नीतीश कुमार से अलग होने के बाद जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा अब सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की तैयारी में है।
पटना में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होने जा रही है। उसके बाद 19 जून को पार्टी के नेता महामहिम राज्यपाल से मिलकर समर्थन वापसी का पत्र सौंपेंगे।
पार्टी के नेताओं का स्पष्ट मानना है कि नीतीश कुमार के साथ रहने का अब कोई मतलब नहीं बचा।इसलिए हमें दूर हो जाना चाहिए। कार्यकारिणी की बैठक में इसी विषय पर चर्चा होगी और तौर तरीके तय किए जाएंगे। हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष सुमन ने इसकी जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि हमारे पास कई सारे विकल्प हैं। बैठक में पार्टी इस पर मंथन करेगी। सभी विकल्पों पर पार्टी के नेता बारी बारी से विचार करेंगे कि पार्टी हित और देश हित में कौन सा विकल्प अच्छा है। उसके अनुसार आगे का निर्णय लिया जाएगा कि अकेले संघर्ष करें या किसी के साथ गठबंधन करके राजनीति करेगे।
संतोष सुमन ने कहा कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद दिल्ली जाने का भी प्रोग्राम है। संस्थापक, संरक्षक और सुप्रीमो जीतन राम मांझी दिल्ली जाएंगे उनके साथ संतोष सुमन भी मौजूद होंगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बताया कि उनकी पार्टी थर्ड फ्रंट पर भी विचार कर रही है। उन्होंने बताया कि हम संघर्ष करेंगे कोई भी विकल्प पार्टी के हित और राष्ट्र हित जनहित में होगा उसे ही अपनाया जाएगा।
पिता जीतन राम मांझी को भेदिया कहे जाने पर संतोष मांझी ने नीतीश कुमार और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह पर पलटवार किया। उन्होंने कहा कि यदि आपको लग रहा था कि हम भेदिया हैं तो कह देते कि 23 जून की बैठक से आप दूर रहिए। आप के साथ हम नहीं चलेंगे। इसमें पार्टी को अपनी पार्टी में मिला लेने की बात कहां से आई। दो पार्टियों के विलय करने के बाद यह दर्शाता है कि आपके मन में कुछ गलत गलत चल रहा है।
संतोष सुमन ने कहा कि जदयू नेताओं को और खासकर ।नीतीश कुमार को लग रहा था कि छोटी पार्टियां बड़ी हो रही हैंऔर मजबूती प्राप्त कर रहे हैं। इसलिए इसे खत्म नहीं कर दिया जाए। उन्होंने सवाल किया कि जब भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा जी पटना में यही बात बोल कर गए थे जो आपको कितना बुरा लगा। आपको इतनी आपत्ति जताकर से ही अलग हो गए और राजद के साथ मिलकर सरकार बना ली।
बताते चलें कि जीतन राम मांझी की पार्टी के पास अभी चार विधायक हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ एनडीए में रहते हुए उनकी पार्टी ने चार सीटों पर जीत दर्ज किया था। चार विधायकों की समर्थन वापसी से सरकार को कोई खतरा नहीं है क्योंकि नीतीश कुमार के पास बहुमत से ज्यादा विधायकों का समर्थन है।