बिहार में इससे एक महीने पहले अगस्त में बीजेपी से हाथ छुड़ाकर सीएम नीतीश कुमार ने एनडीए सरकार को विदा कर दिया था और आरजेडी-कांग्रेस के साथ महागठबंधन की सरकार बना चुके थे।
बिहार में सरकार बदलने के बाद उनका पहला दिल्ली दौरा 5 सितंबर को हुआ। उनकी पार्टी इससे पहले ही साफ कर चुकी थी कि नीतीश बीजेपी को छोड़ने (देख लेने) के मूड में नहीं हैं। केसी त्यागी ने कहा था कि नीतीश अब देश भर का दौरा करेंगे और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा विरोधी विपक्षी दलों को एक साथ लाने के महामिशन पर निकलेंगे। नौ महीने के दौरान नीतीश की मेहनत का नतीजा निकला और शुक्रवार को, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के शब्दों में, कश्मीर से कन्याकुमारी तक के विपक्षी दलों के नेता भाजपा से लोहा लेने को पटना में जमा हो गए। लेकिन सवाल यही है कि क्या इस महाजुटान से 2024 के चुनाव में नजारा बदलेगा?
5 सितंबर 2022 को जब नीतीश महागठबंधन के मुख्यमंत्री के तौर पर दिल्ली आए तो तीन दिन टिककर रहे और इस दौरान नौ विपक्षी नेताओं से मिले। पहले दिन उनकी मुलाकात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से हुई फिर उसी दिन वो जेडीएस नेता व पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी से भी मिले। अगले दिन नीतीश दिल्ली के सीएम और आप नेता अरविंद केजरीवाल, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआई महासचिव डी राजा और इनेलो नेता ओम प्रकाश चौटाला से मिले। फिर अस्पताल में भर्ती यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव को देखने गए और वहां सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिले। तीसरे दिन नीतीश एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और सीपीआई एमएल महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य से मिले। तीन दिन रुके और नौ नेताओं से मिले। अब देखिए इनमें पटना कौन नहीं आया। एचडी कुमारस्वामी और ओम प्रकाश चौटाला।
नीतीश इसके बाद देश भर में घूमे और ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, बीजू पटनायक तक से मिल आए। बीआरएस नेता के चंद्रशेखर राव तो उनसे मिलने खुद ही पटना आए थे। लेकिन पटना की मीटिंग में बीजू पटनायक और चंद्रशेखर राव नहीं आए। कुल मिलाकर नीतीश की पहल का असर सिर्फ चार नेताओं पर नहीं हुआ जिनकी पार्टियां जेडीएस, इनेलो, बीजेडी और बीआरएस अपने-अपने राज्य में कांग्रेस से लड़ रही हैं। नीतीश का प्लान क्लीयर था कि विपक्षी एकता तभी सफल होगी जब उसमें कांग्रेस होगी। उसके बिना विपक्षी एकता का मतलब तीसरा मोर्चा बनाना हो जाएगा जिसका फायदा बीजेपी को मिलेगा।
पटना में जब 15 पार्टियों के नेता जुटे तो सबने एक साथ रहने और एक साथ 2024 का चुनाव लड़ने पर सहमति जताई। बाद में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने एक बयान जारी किया और कहा कि अगर दिल्ली के अध्यादेश के मसले पर कांग्रेस उसे राज्यसभा में समर्थन नहीं देती है तो विपक्षी एकता की अगले राउंड की बैठक में उनकी पार्टी से कोई शिमला नहीं जाएगा। केजरीवाल को छोड़ दें तो बाकी सारे नेता इस बात पर एकमत दिखे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे और बीजेपी के चुनाव प्रबंधन से लड़ना है तो साथ आने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इन नेताओं में ममता बनर्जी भी शामिल हैं जो पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के राज्य के नेताओं से तंग हैं। ममता बनर्जी ने तो नीतीश कुमार के वन अगेंस्ट वन के फॉर्मूले पर मुहर लगाते हुए कहा कि एक के खिलाफ एक लड़ेगा।
नीतीश की पहल पर जुटी 15 पार्टियों में एक तो जेडीयू खुद है और दूसरी लालू यादव की आरजेडी। बिहार में लालू के साथ कांग्रेस लंबे तक गठबंधन में रही है। बाकी राज्यों से जो पार्टियां आईं उनमें कुछ से कांग्रेस का गठबंधन है और कुछ से जटिल समीकरण वाला संबंध है। नीतीश, ममता, लालू, खरगे ने एक स्वर से कहा है कि अगले राउंड की मीटिंग में उनको सुलझाया जाएगा। ये नीतीश की उपलब्धि और सफलता है कि 15 पार्टियां एक टेबल पर बैठने और उसके बाद एकजुट होने को तैयार हैं। आगे काफी चुनौतियां हैं। और उसे राहुल गांधी ने नाप-तौल कर इस तरह कहा- शिमला में हम और गहराई से बात करेंगे।