उत्तर प्रदेश विधानसभा का इस बार का सत्र यूं तो विधायी कामकाज के हिसाब से खासा छोटा होगा, पर राजनीतिक सरगर्मी के लिहाज से खासा जोरदार होने वाला है। इसकी वजह है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद समाजवादी पार्टी के तेवर खासे आक्रामक होते जा रहे हैं।लोकसभा में इसके संकेत दिख चुके हैं। अब सदन में सपा अपनी हालिया कामयाबी के चलते सरकार को तमाम सवालों पर घेरने की तैयारी कर रही है। सत्र 29 जुलाई से शुरू होगा।कई ऐसे सियासी सवाल हैं, जिस पर सपा-कांग्रेस गठबंधन सरकार व भाजपा को घेरने में कोई कसर नहीं उठाएगा। अखिलेश यादव सदन में नहीं होंगे। उनकी जगह सपा को कोई दूसरा विधायक नेता प्रतिपक्ष होगा। नए नेता प्रतिपक्ष की तुलना अखिलेश यादव से भी होगी और सरकार को वह कितना घेर पाते हैं, इस पर भी सबकी निगाह होगी। अखिलेश यादव पहले ‘मानसून आफर’ की बात कह कर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के पाले में गेंद डाल चुके हैं, जिसका उन्होंने अखिलेश यादव को करारा जवाब भी दे दिया है लेकिन इस मुद्दे की गूंज होने के पूरे आसार हैं। नीट परीक्षा समेत कई परीक्षाओं में गड़बड़ी को भी विपक्ष मुद्दा बनाएगा।
बागी विधायकों पर रहेगी नजर
सपा के छह से ज्यादा बागी विधायकों ने इस साल राज्यसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में क्रासवोटिंग की थी। बदले हालात में इनमें से कुछ विधायक सपा में लौटने की इच्छा जता चुके हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सख्त तेवर दिखाते हुए वापसी से इंकार दिया और उनकी सदस्यता निरस्त कराने का निर्णय लिया। अब देखना है कि सपा के यह विधायक सपा खेमे में बैठेंगे या अलग सीटों पर बैठेंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि यह विधायक सत्ता पक्ष का समर्थन करेंगे या सपा की राह पर चलेंगे। इस पर भी सबकी नजर होगी। सदन में अखिलेश यादव, लालजी वर्मा सांसद हो जाने के कारण अब सदन में नहीं दिखेंगे। सदन में मंत्री जितिन प्रसाद भी नहीं होंगे क्योंकि वह केंद्रीय मंत्री हो चुके हैं। रालोद, निषाद पार्टी व भाजपा को मिला कर एनडीए के पांच विधायक भी अब सांसद बन गए हैं।
विधानमंडल का यह सत्र संक्षिप्त होगा। इसमें कुछ अहम विधेयक पास कराए जाएंगे। साथ ही प्रश्नकाल भी होगा। चूंकि हर छह माह में विधानसभा सत्र होना जरूरी है। इस संवैधानिक बाध्यता के चलते यह सत्र बुलाया गया है।