महाराष्ट्र में आए सियासी भूचाल के बीच हर दिन अलग-अलग दावे पेश किए जा रहे हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में फूट डालने के बाद अजित पवार ने पार्टी और सिंबल पर ही नहीं सीधे तौर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर भी दावा कर दिया है।
अजित पवार के गुट की ओर से चुनाव आयोग में हलफनामा दायर किया गया है। अजित पवार गुट ने चुनाव आयोग के सामने अपने हलफनामे में कहा कि अब शरद पवार पार्टी के अध्यक्ष नहीं हैं। पार्टी मेंबरों ने अजित पवार को अपना नेता चुन लिया है।
हलफनामे के जरिए 40 विधायकों का साइन किया एक पत्र चुनाव आयोग को दिया गया है। केंद्रीय चुनाव आयोग को दिए पत्र में बताया गया कि उन्होंने 40 विधायकों ने अजित पवार को एनसीपी का अध्यक्ष चुन लिया है। पता चला है कि यह याचिका उपमुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण से दो दिन पहले 30 जून को आयोग में दायर की गई थी।
अजित पवार को 40 विधायकों का समर्थन
एनसीपी नेता और अतिज पवार के करीबी अनिल पाटिल ने कहा, “40 से ज्यादा विधायक हमारे साथ हैं। इसलिए सरकार कोई बहुमत साबित नहीं करना चाहिए। अजित पवार को पार्टी के 95 फीसदी विधायकों का समर्थन प्राप्त है। हम एक राष्ट्रवादी पार्टी हैं, हमारा व्हिप सभी विधायकों पर लागू होता है। जरूरत पड़ी तो हम अदालती लड़ाई का भी सामना करेंगे।” साथ ही अजित पवार गुट के एक वरिष्ठ नेता ने दावा किया है कि 40 विधायकों के शपथ पत्र अजित पवार के पास आ गए हैं।
अब लड़ाई चुनाव आयोग में
अब संभावना है कि शिवसेना की तरह राष्ट्रवादी पार्टी किसकी होगी इसकी लड़ाई चुनाव आयोग में होगी। पार्टी तय करते समय चुनाव आयोग ट्रिपल टेस्ट का आधार लेता है कि कौन सी पार्टी संविधान के मुताबिक नीति लागू कर रही है। पहले यह देखा जाता है कि पदाधिकारी और कार्यकर्ता किस तरफ हैं, फिर यह भी जांचा जाता है कि जनप्रतिनिधि किस तरफ हैं। यही ट्रिपल टेस्ट शिवसेना के बारे में निर्णय लेते समय भी इस्तेमाल किया गया था। चुनाव आयोग ने कहा कि शिवसेना के दोनों गुट पार्टी की उद्देश्यपूर्ण नीतियों में विफल रहे हैं। साथ ही दोनों गुटों की ओर से हलफनामे की प्रमाणिकता पर भी सवाल उठाए गए, इसलिए अंत में शिवसेना का फैसला इस आधार पर लिया गया कि जन प्रतिनिधि किसके पक्ष में हैं।
उधर बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में शरद पवार ने 1999 में कांग्रेस से अलग होकर राकांपा का गठन करने के दिनों को याद करते हुए कहा, ”आज हम सत्ता में नहीं हैं, लेकिन हम लोगों के दिलों में हैं।” राकांपा प्रमुख ने अजित गुट को चेतावनी देते हुए कहा कि भाजपा के एक-एक सहयोगी ने ‘राजनीतिक तबाही’ का सामना किया है और उनका भी यही हश्र होगा। राज्यसभा सदस्य ने कहा, ”अपने राजनीतिक सहयोगियों को धीरे-धीरे कमजोर करना भाजपा की नीति है। अन्य राज्यों में इसके कई उदाहरण हैं।” राकांपा प्रमुख ने कहा, ”अकाली दल कई वर्षों तक भाजपा के साथ रहा, लेकिन अब कहीं नहीं है। यही स्थिति तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और बिहार में देखने को मिली। (बिहार के) मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे महसूस किया और राजद के साथ गठजोड़ (महागठबंधन) में शामिल हो गये।”