जम्मू-कश्मीर अकेला नहीं, 62 राज्यों के पास था अपना संविधान; केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दी दलील
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जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही बहस के दौरान केंद्र सरकार ने गुरुवार को एक अहम दलील दी। केंद्र ने शीर्ष अदालत में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 370 रियासतों को भारत में मिलाने के लिए था और जम्मू-कश्मीर उन 62 राज्यों में से एक था, जिनका उस समय अपना खुद का संविधान था।

जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के सिलसिले में सुनवाई का यह 10वां दिन था।

जम्मू-कश्मीर का संविधान और अनुच्छेद 370 की प्रकृति दो प्रमुख विवादास्पद मुद्दे रहे हैं। केंद्र ने तर्क दिया कि जम्मू-कश्मीर के संविधान की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 370 का स्थायित्व, दोनों गलत धारणाएं थीं। केंद्र ने कहा कि 1939 में ब्रिटिश प्रांतों और रियासतों के ब्रिटिश भारत में विलय के दौरान 62 राज्य ऐसे थे जिनका अपना संविधान था। इस बीच, 286 राज्य अपना संविधान बनाने की प्रक्रिया में थे। केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि रीवा समेत कई रियासतों ने इस काम के लिए कई विशेषज्ञों को भी नियुक्त किया था।

उन्होंने इस संदर्भ में एक अन्य रियासत मणिपुर का उदाहरण देते हुए कहा, “ऐसी स्थिति में, यह कहना बिल्कुल गलत है कि केवल जम्मू-कश्मीर को ही विशेष संविधान या विशेष दर्जा प्राप्त था।” उन्होंने भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू का भी हवाला दिया, जिन्होंने भारत सरकार के साथ संप्रभुता के विलय के बाद कहा था, “कोई भी राजवाड़ा अलग सेना या फोर्स नहीं रख सकता है। न ही कोई टैक्स आदि वसूल सकता है।”

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ताओं में से एक ने तर्क दिया कि जम्मू और कश्मीर संविधान सभा अनुच्छेद 370 को निरस्त नहीं करना चाहती थी। इसके बजाय उन्होंने इसे जारी रखने की अनुमति दी। इसके जवाब में पांच जजों की संविधान पीठ का नेतृत्व कर रहे मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि अनुच्छेद 370 के स्व-सीमित चरित्र को देखते हुए, क्या जम्मू-कश्मीर के संविधान को “अति महत्वपूर्ण दस्तावेज” के रूप में देखा जाएगा।

इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र की ओर से अपनी दलीलें पेश करते हुए कहा, “एक बार जब भारत का संविधान लागू हुआ, तो अनुसूची I में उल्लिखित सभी राज्यों ने अपनी संप्रभुता खो दी। इसी तरह देश बनते हैं। केवल संविधान ही भारत के लोगों को संप्रभुता प्रदान करने वाला सर्वोच्च दस्तावेज बना रहा और अन्य सभी दस्तावेज इसमें समाहित कर दिए गए।” इसके बाद उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 की ओर रुख किया और कहा कि प्रत्येक रियासत को विलय के दस्तावेजों में अपने स्वयं के नियम और शर्तें रखने की अनुमति है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सुनवाई की निरंतरता बनाए रखने के लिए संविधान पीठ 28 अगस्त (सोमवार) को बैठेगी। आम तौर पर सोमवार का दिन विविध और ताजा मामलों की सुनवाई के लिए आरक्षित है। अनुच्छेद 370 और पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों-जम्मू कश्मीर, तथा लद्दाख के रूप में बांटने के जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को निरस्त करने को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं को 2019 में एक संविधान पीठ को भेजा गया था।

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