कन्नौज से अपना सियासी सफर शुरू करने वाले अखिलेश यादव एक बार फिर यहां से चुनावी रण में कूदने की तैयारी में हैं। यानी अखिलेश यादव के 2024 में लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा जोरों पर है।
कन्नौज को लेकर उनकी सक्रियता बता रही है कि वह भाजपा की उस रणनीति की काट ढूंढने में लगे हैं, जिसके चलते सपा प्रत्याशी डिंपल यादव पिछला लोकसभा चुनाव हार गईं। अब अखिलेश यादव इसी सीट को जीत कर पुरानी जख्मों का हिसाब लेना चाहते हैं, बल्कि इसके जरिए वह राष्ट्रीय राजनीति में भी अहम भूमिका के लिए दिखने के उत्सुक हैं। खास तौर पर तब जब कर्नाटक में कांग्रेस की जीत से विपक्षी खेमा मिशन-2024 को लेकर खासा उत्साहित है और खुद अखिलेश यादव के भी कांग्रेस को लेकर सुर बदले हुए हैं।
क्या नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी किसी और को सौंपेंगे
लोकसभा सीट जीतने की सूरत में अखिलेश यादव जब संसद जाएंगे तो सवाल है कि वह नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी किसे सौंपेंगे। वह अभी इसी पद पर रहते हुए विधानसभा में सरकार को घेरते रहे हैं। आजम खां की सदस्यता जाने के बाद अब एक स्वाभाविक उत्तराधिकारी उनके चाचा शिवपाल यादव हो सकते हैं जो पहले भी नेता प्रतिपक्ष की भूमिका प्रभावी तौर पर निभा चुके हैं।
अखिलेश पिछले आठ महीने से कन्नौज में सक्रिय हैं
अखिलेश ने पिछले साल कन्नौज में कहा था कि वह यहां से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। इसके बाद से उनके न केवल दौरे बढ़ गए बल्कि पार्टी की पूरी यूनिट वहां सक्रिय हो गई। बूथ मैनेजमेंट पर फोकस है तो अखिलेश व डिंपल कन्नौज से भावात्मक नाते की दुहाई दे रहे हैं। अखिलेश इस वक्त मैनपुरी की करहल सीट से विधायक हैं जबकि डिंपल मैनपुरी से सांसद हैं। माना जा रहा है कि वह अब मैनपुरी से ही अगला चुनाव लड़ेंगी।
मुलायम परिवार का गढ़ रही है कन्नौज
इस सीट पर यादव, मुस्लिम व दलित अच्छी तादाद में हैं लेकिन पिछली बार भाजपा ने इस समीकरण में सेंध लगा दी और सीट अपने नाम पर कर ली। इत्र की नगरी कन्नौज समाजवादियों का गढ़ रही है। कन्नौज में समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया भी सांसद रह चुके हैं। कांग्रेस भी यहां जीत चुकी है। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने इस सीट पर पहले प्रदीप यादव को तैयार कर जिताया और अगली बार मुलायम खुद यहां से सांसद बन गए। इस सीट को पूरी तरह निरापद मानते हुए उन्होंने युवा अखिलेश को पहला चुनाव 2000 में यहीं से लड़ाया। इसके बाद के तीनों संसदीय चुनाव अखिलेश ने लगातार जीत कर यहां का संसद में प्रतिनिधित्व किया। अखिलेश ने मुख्यमंत्री बनने पर जब यह सीट छोड़ी तो उन्होंने पत्नी डिंपल यादव को यहां से चुनाव लड़ाया वह भी जीत गईं। 2014 के चुनाव में डिंपल यादव ने दुबारा यहां जीत हासिल की। लेकिन अगला चुनाव भाजपा ने जीत कर सपा के अरमानों पर पानी फेर दिया।