लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई है। इस पर चर्चा की तिथि बाद में तय की जाएगी। सदन में कांग्रेस के उप-नेता गौरव गोगोई द्वारा पेश इस प्रस्ताव को लोकसभा ने चर्चा के लिए स्वीकृति प्रदान की।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि वह सभी दलों के नेताओं से बातचीत करके इस पर चर्चा की तिथि के बारे में अवगत कराएंगे। लोकसभा में शून्यकाल के दौरान बिरला ने कहा, ”मुझे सदन को सूचित करना है कि गौरव गोगोई से नियम 198 के तहत मंत्रिपरिषद में अविश्वास प्रस्ताव का अनुरोध प्राप्त हुआ है…कृपया आप (गोगोई) सदन की अनुमति प्राप्त करें।” इसके बाद गोगोई ने कहा, ”मैं निम्नलिखित प्रस्ताव के लिए सदन की अनुमति चाहता हूं-यह सभा मंत्रिपरिषद में विश्वास का अभाव प्रकट करती है।” लोकसभा अध्यक्ष ने इस प्रस्ताव की अनुमति देने का समर्थन करने वाले सदस्यों से अपने स्थान पर खड़े होने के लिए कहा। इस पर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक और कई अन्य विपक्षी दलों के सदस्य खड़े हो गए। इसके बाद बिरला ने कहा, ”इस प्रस्ताव को अनुमति दी जाती है।” कांग्रेस द्वारा लाए गए इस प्रस्ताव का इंडिया गठबंधन समर्थन कर रहा है। लोकसभा में मोदी सरकार के पास पूर्ण बहुमत होने के बाद भी विपक्षी गठबंधन ने अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला क्यों किया है, इस पर कई लोग सवाल कर रहे हैं। तो चलिए यहां समझते हैं कि बहुमत न होते हुए भी विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की चाल क्यों चली है?
पहले जानिए, क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव
किसी भी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तब लाया जाता है, जब विपक्ष को लगता है कि सरकार के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है। आजादी के बाद से कई बार तत्कालीन सरकारों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है। पिछली बार मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के आखिरी दौर में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। हालांकि, बहुमत का आंकड़ा होने की वजह से सरकार को कोई भी खतरा नहीं हुआ। वहीं, अगर विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाता है और सरकार के पास जरूरी बहुमत का आंकड़ा नहीं होता, तो ऐसे समय में सरकार गिर जाती है। सत्ता में रहने के लिए सरकार को बहुमत दिखाना पड़ता है। कोई भी लोकसभा सांसद, जो 50 सांसदों का समर्थन हासिल कर सकता है, किसी भी समय मंत्रिपरिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है। यह प्रस्ताव सिर्फ लोकसभा में ही लाया जा सकता है।
बीजेपी के पास पूरी संख्या, फिर क्यों लाया गया अविश्वास प्रस्ताव?
लोकसभा में सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 272 है। इस समय एनडीए सरकार के पास 331 सांसद हैं, जबकि अकेले बीजेपी के पास ही 303 सांसदों की संख्या है। ऐसे में खुद बीजेपी के पास ही बहुमत के आंकड़े से कहीं अधिक सांसद मौजूद हैं। यदि एनडीए के अलावा बाकी सभी दल साथ आ भी जाते हैं, तो भी सरकार को कोई भी खतरा नहीं है। हालांकि, बसपा समेत कुछ दल ऐसे हैं, जोकि न विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा हैं, और न ही एनडीए का। ‘इंडिया’ गठबंधन के पास 144 सांसद हैं। बीआरएस, वाईएसआरसीपी और बीजेडी को मिलाकर 70 सांसद होते हैं, जोकि दोनों ही गठबंधनों का हिस्सा नहीं हैं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि इंडिया गठबंधन के पास नंबर नहीं हैं तो क्यों वह अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया? इसके पीछे वजह अविश्वास प्रस्ताव में होने वाली चर्चा है। दरअसल, मणिपुर में मई की शुरुआत से जारी जातीय हिंसा को लेकर कांग्रेस समेत विपक्ष पीएम मोदी के बयान पर अड़ा हुआ है। मॉनसून सत्र के शुरुआती दिन पीएम मोदी ने मणिपुर को लेकर सामने आए दो महिलाओं के वीडियो पर प्रतिक्रिया दी थी, लेकिन विपक्ष की मांग है कि सदन के भीतर इस मुद्दे पर चर्चा करवाई जाए और खुद प्रधानमंत्री इसमें जवाब दें। लोकसभा में जब अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होगी तब विपक्ष मणिपुर हिंसा की भी बात करेगा और पीएम मोदी से इस पर जवाब की मांग करेगा।
‘मणिपुर मुद्दे पर सरकार को बोलने पर करेगा विवश’
अविश्वास प्रस्ताव को लेकर लोकसभा में कांग्रेस के सचेतक मणिकम टैगोर ने कहा, ”यह विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ का विचार है। उन्होंने कहा था कि हमारा मानना है कि सरकार के अहंकार को तोड़ने और मणिपुर के मुद्दे पर बोलने को विवश करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव नोटिस को आखिरी हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाए।” इससे पहले कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने कहा था कि अवधारणा बनाने के खेल में मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए यह एक अच्छा विचार है। बहरहाल, सूत्रों का कहना है कि हो सकता है कि विपक्ष को लोकसभा में चर्चा के दौरान ज्यादा वक्त न मिले क्योंकि समय का आवंटन सदन में दलों के संख्या बल के हिसाब से किया जाता है, लेकिन इस दौरान पूरे देश का ध्यान मणिपुर पर अविश्वास प्रस्ताव पर होगा और इससे अवधारणा के खेल में विपक्ष को मदद मिल सकती है। इसी वजह से मणिपुर हिंसा के बीच विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है।
अब तक कितनी बार लाया जा चुका है अविश्वास प्रस्ताव?
सबसे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ साल 1962 में आचार्य जेबी कृपलानी द्वारा पहला अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। इस प्रस्ताव पर चार दिनों में 21 घंटे तक बहस चली थी और इसमें 40 सांसदों ने भाग लिया। अपने जवाब में नेहरू ने कहा था कि व्यक्तिगत रूप से मैंने इस प्रस्ताव और इस बहस का स्वागत किया है। मैंने महसूस किया है कि अगर हम समय-समय पर इस तरह के परीक्षण करते रहें तो यह अच्छी बात होगी। अब तक कुल 26 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है। पिछली बार साल 2018 में टीआरएस द्वारा मोदी सरकार के खिलाफ लाया गया था। तब भी संसद में काफी देर तक चर्चा हुई थी। नेहरू से लेकर पीएम मोदी तक, कई नेताओं ने इसका सामना किया है और अपनी सरकार बचाई है। हालांकि, मोरारजी देसाई, चरण सिंह, वीपी सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार अविश्वास प्रस्ताव के दौरान बहुमत नहीं होने के चलते गिर भी चुकी है।