शिक्षा के गाँधी – डा. जगदीश गांधी
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10-11-1936 – 22-01-2024

                डा. जगदीश गांधी अनेक लोगों के लिए अनेक प्रकार से प्रासंगिक थे। अपने बच्चों एवं नातियों व पोते पोतियों के लिए वह एक दयालु, परम प्रिय बलिदानी पिता एवं दादा-नाना थे, अपनी पत्नी के लिए वह एक विचारवान एवं संरक्षण प्रदान करने वाले पति थे, अपने सहकर्मियों के लिए वे एक उदार, न्यायप्रिय एवं सशक्त नियोक्ता थे, जिन्होंने उनकी क्षमताओं को सशक्त किया और धैर्यपूर्वक उनकी प्रतिभा को निखारा, उनकी गलतियों को स्वीकार कर उन पर विश्वास किया, उन्हें स्वायत्ता एवं अधिकार देकर उन्हें विश्वासपात्र बनाया। अपने आलोचकों के प्रति वह क्षमाशील, उदार एवं दानी थे। उन्होंने शायद ही कभी किसी को निराश किया हो अथवा उनकी इच्छाएं अपूर्ण छोड़ी हों या किसी आत्मा को ठेस पहुँचाई हो। वह हर उस शादी अथवा पारिवारिक उत्सव में शामिल होते थे जिसमें उन्हें आमंत्रित किया जाता था फिर चाहे निमंत्रण निम्नतम श्रेणी के कर्मचारी का हो अथवा उच्चतम अफसर का। अपने सार्वजनिक कार्यकलाप में वह विवेकशील एवं व्यवहार कुशल थे। चरित्र के उत्कृष्ट निर्णायक होने के साथ साथ वे पैनी दृष्टि के मालिक थे परन्तु गलतियों को क्षमा कर लोगों को अनेकों अनेक अवसर प्रदान करते थे।

प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने वाले डा. जगदीश गांधी एक दृढ एवं साहसी व्यक्तित्व के स्वामी थे। जो एक अडिग स्तम्भ की भाँति खड़े रह कर ईश्वरीय मार्गदर्शन के अनुरूप चुनौतियों का सामना करते थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि जब कार्य सेवा के उद्देश्य से किया गया है तब उसे करते समय हमें बाधाओं से लड़ने के लिए ईश्वरीय सहायता प्राप्त होती है। बहाई धर्म की शिक्षाओं से परिचित होने के बाद उनकी यह समझ और सुदृढ़ हो गई कि अपने जीवन में धर्म की शिक्षाओं का पालन करना और उन शिक्षाओं के आलोक में अपने आचरण को बदलना महत्वपूर्ण था, न कि केवल इससे जुड़े अनुष्ठान करना। उनका मानना था निष्क्रिय पूजा का धर्म निरर्थक है बल्कि पवित्रता के कार्य और पवित्र आचरण को अपनाना ही धर्म की सच्ची स्तुति है।

डा. जगदीश गांधी के अनेक गुण अनुकरणीय हैं। परन्तु उनकी विशिष्टता थी इस दुनिया की चीजों जैसे धन, दौलत, सत्ता, पद, राजनीतिक महत्वकांक्षा से अनासक्ति। जो गुण उन्हें परिभाषित करता है वह थी उनकी निश्छल विनम्रता एवं सेवा की भावना ।

डा. गाँधी के कार्य में इस संसार की उन्नति के वास्ते एक महत्वपूर्ण सेवा शामिल थी – वह थी एक ऐसी शिक्षा का प्रविधान जो पठन- पाठन की उत्कृष्टता से बढ़ कर विश्व एकता के उद्देश्य को बढ़ावा देती हो। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए उन्होने अन्तर सांस्कृतिक क्रिया कलापों को प्रोत्साहित करते हुए भारत एवं सम्पूर्ण विश्व के देशों के बच्चों को एक साथ लाने के लिए प्रत्येक वर्ष 20 अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षिक कायक्रमों का आयोजन किया। उन्होंने विश्व सरकार के गठन के पक्ष में वैश्विक राय का माहौल बनाने के लिए लगातार 24 सालों तक विश्व के मुख्य न्यायाधीयो का सम्मेलन कर राष्ट्रों के मध्य एकता एवं सम्पूर्ण विश्व की समस्याओं का हल निकालने के लिए एक सुदृढ़ मंच तैयार किया। उन्होने हमारे जैसे बहुधामिक समाज में लैंगिक समानता है और अंतर-धामिक संवाद पर एक वार्षिक सम्मेलन का आयोजन कर इन्हें मुक्त रूप से संबोधित किया।

अपने पिता पर लिखी इस छोटी सी कविता को मैं आपसे साझा करना चाहती हूं…

आप है एक मोमबत्ती जो जलती, जलती ही जा रही हैं, जो बूंद बूंद गल कर कर रही अपने जीवन को समर्पित खुशी से जलते हुए

अपने लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति के लिए जलते हैं आप।

दूसरो के प्रति दयालु है आप, स्वयं के प्रति निर्मम,

दूसरों के प्रति नम्र एवं स्वयं के लिए कठोर

परिभाषित करते हैं आप जुनून, प्रयास दृढ़ता के अर्थ को

आप ध्यान का मूर्तरूप हैं

पक्षी की आँख पर केन्द्रित अर्जुन जैसा

आप हैं प्रेरणादायी, उत्साहवर्धक, सदैव आशावान एवं सम्पन्न

आप ही हैं किपलिंग की ‘इफ’ के नायक

                उनकी विनम्रता उनकी कमजोरी नहीं थी अपने कार्यक्षेत्र में माँगानुसार सख्त एवं समझौता न करने वाले यौगिक पुरूष थे। एक गहन आध्यात्मिक व्यक्तित्व के स्वामी, वह ऋषि, मुनियों एवं हिंदू पवित्र स्थानों पर जाते थे। और वह प्रातः काल भजन गाते थे उन्हें विशेष रूप से प्रिय भजन था – ‘मेरे उर की पीर कोई जाने ना, मैं जानू या प्रभु तुम जानो, और तमाशे-गीर कोई जाने ना …. ।

बहाई धर्म की शिक्षाओं को जानने के बाद (जो बहुत हद तक उनके पूर्व विश्वास जैसे विश्व सरकार, विश्व शांति एवं दुनिया की सेवा, व्यक्तिगत अखण्डता एवं सदाचारी जीवन को ही प्रतिबिंबित करती थीं। उन्होने शिक्षाओं के पठन पाठन से ज्ञानार्जन किया और अनेक को याद कर लिया था तथा उन्हें अपने वक्तव्यों में प्रचुरता से उद्धृत करते थे जिससे उनकी बातें और प्रभावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी बन जाती थीं। वह आनन्दपूर्वक लखनऊ बहाई समुदाय की गतिविधियों में प्रतिभागिता करते थे हालांकि वह नियमित रूप से इनमें समय नही दे पाते थे।

                डा. गांधी अपने पारिवरिक उत्तरदायित्वों के प्रति बहुत समार्पित थे, यह बात कम लोग ही जानते थे। चूँकि उनका वाह्य चेहरा सदैव काम पर ही केन्द्रित दिखता है अतः परिवार के प्रति उनका झुकाव एवं निष्ठा लोगों के समक्ष इतनी स्पष्ट नही थी। जब उनके बच्चे छोटे थे तो वह उन्हें झाँसी की युवा रानी लक्ष्मीबाई की वीरता से परिचय कराने झाँसी की शैक्षिक यात्रा पर ले गए। वे उनकी शिक्षा की गुणवत्ता का भरपूर ध्यान रखते थे एवं अपने कम उम्र बच्चों से विश्व सरकार की बातें करते थे जिसको सुन उनकी पत्नी मुस्करा उठतीं और कहती कि बच्चे अभी बहुत छोटे हैं इन बातों को समझने के लिए परन्तु वह पारिवारिक एकता एवं प्रगति के लिए सदैव पूर्ण सहनशीलता के साथ समर्पित रहे।

                हम सभी आज प्रार्थनाओं एवं पवित्र लेखों के पाठ से सांत्वना पा रहे हैं, जो हमें बताते है कि हमें शोक करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वास्तव में मृत्यु आनन्द की संवाहक है, दूत है जो हमें ईश्वर के सभी संसारों लोकों में उन लोगों के लिए अत्यन्त उच्च स्थान का आश्वासन देती है, जो लोग ईश्वर की इस दुनिया में ईश्वर के कार्य करने का बीड़ा उठाते हैं।

जय जगत

प्रो. गीता गाँधी किंगडन

प्रेसीडेन्ट एवं मैनेजर

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

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