कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए कहा कि आयोग अदालत के निर्देशों का पालन करने के बजाय पारदर्शिता को सीमित करने के लिए कानून में संशोधन की जल्दबाजी कर रहा है. उन्होंने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें आयोग को जानकारी साझा करने का निर्देश दिया गया था. रमेश ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग पारदर्शिता से डर रहा है.कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए एक्स पर एक पोस्ट साझा की. उन्होंने चुनाव आयोग पर हाल के दिनों में चुनावी प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा कम होने का गंभीर आरोप लगाया है. उनका कहना है कि आयोग पारदर्शिता और खुलापन बनाए रखने में असफल हो चुकी है, साथ ही कहा कि चुनावी प्रक्रिया में भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा दे रही है.जयराम रमेश ने अपने पोस्ट में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के हालिया फैसले का जिक्र किया. अदालत ने चुनाव आयोग को जनता के साथ पारदर्शिता बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक जानकारी साझा करने का निर्देश दिया था. उन्होंने कहा कि जनता के साथ जानकारी साझा करना न केवल विश्वास बहाल करता है, बल्कि यह कानूनी रूप से भी आवश्यक है.हालांकि, रमेश ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने अदालत के इस फैसले का पालन करने के बजाय, जानकारी साझा करने के दायरे को सीमित करने के लिए कानून में संशोधन करने की जल्दी दिखाई. उन्होंने आयोग की इस जल्दबाजी पर सवाल उठाते हुए पूछा कि चुनाव आयोग पारदर्शिता से इतना डरता क्यों है?हाल के दिनों में भारत के चुनाव आयोग द्वारा मैनेज किए जाने वाले चुनावी प्रक्रिया में तेज़ी से कम होती सत्यनिष्ठा से संबंधित हमारे दावों का जो सबसे स्पष्ट प्रमाण सामने आया है, वह यही है।
जयराम रमेश ने आगे कहा कि आयोग के इस कदम को जल्द ही कानूनी चुनौती दी जाएगी. उन्होंने दावा किया कि पारदर्शिता और खुलापन लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए अनिवार्य है. चुनाव आयोग का यह रवैया लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करने वाला है.चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर विपक्ष पहले भी सवाल उठा चुका है. जयराम रमेश के इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में एक बार फिर बहस तेज हो गई है. विपक्षी दलों का कहना है कि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है और किसी भी प्रकार की लापरवाही लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है.फिलहाल, चुनाव आयोग की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. लेकिन जयराम रमेश के इस पोस्ट ने आयोग की पारदर्शिता और जवाबदेही पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. यह देखना दिलचस्प होगा कि आयोग इस पर क्या कदम उठाता है और विपक्ष की कानूनी चुनौती का सामना कैसे करता है?