सिर से पांव तक कर्ज में डूबी है वेदांता, अनिल अग्रवाल को अब बेचना पड़ेगा अपना ये कारोबार
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उद्योगपति अनिल अग्रवाल का वेदांता समूह इस समय भारी कर्ज के बोझ से लदा है, अगर आम आदमी की भाषा में समझें तो वेदांता ग्रुप सिर से पांव तक कर्ज में डूबा है. ऐसे में अब समूह अब अपने कुछ कारोबार बेचने को मजबूर है.

हाल में एक इंटरव्यू के दौरान अनिल अग्रवाल ने बताया कि अगले साल तक वेदांता अपने स्टील कारोबार को पूरा बेच देगी.

इतना ही नहीं वेदांता समूह अपने अलग-अलग बिजनेस के डीमर्जर का भी प्लान बना रहा है. ताकि अलग-अलग कारोबार की वैल्यू को अनलॉक किया जा सके. समूह इन कंपनियों को एक ‘स्वतंत्र कंपनी’ के तौर पर चलाने जा रहा है, जिससे एक का असर दूसरे पर ना पड़े.

मार्च 2024 तक बिक जाएगा स्टील कारोबार

एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि स्टील कारोबार से जुड़े एसेट्स चालू वित्त वर्ष (मार्च 2024 तक) बिक जाएंगे. वेदांता समूह ने अपने स्टील, लौह अयस्क और संबंधित बिजनेस वैल्यूएशन और रिव्यू जून से ही स्टार्ट कर दिया है.

इसके अलावा वेदांता ग्रुप कई कारोबार का डीमर्जर करने वाला है. कंपनी ने बताया कि अब जल्द ही वेदांता एल्युमीनियम, वेदांता ऑयल एंड गैस, वेदांता पावर, वेदांता स्टील एंड फेरस मेटल्स, वेदांता बेस मेटल्स और वेदांता लिमिटेड नाम से अलग-अलग कंपनियां बनेंगी.

इस डीमर्जर को लेकर अनिल अग्रवाल का कहना है कि इन सभी कारोबार का अपना खुद का एक मार्केट, डिमांड और सप्लाई है. ऐसे में इन सबके अलग होने से इनकी वैल्यू को अनलॉक करने में मदद मिलेगी, इसके बावजूद ये सभी ‘प्राकृतिक संसाधन’ के एक लार्ज अंब्रेला के तहत आएंगे. इनको अलग करन से आधुनिक टेक्नोलॉजी लाने और प्रोडक्टिविटी बढ़ाने में मदद मिलेगी.

भारी कर्ज के बोझ से जूझ रही वेदांता

वेदांता लिमिटेड की पेरेंट कंपनी वेदांता रिसोर्सेज कर्ज के भारी बोझ से दबी है. साथ ही उसे मार्केट से फंड जुटाने में काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. इसी के साथ क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने उसकी डेट रेटिंग भी गिरा दी है. अनिल अग्रवाल ने वेदांता लिमिटेड की एक यूनिट हिंदुस्तान जिंक के माध्यम से कर्ज के बोझ को कम करने की कोशिश की, लेकिन इस कंपनी में भारत सरकार की 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है और इसलिए वह ऐसा नहीं कर सकी.

वहीं हिंदुस्तान जिंक खुद अपने जिंक, लेड, सिल्वर और रिसाइक्लिंग कारोबार को अलग-अलग करने की योजना पर काम कर रही है. वेदांता समूह की बड़ी दिक्कत उसके कॉरपोरेट बांड्स की मैच्योरिटी और उनका पेमेंट है. साल 2025 के अंत तक वेदांता ग्रुप को 3.2 अरब डॉलर (करीब 26,620 करोड़ रुपये) का बांड्स मैच्योरिटी पेमेंट करना है.

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