पंजाब में खाली ही रह जाएगी अकाली, भाजपा ने अकेले लड़ने का बना लिया प्लान
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भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी राज्यवार करने का फैसला लिया है। पार्टी पूरे देश का एक साथ प्लान बनाने की बजाय राज्य दर राज्य रणनीति तैयार कर रही है। रणनीतिकारों का मानना है कि इससे वह हर सीट पर अपनी ताकत का आकलन कर पाएंगे और यह भी जानना आसान होगा कि देश के किस हिस्से में क्या स्थिति है।

इसी कड़ी में भाजपा ने पंजाब में लॉन्ग टर्म प्लान तैयार किया है। यहां भाजपा अकेले ही चुनाव में उतरने की योजना रही है। रविवार को हुई कार्यसमिति की बैठक में पंजाब की सभी 13 लोकसभा सीटों पर अकेले ही लड़ने पर सहमति बनी।

संगरूर में 30 सालों के बाद हुई मीटिंग में तय हुआ कि 30 मई में से राज्य में कैंपेन चलाया जाएगा। इस दौरान एनडीए सरकार के 9 सालों के कामकाज के बारे में लोगों को बताया जाएगा। मीटिंग के दौरान भाजपा की राज्य कमिटी ने जालंधर उपचुनाव के प्रदर्शन का भी आकलन किया। इस दौरान अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने कहा, ‘भाजपा सभी 13 सीटों पर अकेले ही लड़ेगी। किसी को उन अफवाहों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, जिनमें कहा जा रहा है कि हम किसी के साथ गठबंधन करेंगे। भाजपा एक संवेदनशील राज्य है और लोगों को सौहार्दपूर्ण माहौल में प्रगति के लिए भाजपा की जरूरत है। हम पहले ही लोगों के बीच जा रहे हैं।’

भाजपा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रवीण बंसल ने इस दौरान कहा कि भले ही हम जालंधर सीट पर जीत नहीं सके। लेकिन इस संसदीय सीट में पड़ने वाली विधानसभा सीटों का आकलन करें तो 2022 विधानसभा चुनाव के मुकाबले हमें 4 फीसदी ज्यादा वोट मिला है। फिर यह तो एक उपचुनाव था। 2024 के आम चुनाव तक हालात बदलेंगे। फिर समीकरण भी आज के मुकाबले अलग होंगे। भाजपा पहली बार पंजाब में अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने जा रही है। इससे पहले 2019 में उसका अकाली दल के साथ गठबंधन था, लेकिन किसान आंदोलन के दौरान दोनों दल अलग हो गए थे।

क्यों पंजाब में अकेले लड़ना सही मान रही भाजपा

पंजाब में भाजपा की रणनीति पर नजर रखने वाले मानते हैं कि भले ही उसे 2024 में राज्य से कोई बड़ी सफलता ना मिले। लेकिन लॉन्ग टर्म के लिए भाजपा प्लानिंग कर रही है। पार्टी नेतृत्व को लगता है कि अकाली दल से अलग वह अपनी ताकत कम से कम शहरी इलाकों में तो बना ही सकती है। भाजपा की नजर जालंधर, लुधियाना, मोहाली, पठानकोट जैसे शहरों में रह रहे बाहरी लोगों पर अधिक है। उसे लगता है कि प्रवासी लोगों और राज्य के हिंदू मतदाताओं के बीच वह पैठ बना सकती है। इसके अलावा बदले हालातों में सिखों का भी एक तबका उसकी ओर आ सकता है।

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