हाईकोर्ट को देना चाहिए कुछ वक्त, सुप्रीम कोर्ट ने 3 जजों के पास भेजी सीतलवाड़ की याचिका
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सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड को सुप्रीम कोर्ट से भी मायूसी हाथ लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने सीतलवाड की जमानत याचिका को तीन जजों वाली बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति पीके मिश्रा की पीठ इस बात पर सहमत नहीं हो पाई कि सीतलवाड़ को राहत दी जाए या नहीं।

न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति पीके मिश्रा ने अपने फैसले में कहा- सीतलवाड़ को अंतरिम सुरक्षा देने के सवाल पर हमारे बीच असहमति है। इसलिए हम मुख्य न्यायाधीश से इस मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपने का अनुरोध करते हैं। इसके साथ ही पीठ ने मामले को बड़ी बेंच के लिए रेफर कर दिया।

अब इस मामले को सीजेआई के समक्ष रखा जाएगा ताकि सुनवाई के लिए उचित पीठ का गठन किया जाए।इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट ने सीतलवाड़ की नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने उन्हें तत्काल आत्मसमर्पण करने के निर्देश दिए थे। सीतलवाड़ ने गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने सीतलवाड को अंतरिम जमानत देने पर असहमति जताई। पीठ ने सीतलवाड़ की अर्जी बड़ी पीठ के समक्ष रखने के निर्देश दिए। इसके साथ ही मामले को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के पास भेज दिया। न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति पीके मिश्रा की दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि 2002 के गुजरात दंगों के मामले में आत्मसमर्पण करने से पहले सीतलवाड को गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा कुछ समय दिया जाना चाहिए।

तीस्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों और आदेश का हवाला देते हुए राहत की गुहार लगाई। इस पर सर्वोच्च अदालत ने कहा कि हमें आदेश को पढ़ना पड़ेगा। इस पर तीस्ता के वकील ने कहा कि उनकी मुवक्किल को सरेंडर करना पड़ सकता है। ऐसा नहीं किया तो उनकी गिरफ्तारी हो जाएगी। क्योंकि गुजरात हाईकोर्ट ने सीतलवाड़ को तत्काल आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है। इस पर न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि यदि मामले की सुनवाई मंगलवार को हुई तब भी कोई आसमान नहीं गिरने वाला है।

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति निर्झर देसाई की अदालत ने 2002 के गोधराकांड के बाद हुए दंगों में ‘निर्दोष लोगों’ को फंसाने के लिए साक्ष्य गढ़ने से जुड़े एक मामले में सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि सीतलवाड़ ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने और तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि धूमिल कर उन्हें जेल भेजने की कोशिश की थी। इसके साथ ही अदालत ने सीतलवाड़ की जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा कि उनकी रिहाई से गलत संदेश जाएगा कि लोकतांत्रिक देश में सब कुछ उदारता होता है।

इसके साथ ही गुजरात हाईकोर्ट ने अंतरिम जमानत पर बाहर चल रहीं सीतलवाड़ को तत्काल सरेंडर करने के निर्देश दिए। इसके बाद सीतलवाड़ के वकील ने 30 दिन तक आदेश के अमल पर रोक लगाने की गुजारिश की लेकिन अदालत ने उनके अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया। अहमदाबाद पुलिस की अपराध शाखा द्वारा दर्ज एक मामले में सीतलवाड़ को पिछले साल 25 जून को गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के साथ गिरफ्तार किया था। सीतलवाड़ एवं अन्य पर गुजरात दंगों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए फर्जी सबूत गढ़ने के आरोप हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सीतलवाड़ को दो सितंबर 2022 को अंतरिम जमानत दी थी।

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