राहुल मामले में 16 दल एकजुट लेकिन कांग्रेस की बैसाखी पर PM बना शख्स खफा
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कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सांसदी जाने के मामले में पूरा विपक्ष एकजुट हो गया है। 16 विपक्षी दल मतभेदों को भुलाते हुए कांग्रेस के पक्ष में आ खड़े हुए हैं लेकिन एक शख्स ऐसे भी हैं जो कांग्रेस की ही बैसाखी पर देश के प्रधानमंत्री बने लेकिन राहुल गांधी की अयोग्यता के मामले में उनसे दूरी बनाए हुए हैं।

पिछले महीने 27 मार्च को जब पूरा विपक्ष संसद में काले कपड़े पहनकर हंगामा कर रहा था, तब अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस की घोर विरोधी रही तृणमूल कांग्रेस ने भी उस विरोध-प्रदर्शन में एंट्री ली लेकिन जून 1996 से अप्रैल 1997 तक कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री रहे एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर का एक भी नेता उसमें शामिल नहीं हुआ।

इधर, रविवार को पूर्व पीएम देवगौड़ा ने कांग्रेस से अपने तल्ख रिश्तों को तब जाहिर कर दिया, जब उन्होंने कर्नाटक चुनावों पर पूछे गए सवालों के जवाब में कह दिया कि कांग्रेस को पहले अपना घर बचाने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि विपक्षी दलों के पास कांग्रेस और बीजेपी के बिना भी अनेक विकल्प हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कर्नाटक चुनावों में उनकी पार्टी की जीत होगी और यह जीत 2024 के लिए राष्ट्रीय ट्यून सेट करेगी।

कांग्रेस से जेडीएस की सीधी लड़ाई:
दरअसल, कर्नाटक में अगले कुछ हफ्तों में चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस ने इस चुनाव में एकला चलने का फैसला किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया लंबे समय से कहते रहे हैं कि उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। ऐसे में करीब दो दर्जन ऐसी सीटें हैं जहां सीधा मुकाबला कांग्रेस और जेडीएस उम्मीदवारों के बीच होना है।

पिछले तीन चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो इन दोनों दलों के बीच 2008 के चुनावों में 14 सीटों पर सीधी लड़ाई हुई थी, जो 2013 में दोगुना होकर 28 हो गई और 2018 में यह 29 हो गई।

देवगौड़ा की नाराजगी की वजह क्या?
पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2018 में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी ने सत्ता खो दी थी लेकिन वोट शेयर के मामले में इसका प्रदर्शन “ऐतिहासिक” रहा था। लगभग चार दशकों में पहली बार किसी राजनीतिक दल ने अपने वोट शेयर में लंबी छलांग लगाई थी। कांग्रेस का वोट शेयर 36.59 फीसदी से बढ़कर 38.14 फीसदी हो गया था। हालांकि, 2013 के मुकाबले उसकी सीट 122 से घटकर 80 पर सिमट गई। उधर, जेडीएस को 2013 के मुकाबले 2018 में करीब दो फीसदी वोट शेयर का नुकसान हुआ। माना जाता है कि ये वोट शेयर कांग्रेस की तरफ खिसके हैं।

2023 की लड़ाई में कांग्रेस अपने वोट शेयर और सीट बढ़ाने के लिए जद्दोजहद कर रही है ताकि अपने बूते बहुमत हासिल कर फिर से सत्ता में आ सके। जाहिर है इसके लिए कांग्रेस फिर से जेडीएस के वोट बैंक में सेंधमारी करेगी।

कांग्रेस vs जेडीएस vs BJP की जंग में किसे फायदा:
कर्नाटक में सियासी लड़ाई कांग्रेस, जेडीएस और बीजेपी के बीच त्रिकोणात्मक रही है। 224 सदस्यों वाली विधानसभा के वोट शेयर डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में या तो कांग्रेस बनाम बीजेपी या कांग्रेस बनाम जेडी (एस) की लड़ाई है और कुछ सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय है।

आंकड़ों से पता चलता है कि बहुत कम सीटों पर लड़ाई बीजेपी बनाम जेडी (एस) है। 2018 में 75 सीटों पर लड़ाई त्रिकोणात्मक रही थी, जबकि उससे पहले 2013 में 105 सीटें और 2008 में 154 सीटों पर लड़ाई त्रिकोणात्मक रही थी।

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