भाजपा और बसपा उतार रहीं मुस्लिम, सपा यादवों से कर रही परहेज; UP में 2024 के लिए बन रहे समीकरण
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2024 के लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे शहरी स्थानीय निकाय चुनाव बेहद अहम हो चुके हैं। सामरिक गठजोड़ से लेकर मतदान के पैटर्न पर राजनीतिक दलों की नजर बनी हुई है। निकाय चुनावों की शुरुआत उत्तर प्रदेश में गुरुवार को पहले चरण के मतदान के साथ हो रही है।

पॉलिटिकल एक्सपर्ट एपी तिवारी ने कहा, ‘यूपी निकाय चुनाव में दिलचस्प विरोधाभास देखने को मिल रहा है। जिस भाजपा को लंबे समय से मुस्लिम विरोधी के रूप में पेश किया जाता रहा है, उसने इन चुनावों में मुसलमानों के सबसे बड़े जत्थे को मैदान में उतारा है। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती ने मेयर पद की 17 सीटों के लिए 11 मुसलमानों को टिकट दिया है।’

समाजवादी पार्टी ने महापौर चुनावों में केवल एक यादव को मैदान में उतारा है। गाजियाबाद से पूनम यादव को सपा की ओर से मेयर कैंडिडेट बनाया गया है। एपी तिवारी इसे भी दिलचस्प राजनीतिक प्रयोग बताते हैं। उन्होंने कहा, ‘जहां तक ​​कांग्रेस की बात है तो उसके नेता भी काफी एक्टिव नजर आ रहे हैं। कांग्रेस नेताओं ने इन चुनावों में कुछ सीटों पर प्रचार के लिए संभवत: प्रियंका गांधी से भी संपर्क किया है। साफ है कि कांग्रेस भी इन चुनावों को हल्के में नहीं ले रही है।’ यूपी निकाय चुनाव में करीब 4.23 करोड़ मतदाता 4 और 11 मई को अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की इस बात पर पैनी नजर है कि मुस्लिम इनमें किस तरह मतदान करते हैं।

बीजेपी नेता ने कहा- चौंकाने वाले होंगे नतीजे
बीजेपी ने केवल मुस्लिम उम्मीदवारों के अपने सबसे बड़े बैच को ही मैदान में नहीं उतारा है, बल्कि इसमें अल्पसंख्यक प्रचारकों का भी शायद सबसे बड़ा जत्था है। पश्चिम यूपी में भाजपा की अल्पसंख्यक शाखा के प्रमुख जावेद मलिक को पार्टी उम्मीदवारों की जीत का भरोसा है। उन्होंने कहा, ‘ये लोग अपने समुदाय को यह याद दिलाने के लिए फील्ड में उतरे हैं कि कैसे नए ‘MY’ (मोदी-योगी) कॉम्बिनेशन ने गरीब से गरीब व्यक्ति की मदद की है। हमने इन चुनावों में 395 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। आप देखेंगे कि नतीजे कई लोगों को चौंका देंगे।’

आजमगढ़ उपचुनाव में जीत से बढ़ा BJP का हौसला
17 मेयर उम्मीदवारों में से मुस्लिम समुदाय के 11 लोगों को टिकट देने के मायावती के फैसले की सपा और कांग्रेस ने तीखी आलोचना की। इन्होंने आरोप लगाया कि यह बसपा के भाजपा की ‘बी टीम’ होने का एक और सबूत है। कहा जा रहा है कि मायावती का यह फैसला अल्पसंख्यक वोटों को भाजपा के लाभ के लिए बिखेर देगा, जैसा कि पिछले साल जून में आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में देखने को मिला था। आजमगढ़ उपचुनाव में BSP ने एक स्थानीय मुस्लिम को मैदान में उतारा था। बसपा के इस कदम को मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्र में SP की हार के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। ध्यान रहे कि सपा के पास सभी 10 विधानसभा सीटें हैं जो आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में आती हैं। भाजपा ने पिछले साल जून में मुस्लिम बहुल रामपुर लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव जीता था।

जातीय समीकरणों पर भी रहा पूरा जोर
पहले चरण की सीटों पर जहां 4 मई को मतदान होना है, वहां पार्टियां जातिगत समीकरण भी टेस्ट करती नजर आ रही हैं। गैर-मेयर सीटों के लिए 395 मुसलमानों के साथ ही भाजपा ने मेयर की सीटों के लिए उम्मीदवारों के चयन में जातियों का भी ध्यान रखा। भाजपा ने इस बार उच्च जातियों, बनिया और कायस्थ समुदायों पर खास जोर दिया है। दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी गैर-यादव OBC के साथ फिर खड़ी हुई है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 2022 के यूपी चुनावों में भी इस फॉर्मूले को अपनाया था। सपा ने मायावती के प्रति वफादार माने जाने वाले दलित मतदाताओं को भी आकर्षित करने का भी प्रयास किया है। BSP संस्थापक कांशीराम की मूर्ति का अनावरण करने के सपा प्रमुख के फैसले इससे जोड़कर देखा जा रहा है। अब यह देखना होगा कि राजनीतिक दलों के दाव-पेंच में कौन किसे मात देने में सफल रहता है।

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