सिंधु जल समझौता रोकने से पाकिस्तान पर कितना बड़ा असर होगा
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भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धों के बावजूद पिछले छह दशकों से सिंधु जल संधि लागू है, लेकिन पहलगाम हमले के बाद नई दिल्ली ने इसे एकतरफा तौर पर निलंबित कर दिया है. इस कदम से पाकिस्तान के लिए बड़ी जल समस्या पैदा हो सकती है.जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने बुधवार को पाकिस्तान पर पांच बड़ी कार्रवाई कीं. राष्ट्रीय सुरक्षा पर फैसला लेने वाली देश की सर्वोच्च संस्था, सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति या सीसीएस ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए जघन्य आतंकवादी हमले की जांच में सामने आए “सीमा पार संबंधों” को लेकर पाकिस्तान के खिलाफ कुछ सख्त और दंडात्मक कदम उठाए हैं. इस हमले में एक विदेशी नागरिक समेत 26 लोग मारे गए थे.बैठक में 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि को स्थगित करने का फैसला किया गया है. इसके अलावा भारत ने पाकिस्तान के साथ राजनयिक संबंधों को भी कम कर दिया है. दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग से राजनयिकों और रक्षा बलों के अधिकारियों को निष्कासित कर दिया है और पाकिस्तानी नागरिकों को दिए गए सभी वीजा रद्द कर, उन्हें 48 घंटे में भारत छोड़ने को कहा है. भारत ने अटारी चौकी को भी तत्काल प्रभाव से बंद कर कर दिया है.
पहलगाम हमला: कहां हुई सुरक्षा में चूक
बैठक के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विक्रम मिस्री ने बताया कि सिंधु जल संधि (1960) को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है. यह संधि तभी बहाल की जाएगी, जब पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करना बंद कर देगा. इसके साथ ही, विदेश मंत्रालय ने कहा कि सार्क वीजा छूट योजना (एसवीईएस) के तहत पाकिस्तानी नागरिकों को भारत की यात्रा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. पाकिस्तानी नागरिकों को पहले जारी किए गए किसी भी एसवीईएस वीजा को रद्द माना जाएगा.वहीं, नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के रक्षा, नौसेना और वायुसेना सलाहकारों को ‘अवांछित व्यक्ति’ घोषित किया गया है. उन्हें एक सप्ताह के भीतर भारत छोड़ना होगा. इसी तरह भारत भी इस्लामाबाद में स्थित अपने सैन्य सलाहकारों और पांच सहायक कर्मचारियों को वापस बुलाएगा. दोनों देशों के उच्चायोगों की कुल कर्मचारि‍यों की संख्या को 55 से घटाकर 30 किया जाएगा, जो 1 मई तक प्रभावी रहेगा.सीसीएस ने देश की समग्र सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की और सभी सुरक्षा बलों को सतर्क रहने का निर्देश दिया. समिति ने दोहराया कि इस आतंकी हमले के दोषियों को न्याय के कठघरे में लाया जाएगा और उनके संरक्षकों को भी जवाबदेह ठहराया जाएगा. जैसे भारत ने हाल ही में तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण में सफलता पाई है, वैसे ही भारत आतंक के हर सूत्रधार को पकड़ने के लिए अपने प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ेगा.
पाकिस्तान पर पानी का संकट
सिंधु जल संधि के तहत सभी नदियों को दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया था. सिंधु, झेलम और चेनाब जैसी पश्चिम की नदियां पाकिस्तान के और रावी, ब्यास और सतलुज जैसी पूर्वी नदियां भारत के हिस्से में आईं. समझौते के तहत इन नदियों के 80 प्रतिशत पानी पर पाकिस्तान का अधिकार है. यह समझौता भारत को पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत परियोजनाएं विकसित करने की भी अनुमति देता है, लेकिन इन परियोजनाओं को कड़ी शर्तों का पालन करना होगा. ये परियोजनाएं “रन-ऑफ-द-रिवर” परियोजनाएं होनी चाहिए, जिसका मतलब है कि वे जल प्रवाह या भंडारण में महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं कर सकता है, और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि निचले क्षेत्र के देश के रूप में पाकिस्तान के जल अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव ना पड़े.यह समझौता पाकिस्तान को जल प्रवाह को प्रभावित करने वाली किसी भी डिजाइन पर आपत्ति उठाने की अनुमति देता है. पाकिस्तान, जो संधि के तहत अपनी जरूरतों का लगभग 80 प्रतिशत पानी सिंधु नदी से प्राप्त करता है, इन नदियों पर काफी हद तक निर्भर है. पाकिस्तान की 80 फीसदी खेती योग्य जमीन सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है. इस पानी का करीब 90 फीसदी हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यही नहीं इससे 23 करोड़ से ज्यादा लोगों का भरण-पोषण होता है. सिंधु और उसकी सहायक नदियों से पाकिस्तान के अहम शहर कराची, लाहौर और मुल्तान निर्भर रहते हैं. पाकिस्तान के तरबेला और मंगला पॉवर प्रोजेक्ट इस नदी पर निर्भर करते हैं.इस जल समझौते के स्थगन होने से वहां खाद्य उत्पादन में गिरावट आ सकती है, जिससे लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है.पहलगाम आतंकी हमला: क्या कश्मीर में सामान्य होते हालात के लिए झटका है छह साल से अधिक समय तक भारत के सिंधु जल आयुक्त रहे हैं, कहते हैं, “अगर सरकार (भारत) ने ऐसा फैसला लिया है, तो यह समझौते को रद्द करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है” “हालांकि संधि में इसे निरस्त करने के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, लेकिन संधि के कानून पर वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 62 में पर्याप्त गुंजाइश है जिसके तहत संधि के समापन के समय मौजूद परिस्थितियों के संबंध में हुए मौलिक परिवर्तन के मद्देनजर संधि को अस्वीकृत किया जा सकता है.” चूंकि नदियां भारत से पाकिस्तान की ओर बहती हैं, इसलिए भारत के पास कई विकल्प हैं. पूर्व पाकिस्तानी राजनयिकों और विशेषज्ञों का कहना है कि नई दिल्ली द्विपक्षीय सिंधु जल संधि से एकतरफा तौर पर पीछे नहीं हट सकती, जिस पर 1960 में विश्व बैंक की गारंटी के तहत हस्ताक्षर किए गए थे.भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने एक पाकिस्तानी समाचार चैनल से बात करते हुए कहा कि सिंधु जल संधि को ना तो एकतरफा तौर पर निलंबित किया जा सकता है और ना ही खत्म किया जा सकता है.पूर्व पाकिस्तानी सांसद मुशाहिद हुसैन सैयद ने आरोप लगाया कि भारत ने पहलगाम घटना का इस्तेमाल सिंधु जल संधि को निलंबित करने के बहाने के रूप में किया क्योंकि वह “एक साजिश के तहत पाकिस्तान पर दबाव डालना चाहता है”. उन्होंने एक पाकिस्तानी समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि सिंधु जल संधि इस्लामाबाद और नई दिल्ली के बीच एक द्विपक्षीय अंतरराष्ट्रीय समझौता है और अगर मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पाकिस्तान का पानी रोकती है तो यह अंतरराष्ट्रीय उल्लंघन होगा.
क्या है सिंधु जल संधि
1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद दोनों देशों के बीच पानी पर विवाद हो गया था. 1 अप्रैल 1948 से भारत ने, अपने इलाके से होकर पाकिस्तान जाने वाली नदियों का पानी रोकना शुरू कर दिया. तब 4 मई 1948 को विवाद निपटाने के लिए एक इंटर-डोमिनियन समझौता हुआ जिसके तहत भारत को सालाना भुगतान के बदले में बेसिन के पाकिस्तानी हिस्सों को पानी उपलब्ध कराना था. हालांकि यह रास्ता स्थाई नहीं था, बस एक ऐसा तरीका था जहां से विवाद निपटाने का काम शुरू होकर और आगे जाना था.फिर आखिरकार 1951 में टेनेसी वैली अथॉरिटी और अमेरिकी परमाणु ऊर्जा आयोग दोनों के पूर्व प्रमुख डेविड लिलिएनथल ने अपने लेखन के लिए इस क्षेत्र का दौरा किया. तब उन्होंने सुझाव दिया कि भारत और पाकिस्तान को नदियों पर एक तंत्र का साथ में विकास और फिर उसका प्रबंधन देखना चाहिए. उन्होंने इसके लिए एक समझौते का सुझाव दिया. उन्होंने सुझाया कि इस समझौते पर सलाह और धन वर्ल्ड बैंक दे सकता है.यूजीन ब्लैक उस समय वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष थे. उन्होंने इस बात पर सहमति जताई. 1954 में वर्ल्ड बैंक ने दोनों देशों को एक प्रस्तावित समझौता दिया. इस पर छह साल तक कई दौर की बातचीत के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने 1960 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए

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