यूपी उपचुनाव यूं ही नहीं है सेमीफाइनल, OBC वोटर्स की करवट से तय होगी 2027 की दशा-दिशा
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उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए 20 नवंबर को मतदान है. यूपी उपचुनाव को 2027 का सेमीफाइनल माना जा रहा, जिसके चलते बीजेपी से लेकर सपा और बसपा ने पूरी ताकत झोंक रखी है.

लोकसभा चुनाव के बाद हो रहे उपचुनाव में सबसे बड़ा दांव ओबीसी समुदाय पर खेला गया है. सपा लोकसभा की तरह उपचुनाव में भी पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के सहारे उतरी है, तो बीजेपी ने ओबीसी पर दांव खेलकर अखिलेश यादव की रणनीति को काउंटर करने का ताना-बाना बुना है. ऐसे में साफ है कि उपचुनाव में असल लड़ाई ओबीसी वोटों को लेकर है, जिसके नतीजे से सूबे में सियासी भविष्य की दशा और दिशा तय हो जाएगी?

यूपी की जिन 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव है, उसमें मीरापुर, कुंदरकी, गाजियाबाद, खैर, करहल, कटेहरी, सीसामऊ, फूलपुर और मझवां सीट है. सपा ने सभी 9 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं तो बीजेपी 8 सीट पर खुद चुनाव लड़ रही है और एक सीट पर उसकी सहयोगी आरएलडी किस्मत आजमा रही. बसपा ने भी इस बार उपचुनाव में ताल ठोक रखी है. 2022 के चुनावी नतीजों के लिहाज से देखें तो चार सीटों पर सपा के विधायक तो तीन सीट पर बीजेपी के विधायक थे. आरएलडी और निषाद पार्टी के एक-एक विधायक थे.

उपचुनाव में बीजेपी और सपा का समीकरण

लोकसभा चुनाव में सपा ने 37 सीटें जीती थी, जिसमें 25 पिछड़ी जाति के सांसद चुने गए थे. उपचुनाव में उतरे सपा के 9 प्रत्याशियों में चार मुस्लिम, तीन ओबीसी और दो दलित समुदाय से हैं. सपा ने ओबीसी में यादव, निषाद और कुर्मी समुदाय पर दांव खेला है. वहीं, सपा के पीडीए फॉर्मूले की कामयाबी को देखते हुए बीजेपी ने भी इस बार ओबीसी उम्मीदवारों पर दांव लगाया है.

बीजेपी ने अपने कोटे की 8 सीटों में से चार सीट पर ओबीसी, तीन सवर्ण और एक दलित समुदाय से उम्मीदवार को उतारा है. बीजेपी ने ओबीसी समुदाय में यादव, कुर्मी, मौर्य और निषाद समुदाय के प्रत्याशी उतारे हैं. बसपा के उम्मीदवारों के जातीय समीकरण देखें तो दलित एक, मुस्लिम दो, सवर्ण से चार और ओबीसी के दो प्रत्याशी उतारे हैं. बीजेपी ने ओबीसी में एक कुर्मी और शाक्य समुदाय से प्रत्याशी उतारा है. बीजेपी की सहयोगी आरएलडी ने मीरापुर में एक प्रत्याशी उतारा है, जो ओबीसी के पाल समुदाय से हैं.

सपा की पीडीए केमिस्ट्री का क्या होगा?

सपा ने उपचुनाव में चार मुस्लिम, तीन ओबासी और दो दलित समाज से प्रत्याशी उतारे हैं. अखिलेश यादव ने किसी भी सवर्ण समुदाय का उम्मीदवार नहीं उतारा है, जिसके संकेत साफ है कि सपा की रणनीति पीडीए फॉर्मूले से उपचुनाव जीतने की स्ट्रैटेजी है. सपा ने मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर जरूर मुस्लिम को टिकट दिया है, लेकिन यादव, कुर्मी और निषाद समुदाय के प्रत्याशी को उतारकर अपनी नई सोशल इंजीनियरिंग के साथ भविष्य की राजनीति की दशा और दिशा तय कर दी है.

सपा 2024 के लोकसभा चुनाव में पीडीए फॉर्मूले के जरिए ओबीसी के बड़े वोटबैंक को अपने पाले में करने में कामयाब रही है, खासकर कुर्मी, मौर्य और निषाद समुदाय को अपने पक्ष में किया था. इसके चलते ही बीजेपी को करारी मात खानी पड़ी थी. यूपी के अवध और पूर्वांचल के बेल्ट में बीजेपी का पूरी तरह सफाया हो गया था. अखिलेश यादव इस बात को समझ चुके हैं कि बीजेपी को मात देनी है तो सिर्फ यादव और मुस्लिम वोटों से काम नहीं चलने वाला, जब तक ओबीसी और दलित समुदाय की जातियां नहीं जुड़ेंगी. इसीलिए लोकसभा चुनाव के बाद उपचुनाव में ओबीसी की तीन बड़ी जातियों से प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें यादव, कुर्मी और निषाद हैं.

बीजेपी ने ओबीसी पर खेला दांव

बीजेपी ने करहल सीट पर यादव वोटों के देखते हुए अनुजेश यादव को प्रत्याशी बनाया है. कटेहरी सीट पर धर्मराज निषाद को उतारा है, जिनका मुकाबला सपा की शोभावती वर्मा से है. इस सीट पर कुर्मी और निषाद जाति के वोटर लगभग बराबर की संख्या में हैं. सपा ने कुर्मी पर दांव खेला तो बीजेपी ने निषाद समाज पर. मझवां सीट पर बीजेपी ने मौर्य समाज से प्रत्याशी उतारा है, जिनके सामने बीजेपी से निषाद प्रत्याशी है. बीजेपी ने फूलपुर सीट पर कुर्मी समुदाय से आने वाले दीपक पटेल को उतारा है. बीजेपी ने सोची-समझी रणनीति के तहत प्रत्याशी उतारे हैं. दो ओबीसी जातियों में गठजोड़ न हो इसलिए सपा ने कुर्मी के सामने निषाद तो निषाद के सामने मौर्य समाज से प्रत्याशी दिया है.

उपचुनाव में बसपा ने चली चाल

उत्तर प्रदेश उपचुनाव में बसपा काफी अरसे के बाद उतरी है और मायावती ने दो मुस्लिम, चार सवर्ण, दो ओबीसी और एक दलित प्रत्याशी उतारा है. मायावती ने सूबे की जिन दो सीटों पर ओबीसी प्रत्याशी उतारे हैं, उसमें कटेहरी से अमित वर्मा और करहल से अवनीश कुमार शाक्य प्रत्याशी हैं. बसपा ने गाजियाबाद से परमानंद गर्ग, सीसामऊ से वीरेंद्र शुक्ला, फूलपुर से जितेन्द्र कुमार सिंह और मंझवा से दीपक तिवारी को उम्मीदवार बनाया है. इस तरह बसपा ने चार सवर्णों को टिकट देकर अलग ही दांव चला है. मीरापुर से शाह नजर तो कुंदरकी में हाजी रफातुल्लाह को उतारा है. अलीगढ़ की खैर सीट दलित सुरक्षित है, जहां से बसपा से लेकर बीजेपी और सपा तक ने दलित कैंडिडेट उतार रखा है.

यूपी में ओबीसी वोटर सबसे अहम

उत्तर प्रदेश में सरकारी तौर पर जातीय आधार पर कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है, लेकिन अनुमान के मुताबिक यूपी में सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग का है. सूबे में लगभग 52 फीसदी वोट बैंक पिछड़ा वर्ग का है और 43 फीसदी वोट गैर-यादव बिरादरी का है. यादव सपा का कोर वोटबैंक माना जाता है जबकि दूसरी ओबीसी जातियां कभी किसी पार्टी के साथ स्थाई रूप से नहीं खड़ी रहीं. यही नहीं पिछड़ा वर्ग के वोटर कभी भी सामूहिक तौर पर किसी पार्टी के पक्ष में भी वोटिंग नहीं करते हैं.

यूपी में 2014 से लेकर 2022 तक गैर-यादव ओबीसी बीजेपी के साथ रहा, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी की तमाम जातियां सपा के साथ मजबूती से खड़ी नजर आईं है. ओबीसी जब बीजेपी के साथ रहा तो बीजेपी का एकछत्र राज कायम था और जब उससे छिटकी तो दूसरे नंबर की पार्टी बन गई. यूपी में ओबीसी समाज अपना वोट जाति के आधार पर करता रहा है. यही वजह है कि छोटे हों या फिर बड़े दल, सभी की निगाहें इस वोट बैंक पर रहती हैं. सपा और बीजेपी ने अति पिछड़ी जातियों में शामिल अलग-अलग जातियों को साधने के लिए उसी समाज के नेता को उपचुनाव में उतारा है.

उत्तर प्रदेश में ओबीसी की 79 जातियां हैं, जिनमें सबसे ज्यादा यादव और दूसरे नंबर पर कुर्मी समुदाय की है. ओबीसी जातियों में यादवों की आबादी कुल 20 फीसदी है, जबकि राज्य की आबादी में यादवों की हिस्सेदारी 11 फीसदी है, जो सपा का परंपरागत वोटर माना जाता है. वहीं, यूपी में गैर-यादव ओबीसी जातियां सबसे ज्यादा अहम हैं, जिनमें कुर्मी-पटेल 7 फीसदी, कुशवाहा-मौर्या-शाक्य-सैनी 6 फीसदी, लोध 4 फीसदी, गडरिया-पाल 3 फीसदी, निषाद-मल्लाह-बिंद-कश्यप-केवट 4 फीसदी, तेली-शाहू-जायसवाल 4, जाट 3 फीसदी, कुम्हार/प्रजापति-चौहान 3 फीसदी, कहार-नाई- चौरसिया 3 फीसदी, राजभर 2 फीसदी और गुर्जर 2 फीसदी हैं.

उपचुनाव से तय होगी भविष्य की सियासत

यूपी उपचुनाव में जिस तरह सभी ने ओबीसी पर दांव खेल रखा है और ओबीसी वोटों को ही साधने की कवायद में है. बीजेपी और सीएम योगी ने जातियों में बंटे हिंदू वोटों को एकजुट करने के लिए नारा दिया है, ‘बंटोगे तो कटोगे’. बीजेपी के इस नारे के जवाब में सपा ने पोस्टर लगाया था, ‘मठाधीश बांटेंगे और कांटेंगे… पीडीए जोड़ेगी और जीतेगी. इस तरह बीजेपी और सपा के बीच ओबीसी वोटों को साधने की कवायद हो रही है, लेकिन यूपी के भविष्य की दशा और दिशा ओबीसी समुदाय तय करेगा. यूपी की जिन 9 सीटों पर उपचुनाव है, उस पर ओबीसी वोटर अहम भूमिका में है. ओबीसी जिसके साथ जाएगा, यूपी में आने वाला वक्त उसी दल का होगा. इसीलिए बीजेपी और सपा ने पूरी ताकत झोंक रखी है.

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