10 मई को कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर शरद पवार की पार्टी एनसीपी, कांग्रेस से किनारा कर अपना हाथ आजमा सकती है। सूत्रों के मुताबिक, पवार की पार्टी कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव में कम से कम 40-45 सीटों पर चुनाव लड़ने की सोच रही है।
इतने लंबे समय तक कर्नाटक में लड़ाई भाजपा, कांग्रेस और जेडी (एस) के बीच थी लेकिन अगर एनसीपी इसमें आती है तो वोटिंग समीकरण में बदलाव की प्रबल संभावना है। पवार की पार्टी के सियासी मैदान में आने से कांग्रेस की टेंशन बढ़ जाएगी।
40 से 45 सीटों पर लड़ सकती है एनसीपी
गुरुवार को पवार दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए बैठक में बैठे थे। राहुल गांधी की मौजूदगी में सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत हुई। उसके 24 घंटे से भी कम समय के बाद, यह सुनने में आया है कि एनसीपी ने आने वाले कर्नाटक चुनाव में लड़ने का फैसला किया है। सूत्रों के मुताबिक, पवार की पार्टी कर्नाटक में 40 से 45 सीटों पर चुनाव लड़ने पर विचार कर रही है। कहने की जरूरत नहीं है कि अगर यह फैसला सही साबित होता है तो कर्नाटक में त्रिकोणीय लड़ाई चौतरफा लड़ाई होने जा रही है। लेकिन विरोधी एकता के सामने बड़ा संकट पैदा हो सकता है।
लगेगा विपक्षी एकता को झटका?
अगर पवार वास्तव में कर्नाटक में चुनाव लड़ते हैं, तो यह विपक्षी एकता के लिए एक बड़ा झटका होगा। पवार की पार्टी का कर्नाटक चुनाव लड़ने का मतलब कांग्रेस के वोट बैंक में सीधे तौर पर सेंधमारी करना है। इस बीच कांग्रेस इस बार कर्नाटक की सत्ता में वापसी के सपने देखने में लगी है। ऐसे में अगर एनसीपी का चुनाव लड़ना कांग्रेस के लिए समस्या पैदा कर सकता है।
एनसीपी नेतृत्व के एक वर्ग का दावा है कि एनसीपी का कर्नाटक में लड़ने के पीछे की मंशा कांग्रेस का वोट काटना कारण नहीं बल्कि कुछ और है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और एनसीपी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा, “हमें राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बहाल करने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे।”
क्या बढ़ेगी विपक्ष में दरार?
संयोग से, अडानी मुद्दे पर पवार की पार्टी के साथ कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के बीच मतभेद भी सामने आए। जबकि विपक्ष अडानी मामले की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) बनाने पर अड़ा हुआ था, वहीं पवार ने जेपीसी से इतर अदालत की निगरानी में जांच की मांग की। उस समय भी विपक्षी एकता में दरार आ गई थी। क्या कर्नाटक में लड़ने का फैसला ही उस दरार को बढ़ा देगा?