मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान सोमवार को हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 केवल वहीं लागू होगा, जहां कोई विवाद नहीं है।विवादित स्थल के मामले में यह कानून नहीं लागू होगा। श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मामले में संरचना का चरित्र अभी तय किया जाना बाकी है और यह केवल साक्ष्य द्वारा तय किया जाना है। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने मुकदमे में सुनवाई मंगलवार को भी जारी रखने को कहा है।हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि मंदिर में अवैध निर्माण पर मुकदमा चलाने पर रोक नहीं लगाई जा सकती। यह सब मुकदमे में ही गुण दोष के आधार पर तय किया जाएगा। मुकदमों की पोषणीयता के संबंध में सीपीसी के आदेश सात नियम 11 के तहत प्रार्थना पत्र पर केवल मुद्दों को तैयार करने और पक्षकारों से साक्ष्य पेश करने के बाद ही निर्णय लिया जा सकता है। इस प्रकरण में 1968 में हुए समझौते को मुकदमे की पोषणीयता पर निर्णय लेने के चरण में भी नहीं देखा जा सकता है।इससे पहले मुस्लिम पक्ष की ओर से कहा गया कि मुकदमा मियाद अधिनियम से वर्जित है क्योंकि पक्षकारों ने 12 अक्टूबर 1968 को समझौता कर लिया था। यह कहा कि उस समझौते द्वारा विवादित भूमि शाही ईदगाह की इंतजामिया कमेटी को दे दी गई थी। वर्ष 1974 में तय किए गए एक सिविल मुकदमे में इस समझौते की पुष्टि की गई है। आगे कहा गया कि किसी समझौते को चुनौती देने की सीमा तीन साल है लेकिन मुकदमा 2020 में दायर किया गया है और इस प्रकार यह मुकदमा मियाद अधिनियम से वर्जित है।हिंदू पक्ष के वकील ने तर्क दिया कि मुकदमा चलने योग्य है, विचारणीय न होने संबंधी याचिका पर प्रमुख साक्ष्यों के बाद ही फैसला किया जा सकता है। वर्ष 1980 में मानिक चंद बनाम रामचंद्र के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि एक नाबालिग अनुबंध में प्रवेश कर सकता है लेकिन संरक्षक के माध्यम से। साथ ही ऐसा कोई अनुबंध तभी बाध्यकारी होता है, जब वह नाबालिग के लाभ में हो। यही बात देवता के मामले में भी लागू होगी। आगे कहा कि 1968 के कथित समझौते में देवता पक्षकार नहीं थे और न ही 1974 में पारित अदालती डिक्री में वह पक्षकार थे। उक्त समझौता श्री जन्म सेवा संस्थान द्वारा किया गया था, जिसे किसी भी समझौते में प्रवेश करने का अधिकार नहीं था।