स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा महासचिव पद से दिया इस्तीफा, अपनी ही पार्टी से क्यों हुए नाराज
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अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपने इस्तीफे के साथ ही अखिलेश यादव के नाम लंबा चौड़ा लेटर भी लिखा है।

फिलहाल वह सपा एमएलसी बने रहेंगे। उन्होंने इस्तीफे में लिखा कि पद के बिना भी पार्टी को सशक्त बनाने के लिए मैं तत्पर रहूंगा। स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ पिछले कुछ दिनों से सपा में ही आवाज मुखर हो रही थी। इसकी चर्चा भी अपने इस्तीफे में स्वामी प्रसाद मौर्य ने की है। उन्होंने कुछ नेताओं को छुटभैया कहा तो कुछ वरिष्ठ नेताओं पर निशाना साधा है। उन्होंने अखिलेश यादव को संबोधित लेटर में विस्तार से अपनी बातों को लिखा है।

स्वामी प्रसाद ने लिखा कि जबसे मैं समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हुआ, लगातार जनाधार बढ़ाने की कोशिश की। सपा में शामिल होने के दिन ही मैंने नारा दिया था “पच्चासी तो हमारा है, 15 में भी बंटवारा है।” हमारे महापुरूषों ने भी इसी तरह की लाइन खींची थी। भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” की बात की तो डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा कि “सोशलिस्टो ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावै सो में साठ”, शहीद जगदेव बाबू कुशवाहा व मा. रामस्वरूप वर्मा जी ने कहा था “अस्सी में नब्बे शोषित हैं, नब्बे भाग हमारा है”, इसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन के महानायक कांशीराम साहब का भी वही था नारा “85 बनाम 15 का”। लेकिन पार्टी द्वारा लगातार इस नारे को निष्प्रभावी करने की कोशिश हुई।

विधानसभा चुनाव में जनाधार बढ़ाया

स्वामी प्रसाद ने लिखा कि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सैकड़ो प्रत्याशियों का पर्चा व सिंबल दाखिल होने के बाद अचानक प्रत्याशियों के बदलने के बावजूद भी पार्टी का जनाधार बढ़ाने में सफल रहे। उसी का परिणाम था कि सपा के पास जहां मात्र 45 विधायक थे वहीं पर विधानसभा चुनाव 2022 के बाद यह संख्या 110 विधायकों की हो गई थी। बिना किसी मांग के आपने मुझे विधान परिषद में भेजा और ठीक इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव बनाया, इस सम्मान के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।

मेरे सुझावों को नहीं माना गया

स्वामी प्रसाद ने कहा कि पार्टी को ठोस जनाधार देने के लिए जनवरी-फरवरी 2023 में मैंने आपके पास सुझाव रखा कि जातिवार जनगणना कराने, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ो के आरक्षण को बचाने, बेरोजगारी व बढ़ी हुई महंगाई, किसानों की समस्याओं व लाभकारी मूल्य दिलाने, लोकतंत्र व संविधान को बचाने, देश की राष्ट्रीय संपत्तियों को निजी हाथ में बेचे जाने के विरोध में प्रदेश व्यापी भ्रमण कार्यक्रम हेतु रथ यात्रा निकालने का प्रस्ताव रखा था, जिस पर आपने सहमति देते हुए कहा था कि होली के बाद इस यात्रा को निकाला जायेगा। आश्वासन के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया। नेतृत्व की मंशा के अनुरूप मैंने पुनः कहना उचित नहीं समझा।

कुछ नेता भाजपामय हो गए

स्वामी प्रसाद ने कहा कि पार्टी का जनाधार बढ़ाने का क्रम मैंने अपने तौर-तरीके से जारी रखा, इसी क्रम में मैंने आदिवासियों, दलितों व पिछड़ो को जो जाने-अनजाने भाजपा के मकड़जाल में फंसकर भाजपा मय हो गए थे उनके सम्मान व स्वाभिमान को जगाकर व सावधान कर वापस लाने की कोशिश की तो पार्टी के ही कुछ छुटभईये व कुछ बड़े नेता “मौर्य जी का निजी बयान है” कहकर इस धार को कुंठित करने की कोशिश की, मैंने अन्यथा नहीं लिया।

अपने बयानों का भी किया बचाव

स्वामी प्रसाद ने लिखा कि मैंने ढोंग-ढकोसला, पाखंड व आडंबर पर प्रहार किया तो भी यही लोग फिर इसी प्रकार की बात कहते नजर आये, हमें इसका भी मलाल नहीं, क्योंकि मैं तो भारतीय संविधान के निर्देश के क्रम में लोगों को वैज्ञानिक सोच के साथ खड़ा कर लोगों को सपा से जोड़ने की अभियान में लगा रहा, यहाँ तक कि इसी अभियान के दौरान, मुझे गोली मारने, हत्या कर देने, तलवार से सिर कलम करने, जीभ काटने, नाक-कान काटने, हाथ काटने आदि-आदि लगभग दो दर्जन धमकियाँ व हत्या के लिए 51 करोड़, 51 लाख, 21 लाख, 11 लाख, 10 लाख आदि भिन्न-भिन्न रकम देने की सुपारी भी दी गई, अनेको बार जानलेवा हमले भी हुए, यह बात दीगर है कि प्रत्येक बार में बाल-बाल बचता चला गया। उल्टे सत्ताधारियों द्वारा मेरे खिलाफ अनेको एफआईआर भी दर्ज कराई गई किंतु अपनी सुरक्षा की बिना चिंता किये हुए मैं अपने अभियान में निरंतर चलता रहा।

हैरानी तो तब हुई जब पार्टी के वरिष्ठतम नेता चुप रहने के बजाय मौर्य जी का निजी बयान कह करके कार्यकर्त्ताओं के हौसले को तोड़ने की कोशिश की, मैं नहीं समझ पाया एक राष्ट्रीय महासचिव मैं हूँ, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव व नेता ऐसे भी हैं जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है, एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है।

दूसरी हैरानी यह है कि मेरे इस प्रयास से आदिवासियों, दलितों, पिछड़ो का रुझान समाजवादी पार्टी के तरफ बढ़ा है। बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का प्रयास व वक्तव्य पार्टी का न होकर निजी कैसे? यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है, तो मैं समझता हूँ ऐसे भेदभाव पूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। इसलिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से मैं त्यागपत्र दे रहा हूँ, कृपया इसे स्वीकार करें।

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