देश में इन दिनों समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने को लेकर बहस छिड़ी हुई है। मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसके जरिए समान लिंगों के बीच शादी के प्रस्ताव का विरोध किया गया है।
आवेदन में कहा गया कि समलैंगिक विवाह परिवार व्यवस्था पर हमला है। यह एक पुरुष और एक महिला के बीच शादी की अवधारणा को मान्यता देने वाले सभी धर्मों के पर्सनल लॉ के खिलाफ है। इस मामले को लेकर दायर याचिकाओं पर 18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की पीठ सुनवाई कर सकती है।
मुस्लिम बॉडी ने कहा, ‘सभी तरह के पर्सनल लॉ में शादी को लेकर जो कॉन्सेप्ट है, समलैंगिक विवाह उसका उल्लंघन करता है। अब तक बायोलॉजिकल पुरुष और बायोलॉजिकल महिला के बीच विवाह की अवधारणा रही है। इस तरह पर्सनल लॉ के जरिए फैमिला यूनिट के स्ट्रक्चर को मान्यता मिलती रही है। हालांकि, समलैंगिक शादियां पूरी तरह से इन धारणाओं के उलट हैं।’ मालूम हो कि जाने-माने वकील एमआर शमशाद ने बीते शुक्रवार को यह अर्जी दाखिल की थी।
‘फैमिली सिस्टम पर हमला है समलैंगिक विवाह’
याचिका में कहा गया, ‘समलैंगिक विवाह की अवधारणा परिवार बनाने के बजाय फैमिली सिस्टम पर हमला करती है। मुस्लिम आस्था में समलैंगिकता प्रतिबंधित है। इस्लामी मान्यता में पिता और माता को एक-दूसरे का पूरक बताया गया है। समान-लिंग विवाह को मान्यता देने से जुड़ी याचिकाएं अन्य देशों में बदलती कानूनी व्यवस्था पर निर्भर करती हैं।’ जमीयत ने अपने अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी के हवाले से कहा कि स्थापित, अविभाज्य और मूल सिद्धांतों में कट्टरपंथी गैर-धार्मिक विश्वदृष्टि को लागू नहीं किया जा सकता है।
‘समलैंगिक विवाह इस्लामी मान्यताओं के खिलाफ’
इससे पहले चिश्ती फाउंडेशन, अजमेर के सैयद सलमान चिश्ती ने चीफ जस्टिस को अपनी चिंताओं और आपत्तियों से अवगत कराया थी। यह दावा किया गया कि समलैंगिक विवाह के लिए कोई भी कानूनी मान्यता भारत के धार्मिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों के प्रतिकूल होगी। साथ ही यह पर्सनल लॉ और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन को प्रभावित करेगी। चिश्ती ने इस तरह की शादी को कानूनी मान्यता देने की याचिका का विरोध करने के लिए इस्लामी मान्यताओं का हवाला दिया।
केंद्र सरकार भी कर रही समलैंगिक विवाह का विरोध
मालूम हो कि केंद्र ने भी सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध किया है। सरकार का कहना है कि यह पर्सनल लॉ और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन को तहस-नहस करने के साथ विनाश का कारण बनेगा। वहीं, ‘कम्युनियन ऑफ चर्च इन इंडिया’ के प्रकाश पी थॉमस ने ऐसी याचिका पर हैरानी जताई। उन्होंने राष्ट्रपति से विवाह पर यथास्थिति सुनिश्चित करने का आग्रह किया। उन्होंने दावा किया कि ईसाई मान्यताओं के अनुसार, विवाह ईश्वर द्वारा बनाई गई एक पवित्र संस्था है और दो समलैंगिकों के मिलन को विवाह के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।