अगले साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता को लेकर खूब बैठकें हो रही हैं। हालांकि इन बैठकों से तेलंगाना की सत्ताधारी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) अक्सर नदारद रही है।
ज्ञात हो कि बीआरएस ने 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले एक गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी “मोर्चे” के लिए एक अभियान का नेतृत्व किया था। अब इसने कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने के संकेत दिए हैं।
क्षेत्रीय दलों पर भाजपा का दबाव
द इंडियन एक्सप्रेस ने पार्टी के शीर्ष सूत्रों के हवाले से लिखा है कि भारत राष्ट्र समिति की आपत्ति विपक्षी गठबंधन के चेहरे के रूप में राहुल गांधी को लेकर है। सूत्रों ने कहा कि अपनी स्वयं की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के बावजूद, के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली पार्टी अधिक “समावेशी रुख” अपनाने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि भाजपा और केंद्र सरकार ने क्षेत्रीय दलों पर अधिक दबाव डाला है जिसके चलते बीआरएस अपना रुख बदलने पर विचार कर रही है।
“यह अब 2019 नहीं”
रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों ने कहा, ‘जिस तरह केंद्रीय एजेंसियों को विपक्षी नेताओं और विरोध के किसी भी सुर को दबाने के लिए उतारा गया है, उससे बहुत जल्द हम पाकिस्तान बन जाएंगे। वहां जब इमरान खान सत्ता में थे तो विपक्षी नेताओं को देश छोड़कर भागना पड़ा था। जब वे सत्ता में आए तो खान अपनी जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे हैं… यह विकट स्थिति है और सभी को एक साथ आना होगा। यह अब 2019 नहीं है। हमें मतभेदों को खत्म करना होगा और देश को बचाने के लिए भाजपा को हराना प्राथमिकता बनाना होगा।’
केसीआर की बेटी और पूर्व सांसद के कविता दिल्ली शराब नीति मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच का सामना कर रही हैं। जब से पार्टी ने अपना नाम बदलकर बीआरएस रखा है तब से यह (महाराष्ट्र सहित) विभिन्न राज्यों में रैलियां और राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित कर रही है। लेकिन साथ ही तेलंगाना के अपने घरेलू मैदान पर कांग्रेस के साथ तीखी टक्कर में भी उलझी हुई है।
“कांग्रेस अपनी कमजोर राष्ट्रीय ताकत का एहसास करे”
बीआरएस का पहले नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) था। बीआरएस के सूत्रों ने कहा कि पार्टी चाहती है कि कांग्रेस अपनी कमजोर राष्ट्रीय ताकत का एहसास करे और चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए क्षेत्रीय दलों के साथ बातचीत करे। केसीआर के करीबी एक पार्टी नेता ने कहा, ‘हम बस इतना कह रहे हैं कि कांग्रेस जहां मजबूत है, उसे वहां अपना उचित हिस्सा मिलना चाहिए। लेकिन जहां अन्य क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, वहां कांग्रेस को रास्ता बनाना चाहिए। विपक्षी गठबंधन के काम करने और अंततः प्रभावी होने का यही एकमात्र तरीका है।”
नेता ने कहा कि पार्टी 2024 के लिए नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी के नैरेटिव को लेकर भी सहज नहीं है। “2019 में इसका टेस्ट हो चुका है। विपक्ष के भीतर ऐसे लोग हैं, जैसे (बिहार के सीएम) नीतीश कुमार और (पश्चिम बंगाल की सीएम) ममता बनर्जी, जिन्होंने प्रशासन का ट्रैक रिकॉर्ड साबित किया है। राहुल गांधी ने क्या हासिल किया है? वह अपनी पार्टी के आधिकारिक नेता भी नहीं हैं। न ही उनमें खुद को पीएम कैंडिडेट घोषित करने की हिम्मत है।”
“अर्थपूर्ण” गठबंधनों के लिए उत्सुक बीआरएस
एक अन्य नेता ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों की ओर इशारा करते हुए कहा कि क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए विपक्षी एकता को आकार देना चाहिए। उन्होंने कहा कि उस समय कांग्रेस ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से महत्वपूर्ण संख्या में सीटें लीं थीं और “जब वह अपने बहुमत को परिवर्तित करने में विफल रही तो उसे नुकसान पहुंचाया”। सूत्रों ने कहा कि बीआरएस “अर्थपूर्ण” गठबंधनों के लिए उत्सुक है और विपक्ष को एक साथ लाने के लिए काम करेगा। सूत्रों ने कहा कि अगले कुछ महीनों में विभिन्न पक्षों के बीच चर्चा के दौरान कई चीजों को अंतिम रूप दिया जाएगा।