तीन बार में भी नहीं बन पाया काम, मुख्यमंत्री बनने की राह में खड़गे के लिए क्या है रोड़ा?
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कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने को है मगर कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर खींचतान चल रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने पहले ही संकेत दे दिए हैं कि वह अनुभवी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की अगुवाई में काम करनें।डीके शिवकुमार खड़गे को सीएम के तौर पर प्रमोट कर रहे हैं। शिवकुमार ने कहा कि वह खुशी से मल्लिकार्जुन खड़गे के अधीन काम करेंगे, अगर उन्हें आलाकमान द्वारा चुना जाता है।हालांकि इस बार, शिवकुमार की पेशकश को सिद्धारमैया के लिए एक संकेत के रूप में अधिक देखा गया। कांग्रेस के खड़गे के साथ जाने की संभावना क्या है इस बारे में आने वाले वक्त में पता चलेगा। हालांकि, खड़गे को 45 सालों का राजनीतिक अनुभव है। 80 साल के नेता ने अपनी पहली विधानसभा सीट 1972 में जीती थी। वह 1980 से कर्नाटक की सभी कांग्रेस सरकारों में मंत्री थे – 1980 में गुंडू राव मंत्रालय, एस बंगारप्पा कैबिनेट 1990 में और 1992 से 1994 तक एम वीरप्पा मोइली के भी सरकार में रहे। वह 1996-99 और 2008-09 में विपक्ष के नेता थे, और 2005-08 तक राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष थे, 2009 में राष्ट्रीय राजनीति में जाने के दौरान उन्होंने पहली बार लोकसभा में प्रवेश किया ।

क्यों सीएम नहीं बन पाए खड़गे

1999 में कांग्रेस 224 सदस्यीय सदन में 132 सीटों के साथ सत्ता में आई थी। गुरमित्कल विधानसभा क्षेत्र से छह बार के विधायक के रूप में खड़गे पार्टी के सबसे वरिष्ठ विधायकों में से एक थे। हालांकि, कांग्रेस की अघोषित परंपरा यह थी कि पार्टी अध्यक्ष सीएम के लिए पहली पसंद थे और इसलिए जिम्मेदारी तत्कालीन कांग्रेस प्रमुख एसएम कृष्णा के पास चली गई, जो संयोगवश खड़गे के साथ घनिष्ठ संबंध साझा किया करते थे।

2004 में खड़गे का नाम फिर से सीएम संभावित के रूप में सामने आया। उस दौरान कांग्रेस विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल करने में विफल रही, कांग्रेस सिर्फ 65 सीटें जीतकर पाई। इसने जनता दल (सेक्युलर) के साथ गठबंधन सरकार बनाई , जिसे 58 सीटें मिलीं। फिर से खड़गे एक करीबी दोस्त, एन धरम सिंह जे से हार गए, जिन्हें कांग्रेस और जद (एस) ने सर्वसम्मति से चुना था। भविष्य के कांग्रेस मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, जो इस समय जद (एस) के नेता थे, को डिप्टी सीएम नियुक्त किया गया।

2008 में खड़गे के सीएम बनने की संभावना सबसे ज्यादा थीं क्योंकि वह उस समय कांग्रेस के राज्य अध्यक्ष थे। हालांकि, उस वर्ष के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस हार गई, भाजपा की 110 में 80 सीटों पर जीत हासिल की। 2013 में, कांग्रेस ने 122 सीटों के बेहतर बहुमत के साथ सदन में वापसी की। फिर, पीसीसी प्रमुख जी परमेश्वर और सिद्धारमैया के साथ मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में खड़गे का नाम सामने आया। कोराटागेरे सीट से परमेश्वर की आश्चर्यजनक हार ने उनकी इस रेस से छुट्टी कर दी।

इस दौरान जब खड़गे से सीएम पद के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “मैं अपनी जाति (दलित) के कारण पद नहीं चाहता। पार्टी के लिए लंबे समय से सेवा करने के कारण मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है। अगर उन्हें लगता है कि मैं इस पद के लिए फिट हूं तो फैसला उन्हें करना है। आलाकमान जो भी फैसला लेगा, मैं उसका पालन करूंगा।” हालांकि, चुनाव के बाद आखिरकार कांग्रेस विधायक दल की बैठक में सिद्धारमैया ने खड़गे को किनारे कर दिया।

क्या खड़गे बनेंगे कर्नाटक के सीएम?

अब डीके शिवकुमार के बयान के बाद खड़गे के मुख्यमंत्री बनने की बाते और तेज होने लगी हैं। राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी प्रमुख के रूप में मौजूद जिम्मेदारियों के कारण खड़गे के मुख्यमंत्री बनने की संभावना बहुत कम है। खड़गे दो बार राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी पेश कर चुके हैं। 2008 में अवसर उनके हाथ नहीं आया क्योंकि कांग्रेस चुनाव हार गई। 2013 में कांग्रेस आलाकमान सिद्धारमैया के साथ गया क्योंकि वह मुख्यमंत्री पद के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का चेहरा चाहता था। खड़गे के पास इस बार एक मौका है क्योंकि पार्टी कथित तौर पर कर्नाटक में एक दलित सीएम की नियुक्ति पर चर्चा कर रही है। 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले यह एक राष्ट्रीय संकेत की तरह होगा।

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