तेजी से बढ़ती आबादी अब तक कई देशों के लिए चिंता का सबब बना हुआ था। हालांकि अब आंकड़े बताते हैं कि आबादी बढ़ने की रफ्तार धीमी हो गई है। आने वाले कुछ सालों में यह रफ्तार एकदम थम जाएगी और इसके बाद आबादी घटनी शुरू हो जाएगी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक आने वाले 300 सालों में दुनियाभर की आबादी एक चौथाई तक कम हो जाएगी। यानी जो अभी 8 अरब है वह घटकर दो अरब रह जाएगी। ऐसे में जब जनसंख्या कम होगी तो इकॉनमी भी सिकुड़ेगी। दुनियाभर को ये आंकड़े टेंशन दे रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि 2050 तक दुनिया की आबादी पीक पर होगी। यह 10 अरब के आसपास हो सकती है। टेक्सास यूनिवर्सिटी के पॉपुलेशन रिसर्च सेंटर के डीन का कहना है कि आने वाली पीढ़ियां घटती हुई जनसंख्या देखेंगी। वहीं जानकारों का कहना है कि अभी दुनियाभर की टोटल फर्टिलिटी रिप्लेसमेंट (TFR) 2.1 है जो कि 2017 में घटकर 2.0 हो जाएगा। इसका मतलब है कि माता-पिता पर बच्चों की संख्या औसतन दो ही रह जाएगी। अभी यह थोड़ी ज्यादा है।
इंसानों के अस्तित्व पर खतरा?
बता दें कि बहुत सारी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का टीएफआर पहले ही 2.0 से नीचे आ चुका है। भारत का ही टीएफआर 1.8 है। इसके हिसाब से ही देशों में बुजुर्गो की संख्या भी बढ़ने लगेगी। भारत की औसत आयु फिलहाल 28 साल है। ऐसे में भारत में युवाओं आबादी ज्यादा है लेकिन 2048 तक यह बढ़कर 40 साल होने वाली है। इस हिसाब से दुनियाभर में बड़ा बदलाव शुरू हो चुका है। जो इंसानों की अस्तित्व के लिए खतरे की घंटी भी हो सकता है।
बेहद अहम होगा 2026
फिलहाल दुनियाभर का टीएफआर 2.1 है। 2026 में यह घटकर 2.0 हो जाएगा। वहीं 2081 में यह 1.4 हो सकता है। इस हिसाब से देखें तो अगले 300 सालों में दुनियाभर की आबादी सिर्फ 2 अरब रह जाएगी। 2026 एक लैंडमार्क इयर की तरह है। कई बड़े देश पहले से ही रिप्लेसमेंट लेवल से नीचे हैं। 5करोड़ की जनसंख्या से ज्यादा वाले 29 देशों में टीएफआर 2.1 से नीचे आ गया है। भारत, चीन, अमेरिका और इंडिया को जनसंख्या के हिसाब से सबसे बड़ा आंका जाता है। इनमें रिप्लेसमेंट लेवल 2.1 से कम है। बांग्लादेश और विएतनाम के टीएफआर 1.7, फ्रांस का 1.5, कोलंबिया, ईरान, यूएस और ब्राजील का 1.4, इटली का 1.0 है।