पिछले दिनों दर्शक दीर्घा से लोकसभा में दो युवाओं के कूदने की घटना से ना सिर्फ संसद की सुरक्षा पर सवाल उठ खड़े हुए हैं बल्कि इस मामले में सदन में गृह मंत्री अमित शाह के बयान की मांग पर संसद में रोज बवाल हो रहा है।
ऐसे में हंगामे के बीच संसद को बार-बार स्थगित करना पड़ रहा है। सख्त रुख अपनाते हुए दोनों सदनों से अब तक कुल 143 विपक्षी सदस्यों को निलंबित किया जा चुका है। इनमें से 97 लोकसभा से और 46 राज्यसभा से हैं। यह संख्या अभूतपूर्व है। इससे पहले 1989 में राजीव गांधी सरकार के दौरान भी संसद से 63 सांसदों को एक झटके में निलंबित कर दिया गया था।
1989 में क्या हुआ था?
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर को उनके ही अंगरक्षकों ने गोली मारकर कर दी थी। इस हत्याकांड की जांच के लिए जस्टिस ठाकरे की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने मार्च 1989 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी, जिसे 15 मार्च को लोकसभा में पेश किया गया था। इस रिपोर्ट में इंदिरा गांधी के विशेष सहायक रहे आरके धवन की संलिप्तता के संबंध में संदेह जताया गया था।
धवन पर जांच आयोग की उठी उंगली ने आग में घी डालने का काम किया था। विपक्षी सांसदों ने तब सदन में जबरदस्त हंगामा किया था। इसके परिणामस्वरूप, तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष ने कुल 63 सांसदों को सदन से निलंबित कर दिया था। इससे पहले कभी भी इतने बड़े पैमाने पर सांसदों को निलंबन नहीं हुआ था। उस वक्त राजीव गांधी की सरकार थी और कांग्रेस को प्रचंड बहुमत हासिल था। उसके पास लोकसभा में कुल 400 सांसद थे।
क्या कहा गया था जांच रिपोर्ट में?
रिपोर्ट में इंदिरा गांधी की हत्या की साजिश में आरके धवन की भूमिका पर गंभीर संदेह जताया गया था। पैनल की रिपोर्ट में कहा गया था, “ऐसे मजबूत संकेतक और कई कारक हैं, जो दिवंगत प्रधान मंत्री की हत्या की साजिश में प्रधान मंत्री के विशेष सहायक आर के धवन की संलिप्तता और संलिप्तता पर गंभीर संदेह पैदा करते हैं।”
जैसे ही ठक्कर आयोग की रिपोर्ट संसद में पेश की गई, विपक्ष ने विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया, ऐसा इसलिए क्योंकि आरके धवन तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी की टीम का हिस्सा थे और बाद में पार्टी में शामिल होकर कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव बन गए। तब निलंबन में टीडीपी, जनता पार्टी और सीपीएम समेत अन्य दलों के सांसद शामिल थे।
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च लेख के अनुसार, एक विपक्षी सदस्य, सैयद शहाबुद्दीन, जिन्हें निलंबित नहीं किया गया था, ने स्वेच्छा से खुद को निलंबित माने जाने के लिए पेश किया था और सदन से बाहर चले गए थे। इसके बाद एकजुटता दिखाते हुए तीन अन्य सांसदों-जीएम बनतवाला, एमएस गिल और शमिंदर सिंह- भी विरोध में सदन से बाहर चले गए थे।
1989 के इस सामूहिक निलंबन ने उस समय एक ही दिन में अधिकतम संख्या में निलंबन का एक नया रिकॉर्ड बनाया था। हालाँकि, निलंबित सांसदों ने अगले दिन लोकसभा अध्यक्ष से माफ़ी मांगी थी और उनका निलंबन रद्द कर दिया गया था।