दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को सशस्त्र बलों में लैंगिक समानता की वकालत करते हुए एक बड़ी टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि जब एक महिला अधिकारी को सियाचिन में तैनात किया जा सकता है तो एक पुरुष को सेना में नर्स के रूप में भी नियुक्त किया जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा एवं न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ सैन्य प्रतिष्ठानों में केवल महिला नर्सों को रखने की कथित असंवैधानिक प्रथा के बारे में एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। इसके साथ ही विषय को महत्वपूर्ण बताते हुए पीठ ने याचिका को नवंबर में अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
केन्द्र का प्रतिनिधित्व कर रही अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि सेना में प्रथाएं लंबे समय से चली आ रही परंपराओं पर आधारित हैं। हालांकि, पीठ ने कहा कि सरकार अभी लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए एक कानून लेकर आई है। एक तरफ आप महिलाओं को सशक्त बनाने की बात कर रहे है और वहीं दूसरी तरफ आप कह रहे हैं कि पुरुष नर्स के रूप में शामिल नहीं हो सकते।
अदालत ने कहा- यदि एक महिला (अधिकारी) को सियाचिन में तैनात किया जा सकता है तो एक पुरुष आर एंड आर (अस्पताल) में काम कर सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल होने की अनुमति दी है। उच्चतम न्यायालय ने बार-बार माना है कि कोई लैंगिक पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ को बताया कि केन्द्र सरकार ने इस मामले में अपना जवाब दाखिल कर दिया है।
याचिकाकर्ता इंडियन प्रोफेशनल नर्सेज एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील अमित जॉर्ज ने कहा कि अब सभी अस्पतालों में पुरुष नर्स हैं। यहां तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी कहा है कि सेवाओं से एक लिंग को बाहर करने की प्रथा का सैन्य पारिस्थितिकी तंत्र में भी कोई स्थान नहीं है। पीठ ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिस पर विचार-विमर्श की आवश्यकता है। उच्च न्यायालय ने पहले सैन्य नर्सों के रूप में केवल महिलाओं को नियुक्त करने की अवैध प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका पर केन्द्र का रुख पूछा था।