श्रीरामजन्म भूमि पर मंदिर को ध्वस्त कर 1528 ई. में मुगल शासक बाबर के सेनापति मीरबांकी ने मस्जिद का निर्माण कराया था। सनातन समाज इसके खिलाफ तभी से संघर्षरत रहा। इसके कारण 76 युद्ध लड़े जाने का इतिहास है।
15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद संगठित समाज ने श्रीराम जन्मभूमि पर अधिकार हासिल करने की तैयारी की। यह वही दिन था जब 22/23 दिसंबर 1949 की मध्यरात्रि में विवादित परिसर में अचानक रामलला का प्राकट्य हो गया। कोई नहीं जानता कि भीतर विग्रह कहां से आ गए।
इसकी सूचना जंगल में आग की तरह फैली और फिर साधु-संतों ने वहां पहुंचकर विराजमान रामलला की आरती-पूजा शुरू कर दी। इस घटनाक्रम को 75 साल पूरे हो गये है। इस बीच प्राकट्य के 75 वें साल में रामलला के पुनर्प्राकट्य की भूमिका तय हो गयी है। रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की तिथि 22 जनवरी 2024 तय है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यजमान के रूप में रामलला का पूजन कर उनकी आरती उतारेंगे। इस प्राण प्रतिष्ठा के लिए नवीन मंदिर के साथ नवीन विग्रह का भी निर्माण हो रहा है। यह सब सुप्रीम कोर्ट की ओर से 9 नवंबर 2019 को दिए गए फैसले के जरिए संभव हो सका। खास बात यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी रामलला के पक्ष में तब आया जबकि उनका विवादित स्थल पर कब्जा तत्कालीन विधिक व्यवस्था जिसमें 10 साल से अधिक समय तक बिना किसी विवाद के कायम रहा। 22/ 23 दिसंबर 1949 को रामलला के प्राकट्य के बाद हिंदू महासभा के तत्कालीन पदाधिकारी गोपाल सिंह विशारद की अर्जी पर पूजा अर्चना नियमित रूप से चलते का आदेश सिविल कोर्ट ने दिया था। इसके बाद विवादित स्थल पर सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ने 1961 में स्वामित्व का दावा किया जबकि निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में राम चबूतरे पर दावा ठोंका था।
बाबा अभिराम दास सहित हनुमानगढ़ी के दर्जनों नागा संत नामजद
उधर प्रशासनिक आदेश पर इस प्रकरण में एक अपराधिक मुकदमा दर्ज किया गया और तत्कालीन चौकी इंचार्ज की रिपोर्ट पर विवादित स्थल को कुर्क कर सिटी बोर्ड चैयरमेन बाबू रामप्रिया दत्त को रिसीवर नियुक्त किया गया। मुकदमे में बाबा अभिराम दास समेत हनुमानगढ़ी के दर्जनों नागा संत नामजद थे। उन्हें जमानत पर रिहा किया गया। इसी मध्य गेट पर पुलिस ने ताला भी डलवा दिया जिसमें से पुजारी को ही प्रवेश की अनुमति दी गयी जबकि दर्शनार्थियों को गेट के बाहर से ही दर्शन करने को कहा गया। श्रीरामजन्म भूमि यज्ञ समिति के तत्वावधान में 1984 में सीतामढ़ी बिहार से वाया अयोध्या नई दिल्ली तक जन जागरण रथयात्रा निकाली गयी।
इस यात्रा के दिल्ली पहुंचने से पहले ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर को खालिस्तान समर्थक उग्रवादियों ने हत्या करा दी जिससे रथयात्रा यूपी की सीमा में स्थगित हो गयी। इसके बाद श्रीरामजन्म भूमि का ताला खोलने के लिए आंदोलन शुरू हुआ। उधर 30 जनवरी 1986 को अधिवक्ता उमेश चन्द्र पाण्डेय ने जिला जज की अदालत में बिना किसी आदेश के बंद ताले को खुलवाने की अर्जी दी। इसकी सुनवाई करते हुए जिला जज केएम पांडेय ने 1 फरवरी 1986 को ताला खोलने का आदेश ही नहीं दिया बल्कि जिला प्रशासन को ताला खुलवाने का निर्देश भी दिया।