हेट स्पीच मामले में आजम खान हुए बरी, लेकिन फिर भी वापस नहीं मिलेगी विधायकी; क्या है वजह?
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हेड स्पीच मामले में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आजम खां बुधवार को सेशन कोर्ट ने बरी कर दिया है। कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया। यह व्यक्तिगत तौर पर भले ही आजम खां के लिए बड़ी राहत भरी खबर है लेकिन, कानूनी तौर पर उनकी छिनी हुई विधायकी वापस नहीं मिल सकेगी।

वह मुरादाबाद के छजलैट प्रकरण में भी दो साल के सजायाफ्ता हैं। ऐसे में वह अभी आगे छह साल तक चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे।

कानूनी जानकारों की मानें तो पूर्व में जब किसी भी सांसद, विधायक को सजा हो जाती थी तो वह अपील में चले जाते थे और कोर्ट में केस चलने के चलते उनकी सदस्यता बरकरार रहती थी। ऐसे में वह अपना बचा हुआ कार्यकाल भी पूरा कर लेते थे लेकिन, अब ऐसा नहीं है। जिला शासकीय अधिवक्ता राजस्व अजय तिवारी बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग है कि जनप्रतिनिधि यदि किसी भी अदालत से दो या इससे अधिक साल की सजा से दंडित किया जाता है तो उसकी सदन की सदस्यता समाप्त हो जाएगी। निर्वाचन आयोग छह साल या इससे अधिक के लिए उस जनप्रतिनिधि के चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा सकता है।

उन्होंने बताया किनआजम खां के सेशन कोर्ट से बरी होने के बावजूद उन्हें वापस विधानसभा की सदस्यता नहीं मिल सकती। हां, यदि संबंधित सीट पर निर्वाचन प्रक्रिया पूरी नहीं होती तो राहत मिल सकती थी, लेकिन आजम खां के केस में ऐसा भी नहीं है। यहां निर्वाचन की प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी है, आकाश सक्सेना शहर विधायक चुने जा चुके हैं। वहीं, आजम खां एक अन्य केस में मुरादाबाद से सजायाफ्ता हैं।

मालूम हो कि 15 साल पुराने छजलैट प्रकरण में सपा नेता आजम खां और उनके बेटे सपा विधायक रहे अब्दुल्ला आजम को मुरादाबाद की एमपी-एमएलए कोर्ट ने 14 फरवरी को दो-दो साल की सजा सुनाई थी। दोनों पर तीन-तीन हजार रुपये जुर्माना भी लगाया था। छजलैट प्रकरण में सजा सुनाए जाने के कारण ही स्वार से सपा विधायक रहे अब्दुल्ला आजम की भी विधानसभा सदस्यता समाप्त हो गई थी। वह भी इस प्रकरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए हुए हैं।

शहर विधायक आकाश सक्सेना ने बताया, कोर्ट के निर्णय पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे और करना भी नहीं चाहिए, निर्णय की कॉपी मिलेगी, उसका अध्ययन किया जाएगा। सरकार इसमें आगे न्यायिक व्यवस्था के तहत निर्णय लेगी। रही बात विधायकी की तो आजम खां छजलैट प्रकरण में भी सजायाफ्ता हैं। साथ ही इस तरह के केस में सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट गाइड लाइन है कि किसी भी न्यायालय से दो साल या इससे अधिक की सजा होते ही संबंधित की सदस्यता उसी वक्त चली जाएगी। यदि कोई उच्च अदालत से बरी भी हो जाता है तो भी उसकी सदस्यता को वापस नहीं किया जा सकता।

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