घोसी विधानसभा उपचुनाव लड़ना बसपा की राजनीतिक सूझबूझ वाला रहा या नुकसानदायक यह तो समय बताएगा, पर चुनावी परिणामों ने यह साफ कर दिया है कि मुस्लिम के साथ दलित मतदाता ने सपा के साथ जाने में परहेज नहीं किया।
बसपा सुप्रीमो मायावती हर मौके पर दलितों के साथ मुस्लिमों को साधती रहती हैं और यह बताने की कोशिश करती हैं कि भाजपा से मुकबला वही कर सकती हैं, मगर घोसी उपचुनाव के परिणाम से बसपा की मुस्लिम-दलित वोट बैंक पर पकड़ कमजोर होती दिखी। घोसी उपचुनाव परिणाम कहीं न कहीं मायावती के लिए भी संदेश गया है।
वर्ष 2022 में बसपा रही तीसरे नंबर पर
घोसी विधानसभा सीट पर 4.24 लाख से अधिक मतदाता हैं। इनमें दलित 71 हजार और मुस्लिम 86 हजार हैं। मायावती ने इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवार वसीम इकबाल पर दांव लगाया था। वसीम इस चुनाव में 54248 वोट पाकर तीसरे नंबर पर थे। इससे साफ है कि इस चुनाव में भी बसपा को मुस्लिम और दलित वोट पूरा नहीं मिला। इस चुनाव में सपा ने जीत दर्ज की थी। घोसी उपचुनाव में भी यही वोट निर्णायक साबित हुए।
बसपा से निकलने वालों ने बनाया समीकरण
घोसी विधानसभा उपचुनाव में सपा मुखिया अखिलेश ने बसपा से निकल कर साथ आने वालों को मोर्चे पर लगाया, जिससे दलित वोट बैंक को अपने पाले में लाया जा सके और लोकसभा चुनाव के लिए दिए गए पीडीए फार्मूले को सच साबित किया जा सके। देखा जाए तो अखिलेश का यह फार्मूले पर सफल होते दिखे। इस विधानसभा सीट पर दलित मतों में कोरी, पासी और सोनकर जातियां हैं। परिणाम बता रहे हैं कि कोरी और पासी जातियों ने सपा का साथ दिया।
उपचुनाव से बड़ा संकेत
देश में अगले साल लोकसभा चुनाव होना है। देश में यह चुनाव एनडीए बनाम इंडिया के बीच होने वाला है। बसपा इन दोनों गठबंधनों से अलग है। बसपा चाहती थी कि उनके कॉडर के लोग घोसी विधानसभा चुनाव के मतदान से किनारा कर लें, जिससे यह साबित हो जाए कि वो उनके साथ है। मगर ऐसा न होने से आने भविष्य के चुनावी समीकरण का संकेत भी हो सकता है।