सूरज के गहरे राज खोलेगा इसरो, जानें कहां तक जाएगा आदित्य-एल1
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) दो सितंबर को आदित्य एल-1 के प्रक्षेपण की तैयारी कर रहा है। इस मिशन में गोरखपुर के प्रो. दुर्गेश त्रिपाठी भी शामिल हैं।

इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए) पुणे में सोलर फिजिक्स के वैज्ञानिक प्रो. दुर्गेश की टीम ने ही सैटेलाइट में लगने वाला प्रमुख टेलीस्कोप तैयार किया है। इस सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप के माध्यम से इसरो सूर्य का अध्ययन करेगा।

प्रो. दुर्गेश त्रिपाठी ने आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से फोन पर हुई बातचीत में बताया कि मिशन आदित्य एल-1 में कुल सात पेलोड (इंस्ट्रूमेंट) भी अंतरिक्ष यान के साथ भेजे जाएंगे, जिनकी मदद से सूर्य का अध्ययन किया जाएगा। इनमें प्रमुख पेलोड सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप का निर्माण आयुका पुणे में प्रो. दुर्गेश व प्रो. एएन रामप्रकाश की टीम ने किया है। उन्होंने बताया कि टेलीस्कोप के निर्माण में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स बेंगलुरु ने भी सहयोग किया है। शेष छह पेलोड देश की अन्य प्रतिष्ठित संस्थाओं ने तैयार किए हैं।

अंतरिक्ष यान और रॉकेट का निर्माण इसरो ने किया है। किसी भी पेलोड या अंतरिक्ष यान में जरा भी खराबी आयी तो ठीक करना मुश्किल होगा। ऐसे में स्पेस में आने वाली हर तरह की संभावित दिक्कतों का अध्ययन करने के बाद उनसे निपटने में सक्षम पेलोड व अंतरिक्ष यान तैयार किया गया है।

त्रिशंकु की तरह धरती से 15 लाख किमी ऊपर लटका रहेगा
आदित्य एल-1
प्रो. दुर्गेश ने बताया कि अंतरिक्ष यान धरती से 15 लाख किमी ऊपर ऐसी जगह स्थापित होगा, जहां सूर्य व धरती का गुरुत्वाकर्षण एक ही बराबर है। भारत में प्रचलित प्राचीन कथाओं के अनुसार यह कमोबेस वही जगह होगी, जहां त्रिशंकु को भेजा गया था। यह सैटेलाइट वहीं रह कर सूर्य के अध्ययन के लिए इसरो को डाटा भेजेगा।

ऐसे पड़ा मिशन का नाम आदित्य एल-1

प्रो. दुर्गेश ने बताया कि आदित्य यानि सूर्य। एल, लेंगरेंज नाम के उस वैज्ञानिक के नाम पर है, जिन्होंने इस जगह की खोज की थी। स्पेस में सूर्य व धरती के बीच समान गुरुत्वाकर्षण वाली ऐसी पांच जगहों की अब तक खोज हो पायी है। इनमें पहले प्वाइंट पर इसरो का अंतरिक्ष यान भेजा जाएगा। इस तरह मिशन का पूरा नाम आदित्य एल-1 पड़ा। मिशन सफल होने के बाद भारत दुनिया का ऐसा तीसरा देश बनेगा, जिसने अपने अंतरिक्ष यान को सूर्य व धरती के बीच स्थापित किया है। इससे पहले अमेरिका व यूरोपियन देशों के संयुक्त अभियान में वहां सैटेलाइट भेजा गया था।

खजनी के बदरा गांव के निवासी हैं प्रो. दुर्गेश

प्रो. दुर्गेश त्रिपाठी गोरखपुर में खजनी के बदरा गांव के निवासी हैं। उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय (डीडीयू) से 2001 में भौतिकी से एमएससी करने के बाद जर्मनी के प्रतिष्ठित मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर सोलर सिस्टम रिसर्च से पीएचडी पूरी की। पीएचडी के बाद छह साल तक कैंब्रिज में रहकर पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च की। उन्होंने 2011 में कैंब्रिज से लौट कर आयुका ज्वाइन किया। इसरो का 2013 में मिशन आदित्य एल-1 का प्रोजेक्ट सामने आया और 2015 में इसे मंजूरी दी गयी। तभी से उनकी टीम इस प्रोजेक्ट से जुड़ी है।

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