लोकसभा चुनाव का करीब दो महीने लंबा प्रचार का शोर गुरुवार की शाम थम गया। सातवें और अंतिम चरण में अब एक जून को वोटिंग होगी। यूपी की 13 सीटों पर इस चरण में मतदान होना है। इन 13 सीटों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट वाराणसी और सीएम योगी का जिला गोरखपुर भी शामिल है।गोरखपुर से रविकिशन फिर से उतरे हुए हैं। मोदी और रविकिशन के अलावा नजरें मिर्जापुर से उतरीं अपना दल एस की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल पर रहेंगी। इन 13 सीटों में दो सुरक्षित हैं और 11 सामान्य सीटें हैं। इस चरण में महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव सु., घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चन्दौली, वाराणसी, मिर्जापुर और राबर्ट्सगंज सु पर वोटिंग होगी। इन लोकसभा सीटों के साथ ही सोनभद्र जिले की रिक्त चल रही दु्द्धी विधानसभा सीट के उपचुनाव के लिए भी वोट डाले जाएंगे।
वाराणसी में पीएम मोदी के सामने कांग्रेस ने अजय राय को फिर से उतारा है। अजय राय पिछले दो चुनावों में भी मोदी के सामने कांग्रेस से मैदान में उतर चुके हैं। 2014 और 2019 में भी अजय राय यहां से उतरे और क्रमशः चौथे और तीसरे स्थान पर रहे। दोनों चुनावों से इस बार हालांकि स्थिति बदली हुई है। 2014 में अजय राय के अलावा आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल और समाजवादी पार्टी से कैलाश चौरसिया भी मैदान में थे। ऐसे में अजय राय को चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा था। 2019 में अजय के अलावा सपा की शालिनी यादव थी। तब अजय राय तीसरे स्थान पर रहे। इस बार पीएम मोदी से अजय राय का सीधा मुकाबला है। ऐसे में उनकी कोशिश वोटों के फासले को कम करने पर ही है।
गोरखपुर में भााजपा प्रत्याशी और मौजूदा सांसद रविकिशन का मुकाबला सपा की काजल निषाद से है। काजल रविकिशन को बाहरी बताते हुए खुद को जिले की बहूरिया बताती हैं। ऐसे में लड़ाई को स्थानीय बनाम बाहरी बनाने की कोशिश हो रही है। यहां निषाद वोट हमेशा बेहद अहम रहे हैं। सीएम योगी के सांसद पद से इस्तीफे के बाद हुए चुनाव में सपा ने प्रवीण निषाद को यहां से जीत दिलाकर चौंकाया भी था। सपा का पूरा जोर एक बार फिर काजल निषाद के नाम पर निषाद वोटों को अपने पक्ष में करना है।
घोसी की सीट भाजपा ने अपनी सहयोगी सुभासपा को दी है। यहां से सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर के बेटे अरविंद राजभर का मुकाबला सपा के राजीव राय से है। बसपा ने बालकृष्ण चौहान को उतारकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। घोसी विधानसभा की सीट उपचुनाव में जीतकर सपा के हौसले बुलंद हैं। उसका दावा है कि जिस तरह घोसी उपचुनाव में हर जाति का वोट उसे मिला, इस बार भी मिलेगा। यहां सबसे ज्यादा भूमिहार, चौहान और राजभर समाज के वोट हैं। अभी तक हुए 17 में से 14 सांसद भी इन तीन जातियों से ही हुए हैं। इस बार तीनों प्रत्याशी भी इन्हीं तीन जातियों से हैं। ऐसे में कुछ भी हो सकता है।
बलिया में भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त का टिकट काटकर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को उतारा है। उनका मुकाबला सपा के सनातन पांडेय से है। ब्राह्मण समाज को भाजपा का कोर वोटर माना जाता है। ऐसे में सनातन पांडेय का इन वोटों पर दावा भाजपा को चिंता में डाल रहा है। वीरेंद्र सिंह मस्त के समर्थक भी भाजपा के लिए यहां परेशानी का सबब बने हुए हैं। ऐसे में अंतिम समय तक भाजपा स्थितियां अपने पक्ष में करने में जुटी रही। दो दिन पहले ही मुलायम सिंह यादव के करीबी और कद्दावर सपा नेता नारद राय को अपने पाले में कर लिया है। राम इकबाल सिंह की भी वापसी हो गई है। इससे भाजपा की स्थिति अब मजबूत नजर आती है।
गाजीपुर में मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसाारी को सपा ने उतारा है। उनका मुकाबला भाजपा के पारसनाथ राय से है। पिछली बार भाजपा के कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री रहे मनोज सिन्हा को हराने वाले अफजाल अंसारी के हौसले इस बार भी बुलंद हैं। तब सपा और बसपा का गठबंधन था। इस बार स्थितियां थोड़ी जुदा है। हालांकि बसपा ने क्षत्रिय समाज के उमेश सिंह को मैदान में उतारकर चुनाव रोचक कर दिया है। कहा जा रहा है कि उमेश सिंह जितना बढ़िया लड़ेंगे, भाजपा को उतना ही नुकसान हो सकता है। अफजाल का दावा भी है कि भाजपा तरह के हथकंडे अपना रही है। ब्रजेश सिंह को स्टार प्रचारक की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है और खुद उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने यहां डेरा डाल दिया है।
चंदौली में भाजपा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय तीसरी बार मैदान में हैं। उनका मुकाबला सपा के वीरेंद्र सिंह से है। चंदौली उन सीटों में शामिल है जहां भाजपा को मामूली अंतर से जीत मिली थी। पिछली बार यहां से सपा प्रत्याशी रहे संजय चौहान कुछ दिन पहले ही भाजपा में शामिल हो गए और अपने प्रत्याशियों को भी भाजपा के समर्थन में वापस ले लिया है। इसका फायदा उन्हें मिलता दिखाई दे रहा है। इन सब के बावजूद बसपा प्रत्याशी सत्येंद्र कुमार मौर्य भी भाजपा की मुश्किलें बढ़ाए हुए हैं। कुशवाहा और मौर्य बाहुल्य इस सीट पर बसपा जितना ज्यादा वोट हासिल करेगी भाजपा को उतना नुकसान होगा। सपा के साथ उसके कोर वोटर यादव और मुसलमान रहते हैं और वीरेंद्र सिंह अपने सजातीय वोटों को सहेज पाते हैं तो पासा पलट भी सकते हैं।
मिर्जापुर की सीट भाजपा ने अपने सहयोगी अपना दल (एस) को दी है। अपना दल एस से खुद अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल मैदान में हैं। उनका मुकाबला सपा के रमेश बिंद से है। रमेश बिंद इस समय भाजपा के ही भदोही से सांसद भी हैं। बिंद समाज में भी पकड़ का दावा करते हैं। उन्हें भाजपा की चुनावी रणनीति भी पता है। ऐसे में यहां मुकाबला रोचक होने की उम्मीद है।
राबर्ट्सगंज की सीट भी अपना दल एस को मिली है। यहां से अनुप्रिया ने मौजूदा सांसद पकौड़ी लाल कोल की जगह उनकी बहू रिंकी कोल को टिकट दिया है। सपा ने यहां से छोटेलाल खरवार को उतारा है। पूर्व में सपा से सांसद रहे पकौड़ी लाल कोल ने अपना दल (एस) से पिछले चुनाव में जीत दर्ज की थी। पकौड़ी लाल के विवादित बोल से सवर्णों में नाराजगी को देखते हुए अपना दल(एस) ने उनकी जगह बहू को रिंकी को टिकट दिया है। यह बदलाव नाराजगी दूर कर पाता है या नहीं यह चार तारीख को पता चलेगा। रिंकी कोल मिर्जापुर की छानबे विधानसभा सीट से विधायक भी हैं। वहीं सपा से उतरे छोटेलाल खरवार भाजपा से सांसद रहे हैं।
महाराजगंज में भाजपा के मौजूदा सांसद पंकज चौधरी सातवीं बार सांसद बनने के लिए मैदान में हैं। उनके सामने कांग्रेस के वीरेंद्र चौधरी उतरे हैं। जहां पंकज चौधरी छह बार सांसद बन चुके हैं वहीं वीरेंद्र चौधरी लगातार पांच बार विधानसभा चुनाव हारने के बाद विधायक बने हैं। यहां बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी मौसमे आलम पर दांव लगाया है। इस बार कुर्मी बिरादरी से वीरेंद्र चौधरी के मैदान में आने से चुनावी गणित कुछ उलझी हुई मानी जा रही है। ऐसे में इंडिया गठबंधन बेहद मजबूती से लड़ रहा है, ऐसा क्षेत्र में दिख भी रहा है।
कुशीनगर में भाजपा के मौजूदा सांसद विजय दुबे का मुकाबला सपा के अजय सिंह से है। पिछले पांच साल में कभी भाजपा तो कभी सपा के साथ रहे स्वामी प्रसाद मौर्य भी अपनी नई पार्टी जनता राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के बैनर तले से मैदान में हैं। बसपा ने शुभ नारायण चौहान को टिकट दिया है। कहा जा रहा है कि स्वामी प्रसाद की ताकत ही बाकी दलों की दिशा तय करेगी। अगर स्वामी मजबूत लड़ते हैं तो साइकिल को नुकसान हो सकता है। अगर वह कमजोर लड़ते हैं तो नुकसान भाजपा का हो सकता है।
देवरिया में भाजपा ने शशांक मणि त्रिपाठी को उतारा है। यहां से कांग्रेस ने अखिलेश सिंह को टिकट दिया है। भाजपा प्रत्याशी शशांक पहली बार चुनाव मैदान में हैं, लेकिन उनके परिवार के लोग लंबे समय से राजनीति में रहे हैं। स्वयं शशांक मणि त्रिपाठी बीते 10 वर्षों से इस क्षेत्र के युवाओं को अपने साथ जोड़ रहे हैं और कई युवाओं व महिलाओं को विभिन्न स्टार्टअप के माध्यम से रोजगार दिलाने में सफलता प्राप्त की है। शशांक के दादा एमएलसी थे वहीं उनके चाचा विधायक। इनके पिता लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मणि त्रिपाठी उप थल सेनाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त होकर राजनीति में आए और दो बार सांसद चुने गए। इस परिवार की छवि साफ सुथरी है और लोग इनपर भरोसा करते हैं।
वहीं, अखिलेश प्रताप सिंह की बात करें तो वह 2012 में बांसगांव लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत रुद्रपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए थे। उन दिनों प्रदेश में सपा की सरकार थी। ऐसे में विपक्ष में रहते हुए भी उन्होंने क्षेत्र में काफी विकास कार्य करवाए थे, जिनकी चर्चा लोग आज भी करते हैं। मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में बहुजन समाज पार्टी के संदेश यादव लगे हैं। दलितों के अतिरिक्त अल्पसंख्यक मतदाताओं से भी काफी उम्मीदें हैं।
बांसगांव में भाजपा के कमलेश पासवान फिर से मैदान में हैं। उनके सामने कांग्रेस के सदल प्रसाद हैं।अनुसूचित जाति के लिए 62 वर्षों से सुरक्षित बांसगांव लोकसभा सीट पर भाजपा से कमलेश पासवान चौथी बार मैदान में हैं। कांग्रेस के सदल प्रसाद पिछले चुनावों में हार का हवाला देकर सहानुभूति के सहारे संसद पहुंचना चाहते हैं। वहीं, बसपा के डा. रामसमुझ सर्वजन हिताय के नारे संग काडर वोटर जोड़ जीत के समीकरण गढ़ रहे हैं।
सलेमपुर में भाजपा ने रविंद्र कुशवाहा को दोबारा मौका दिया है। यहां सपा ने रमाशंकर राजभर को उतारा है। बसपा ने अपने पूर्व अध्यक्ष भीम राजभर को उतारकर चुनाव रोचक बना दिया है। राजभर जाति के दो उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में होने से चुनावी गणित उलझ गया है। यहां सीधी टक्कर की बजाय त्रिकोणीय लड़ाई दिख रही है। ओपी राजभर ने भी रविंद्र को टिकट देने का मंच से इशारों में विरोध करके यहां की लड़ाई में नया मोड़ भी दिया था। अब उसका कितना असर होता है चार जून को पता चलेगा।