यहां फारसी भाषा में होता है भगवान राम के आने का स्वागत, 162 सालों से चली आ रही परंपरा
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आइयो, बढाईयो, दौलत को, राह पे रकीब कदम पर कदम, माहे कातिब में, निगाहे रू-ब-रू आदम श्यादा, उमर दौलत ज्यादा, श्री रामचन्द्र मेहरबां सलामो..यह पंक्तियां कानपुर की सरसौल तहसील में पिछले 162 सालों से हो रही उस रामलीला की हैं जब मंच पर प्रभु श्री राम आते हैं।

पूरा वातावरण जय श्री राम के उद्घोष से गूंज उठता है। दशहरा के बाद से दीपावली तक चलने वाली यह रामलीला अद्भुत है।

जिन फारसी के मिश्रित शब्दों के साथ शाही अंदाज में मंच पर श्री राम के आने का स्वागत होता है उसका अर्थ है -(हे! श्री रामचन्द्र जी आप आइए और हमारी दौलत को बढ़ाइए। हमारे रास्ते में कदम-कदम पर दुश्मन हैं, पर इस महीने प्रत्यक्ष आपके दर्शन होने पर इन पंक्तियों के लिखने व कहने वाले की उम्र व दौलत बढ़ेगी। हे रामचन्द्र जी आपकी मेहरबानी (कृपा) है। आपको सलाम (प्रणाम) है।)

पाल्हेपुर की रामलीला दशहरा के बाद से दीपावली तक चलती है। यह रामलीला 15 से 20 दिनों की होती है। 162 सालों से यह रामलीला होती आ रही है लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी वर्ष न हो पाई हो। यहां तक कि सबसे कठिन दौर कोरोना का था, तब भी यह रामलाली रुकी नहीं। पंडित प्रताप नारायण मिश्र ने भक्त माल में इस रामलीला के संदर्भ में लिखा है- जग विचरत पर गनत रम्य पाल्हेपुर नरवर (नर्वल), पद रचे सहस्त्रत्त्न भगति भरि जुगुल पवित्र प्रभाव के, गोविंदाश्रम स्वामी भये मूरति तन्मय भाव। स्पष्ट है कि यह रामलीला श्री गोविंदाश्रम स्वामी की प्रेरणा और कालिका प्रसाद मिश्र के प्रयासों से शुरू हुई थी।

झंडा गीत के रचयिता के रहे नजदीकी संबंध

इतिहासकार कहते हैं कि झंडा गीत ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ के रचयिता श्यामलाल गुप्त ’पार्षद’ का पाल्हेपुर की श्री राम लीला से नजदीकी संबंध रहा। वह नर्वल में रहते थे। इसलिए रामलीला में उनका रोल रहता था। पिता विश्वेश्वर प्रसाद भी रामलीला से जुड़े रहे हैं। पार्षद जी कई बार जब-जब अंग्रेज उन्हें तलाश रहे थे तो वह रामलीला में आ जाते थे। वह पूरी रामलीला देखते भी थे लेकिन अंग्रेज उन्हें तलाश नहीं पाते थे।

इस समय होती है यह श्री रामलीला

श्री रामलीला का मंचन हर वर्ष अश्विन माह की दशमी से शुरू होता है और कार्तिक माह की अमावस्या तक चलता है। ऐसा अब तक सामान्य तौर पर होता आया है। जहां तक श्री रामलीला स्थल का सवाल है तो अब तक इसमें कोई विशेष बदलाव नहीं आया है। केवल गांव के लोग ही नहीं बल्कि दूर-दूर से लोग यहां रामलीला का मंचन देखने आते हैं।

कई परंपराएं भी हैं अनोखी

इस रामलीला को देखने वाले बताते हैं कि यहां कई परंपराएं अनोखी हैं। रामलीला में प्रभु श्री राम जी के मंच पर आते ही उनके स्वागत में जो शब्द कहे जाते हैं वह बेहद खास हैं। ऐसा किसी अन्य रामलीला में नहीं होता है। इसी तरह इस रामलीला में मझावन से शहनाई वादक आते हैं। उनकी छह पीढ़ियों से यह परंपरा कायम है। कई शोभा यात्राएं भी निकलती हैं। इस रामलीला में कुछ रोल छोटी बेटियां भी करती हैं।

प्राचीनतम रामलीलाओं में एक, ऐतिहासिक महत्व

कानपुर इतिहास सोसाइटी के महामंत्री अनूप शुक्ला कहते हैं कि इस रामलीला का ऐतिहासिक महत्व है। साहित्य में इस रामलीला का भरपूर विवरण मिलता है। रामलीला का स्थान, समय और यहां की परंपराएं भी खास हैं। पंडित प्रताप नारायण मिश्र ने अपने पत्र ब्राह्मण में व अन्य स्थानों पर इसका विवरण किया है। पार्षद जी की यहां से निकटता जगजाहिर है। मुगल काल के ठीक बाद शुरू रामलीला में संस्कृति झलकती है।

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