दुनिया में कोई भी इलाका भूकंप के खतरे से सुरक्षित नहीं है। यानी दुनियाभर में भूकंप के जोन-1 जैसी कोई जगह नहीं। वहीं, भूवैज्ञानिकों में अब यह मंथन शुरू हो गया है कि क्या देश में भूकंपीय जोन के पुनर्निर्धारण का समय आ गया है।
इसकी वजह पिछले 10 दिनों में आए भूकंप का एक छोटा व तीन बड़े झटके हैं। भूवैज्ञानिक इस संभावना को लेकर चिंतित हैं कि क्या भूकंप का केंद्र भारत के मैदानी इलाकों की तरफ खिसक रहा है।
गत चार नवंबर को नेपाल में 6.4 तीव्रता का भूकंप आया था। रात तकरीबन 12 बजे दिल्ली-एनसीआर से लेकर काशी और बिहार तक हिल गए थे। 5 नवंबर, अगली सुबह भी 3.4 तीव्रता के झटके नेपाल स्थित उसी केंद्र से आए। फिर 6 और 11 नवंबर को भी दिल्ली-एनसीआर के इलाकों में भूकंप के झटके महसूस किए गए। इनकी धमक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भी महसूस हुई। भूकंप के इन लगातार झटकों को भूवैज्ञानिक कई रूपों में देख रहे हैं।
बीएचयू के भूविज्ञानी डॉ. संदीप अरोड़ा ने बताया कि इन केसों को तकनीकी सफलता भी मानना चाहिए। हिमालय के क्षेत्रों में स्थापित केंद्र अब हल्के से हल्के झटके की भी सूचना जारी कर रहे हैं। आईएमडी और भूकंप एप के जरिए यह जानकारी जनता तक पहुंच रही है। पहले ऐसे हल्के झटकों की रिपोर्टिंग नहीं हो पाती थी। इसका दूसरा पहलू थोड़ा चिंताजनक है। यह कि भूकंप का केंद्र बदल रहा है। ऐसे में भारतीय इलाकों में भविष्य में भी भूकंप के बड़े झटके आ सकते हैं। देशभर के भूविज्ञानी इसके अध्ययन में जुटे हुए हैं।
देश में चेतावनी का सिस्टम तैयार
दुनिया में भूकंप की भविष्यवाणी की तकनीक कहीं नहीं है। मगर देश में इसकी चेतावनी का सिस्टम तैयार है। इसे अर्ली वॉर्निंग सिस्टम कहा जाता है। यह 30 से 40 सेकेंड पहले भूकंप की चेतावनी दे सकता है। इतने कम समय में जनता तक सूचना दे पाना तो संभव नहीं मगर मेट्रो, रेलवे, न्यूक्लियर प्लांट आदि के लिए यह तंत्र काफी कारगर है।
इंडियन और यूरेशियन प्लेटें जिम्मेदार
भारत व आसपास के क्षेत्रों में भूकंप के लिए इंडियन और यूरेशियन टेक्टॉनिक प्लेटों का घर्षण जिम्मेदार है। जमीन के काफी नीचे सरकती हुई ये प्लेटें आपस में टकराती हैं। इस घर्षण का असर हिमालय के अलावा अंडमान-निकोबार के क्षेत्र में ज्यादा होता है। इसलिए उस इलाके को जोन-5 में रखा गया है। दिल्ली एनसीआर, उत्तर प्रदेश और बिहार के इलाके जोन-3 में हैं।