लोकसभा चुनाव 2024 के करीब आते ही सियासी सरगर्मियां तेज हो रही हैं। कहीं राजनीतिक उथल-पुथल तो कहीं पार्टी में दो फाड़ जैसी परिस्थिति बनी हुई है। सत्ता में मौजूद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार काबिज होने की कोशिश कर रही है।
बता दें जवाहरलाल नेहरू भारत के एकमात्र राजनीतिक नेता रहे जिन्होंने लगातार तीन जनादेश जीते। अगर बीजेपी 2024 में जीत हासिल करती है तो पीएम मोदी ऐसा करने वाले दूसरे प्रधानमंत्री होंगे।
दूसरी तरफ विपक्षी दलों का महा मिलाप 2024 में भाजपा को उखाड़ फेंकने और पीएम मोदी को इतिहास बनाने से रोकने के लिए समान रूप से दृढ़ हैं। वहीं महाराष्ट्र के सियासी गलियारे में हालिया उठापटक को देखते हुए 2024 के लिए नए समीकरण तलाशे जा रहे हैं। एनसीपी से बागी हुए अजित पवार महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन में शामिल हो गए हैं और राज्य के उपमुख्यमंत्री बन गए हैं। अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे भरोसेमंद सहयोगियों को खोने के बाद शरद पवार की पार्टी हाशिए पर है।
2024 से पहले भाजपा विशेष रूप से बिहार, कर्नाटक और महाराष्ट्र में कमजोर है। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा, लोक जनशक्ति पार्टी और अब अलग हो चुकी जनता दल (यूनाइटेड) ने बिहार की 40 में से 39 सीटें जीतीं। इसने कर्नाटक में 28 में से 25 सीटें जीतीं और भाजपा समर्थित एक निर्दलीय ने एक सीट जीती। महाराष्ट्र में, भाजपा और अब अलग हो चुकी शिवसेना (उद्धव ठाकरे) ने 48 में से 41 सीटें जीतीं और एक स्वतंत्र उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित की।
यहां एक समय ताकतवर रही कांग्रेस ने सिर्फ एक सीट जीती, जबकि शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा चार सीटें जीतने में सफल रही। असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन लगभग 0.7 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करने में कामयाब रही। यह दौर 2019 था और तब से राजनीतिक घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया था कि भाजपा को इन राज्यों में मजबूत प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।
हिंदी पट्टी में बीजेपी का प्रभाव पहले से ही चरम पर है और उसके लिए पूर्वोत्तर, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में अधिक सीटें जीतना मुश्किल होगा। भाजपा को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में अपनी सीटें बढ़ाने में काफी मुश्किलें आने वाली हैं।
हाल के दिनों में महाराष्ट्र की सियासत में हुए उलटफेर के मद्देनजर अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल, दिलीप कोलसे पाटिल और अन्य जैसे दिग्गजों का राकांपा से भाजपा समर्थित गठबंधन में शामिल होना 2024 में शिवसेना उद्धव गुट के इतर एक मजबूत समीकरण तैयार कर रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनसीपी को 16 फीसदी से भी कम वोट शेयर हासिल हुआ था। मान लेते हैं महाराष्ट्र में एनसीपी के मतदाता शरद पवार को सहानुभूति वोट देते हैं और लगभग 75 प्रतिशत उनके प्रति वफादार रहते हैं। फिर भी, ऐसे परिदृश्य की कल्पना करना कठिन है जहां अजित पवार गुट पारंपरिक एनसीपी वोट का एक-चौथाई वोट भी इकट्ठा नहीं कर पाएगा? एक अनुमान के मुताबिक, बिखरी हुई राकांपा राजग की झोली में चार प्रतिशत से अधिक वोट हिस्सेदारी बढ़ाएगी।