सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आयुर्वेद डॉक्टर वेतन लाभ के मामले में एमबीबीएस डॉक्टरों के बराबर हैं। जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और पंकज मिथल की खंडपीठ ने कहा कि इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि दोनों श्रेणियां समान वेतन के हकदार होने के लिए समान कार्य नहीं करती हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एलोपैथी डॉक्टर आपातकालीन ड्यूटी करने में सक्षम हैं और जो ट्रॉमा देखभाल करने में भी सक्षम हैं, लेकिन आयुर्वेद डॉक्टर ऐसा नहीं कर सकते।” कोर्ट ने कहा कि आयुर्वेद डॉक्टरों के लिए जटिल सर्जरी करने वाले सर्जनों की सहायता करना संभव नहीं है, जबकि एमबीबीएस डॉक्टर ऐसा कर सकते हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा, “हमारा मतलब यह नहीं समझा जाए कि एक मेडिसिन सिस्टम दूसरे से बेहतर है। चिकित्सा विज्ञान की इन दो प्रणालियों के सापेक्ष गुणों का आकलन करना हमारा अधिकार नहीं है और न ही हमारी क्षमता के भीतर है।” पीठ ने कहा, “पोस्ट-मॉर्टम या ऑटोप्सी में आयुर्वेद डॉक्टरों की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है। शहरों/कस्बों के सामान्य अस्पतालों में बाह्य रोगी दिनों (ओपीडी) के दौरान, एमबीबीएस डॉक्टरों को सैकड़ों रोगियों की देखभाल करनी पड़ती है, जो आयुर्वेद डॉक्टरों के मामले में नहीं है।”
बता दें कि इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि मेडिसिन और सर्जरी में बैचलर ऑफ आयुर्वेद की डिग्री रखने वाले डॉक्टरों को एमबीबीएस की डिग्री रखने वाले डॉक्टरों के बराबर माना जाना चाहिए और वे टिक्कू वेतन आयोग की सिफारिश के लाभ के हकदार हैं। हालांकि शीर्ष अदालत ने इसे खारिज कर दिया है।