संभावना है। यदि ऐसा हुआ तो 2019 की तर्ज पर फिर अखिलेश और निरहुआ आमने-सामने होंगे। भाजपा और सपा दोनों ही अपना सियासी किला मजबूत करने को पेशबंदी में जुटे हैं। सपा ने जहां बसपा के कद्दावर नेता गुड्डू जमाली को पार्टी में शामिल कराया है तो वहीं भाजपा ने निजामाबाद सीट से बसपा प्रत्याशी रहे डा. पीयूष यादव को अपने पाले में वापस लिया है। पीयूष इस सीट पर करीब 44 हजार वोट लेकर भाजपा के लगभग करीब रहे थे। कई और नेताओं को भी पीएम के दौरे से पहले भाजपा में शामिल कराया गया है।