शहीद मेजर की विधवा पत्नी को आर्थिक लाभ नहीं देने के चलते बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक बार फिर से महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई है। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के इस रुख पर भी “आश्चर्य” व्यक्त किया कि दिवंगत मेजर अनुज सूद के परिवार को आर्थिक लाभ देना संभव नहीं है।इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने अगले सप्ताह तक जवाब मांगा है।मेजर सूद दो मई, 2020 को उस वक्त शहीद हो गए थे जब वह बंधक बनाए गए लोगों को आतंकवादियों के चंगुल से बचा रहे थे। उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था। न्यायमूर्ति गिरीश एस कुलकर्णी और न्यायमूर्ति फिरदोश पी पूनीवाला की खंडपीठ शहीद की विधवा आकृति सूद की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ दिवंगत मेजर अनुज सूद की विधवा आकृति सूद द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में 2019 और 2020 में जारी दो सरकारी प्रस्तावों के तहत पूर्व सैनिकों के लिए (मौद्रिक) लाभ का अनुरोध किया गया है। राज्य सरकार के वकील ने कहा कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे इस मामले में अदालत के पहले निर्देश के अनुसार “विशेष मामले” के तौर पर निर्णय नहीं ले सकते हैं, क्योंकि इसके लिए नीतिगत निर्णय की आवश्यकता होगी और कैबिनेट द्वारा विचार किया जाना है, जो वर्तमान में उपलब्ध नहीं है।महाराष्ट्र सरकार के अनुसार, केवल वे लोग इस राहत और भत्ते के पात्र हैं जिनका जन्म महाराष्ट्र में हुआ है या जो लगातार 15 साल तक राज्य में रहे हैं। उच्च न्यायालय ने पिछले महीने सरकार से इस संबंध में निर्णय लेने को कहा था कि क्या वह शहीद के परिवार को लाभ देने के लिए इसे एक ‘‘विशेष मामले’’ के रूप में मान सकती है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इससे पहले 28 मार्च को सरकारी वकील ने कहा था कि आगामी 2024 के लोकसभा चुनावों के कारण निर्णय नहीं लिया जा सकता है। हालांकि इस पर पीठ ने असहमति व्यक्त की और कहा कि आदर्श आचार संहिता उक्त निर्णय के रास्ते में नहीं आनी चाहिए।शुक्रवार को, सरकारी वकील पीपी काकड़े ने कहा कि वह उच्च अधिकारियों के साथ बातचीत कर रहे हैं और राज्य मंत्रिमंडल द्वारा एक नीतिगत निर्णय लिया जाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मेजर अनुज सूद महाराष्ट्र के निवासी नहीं थे। हम मामले पर विचार कर रहे हैं, लेकिन हमें सचेत नीतिगत निर्णय लेने होंगे। मौजूदा स्थितियों में, कैबिनेट बैठ नहीं रही है।” राज्य सरकार ने दलील दी कि “मौजूदा नीति के तहत, उसके लिए मेजर सूद की विधवा को लाभ देना संभव नहीं है।”इस कोर्ट ने कहा, ”हम इस रुख से काफी हैरान हैं। चाहे जो भी हो, हमारे आदेश बहुत स्पष्ट हैं। हमने सर्वोच्च पदाधिकारी (सीएम) से इसे एक विशेष मामला मानकर विचार करने का आग्रह किया था। यदि मुख्यमंत्री निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हैं, तो यह उचित होगा कि राज्य सरकार मौखिक बयान के बजाय एक हलफनामे के माध्यम से अपना पक्ष रखे।”
न्यायमूर्ति कुलकर्णी ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा, “हम बार-बार आदेश पारित कर रहे हैं। (सर्वोच्च अधिकारियों से) बात करने का सवाल ही नहीं उठता। यदि आप हमारे निर्देशों का पालन नहीं कर सकते हैं, तो कृपया हमें शपथ पत्र पर बताएं, हम इस पर गौर करेंगे। जब किसी ने अपना जीवन बलिदान कर दिया हो तो आप ऐसा (लाभ) नहीं दे सकते? हमने सीएम से निर्णय लेने का अनुरोध किया था। यदि आप आश्वस्त नहीं हैं तो आप इसे अस्वीकार कर देते। कृपया अब इसे एक शपथ पत्र के जरिए हमें बताएं। उन्हें (याचिकाकर्ता) उस मामले में फैसले को चुनौती देनी होगी।’ यह वह तरीका नहीं है जिससे आप जिम्मेदारी से भागते हैं क्योंकि सरकार में कोई व्यक्ति निर्णय नहीं लेना चाहता और इसे कैबिनेट में ट्रांसफर नहीं करना चाहता। हमें काफी बेहतर की उम्मीद थी।” अदालत याचिका पर अगली सुनवाई 17 अप्रैल को करेगी।
इससे पहले चार अप्रैल को बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि वह कुछ मुद्दों पर त्वरित फैसले लेती है, लेकिन शहीद की विधवा को आर्थिक लाभ देने के संबंध में निर्णय लेने में देरी कर रही है। न्यायमूर्ति जी. एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति फिरदौस पूनीवाला की खंडपीठ ने कहा कि इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर निर्णय लेने में सरकार की देरी स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने कहा, ‘‘राज्य सरकार बड़े मुद्दों पर त्वरित निर्णय लेने की क्षमता रखती है। खासकर मुख्यमंत्री के लिए यह एक छोटा सा मुद्दा है।’’ अदालत ने कहा कि ऐसे कारण स्वीकार्य नहीं हैं। अदालत ने कहा, ‘‘इन आधार पर यह देरी स्वीकार्य नहीं है। कुछ प्रस्ताव रातोंरात लाए जाते हैं और जब सरकार चाहती है तब त्वरित फैसले ले लिए जाते हैं।’’ पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार को बड़ा दिल दिखाना चाहिए और उचित निर्णय लेना चाहिए।