चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर मोदी सरकार द्वारा लाए गए नए कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई है। इस मामले में बुधवार को केंद्र सरकार ने हलफनामा पेश किया। अपनी दलील में सरकार ने कहा कि यह धारण गलत है कि सलेक्शन पैनल में देश के मुख्य न्यायाधीश का होना अनिवार्य है।
और अगर बिना जज की उपस्थिति के पैनल चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करता है तो चुनाव आयोग अपना काम स्वतंत्र रूप से नहीं करेगा। केंद्र सरकार ने आरोप लगाया कि यह याचिका राजनीतिक विवाद पैदा करने के लिए डाली गई है।
बुधवार को केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए लाए गए नए कानून पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध किया। याचिका में तर्क दिया गया था कि चुनाव आयुक्तों का चयन करने वाले पैनल से भारत के मुख्य न्यायाधीश को हटा दिया गया है। केंद्र सरकार ने मामले में हलफनामा पेश किया और याचिकाकर्ताओं पर आरोप लगाया कि यह सिर्फ राजनीतिक विवाद पैदा करने के लिए की जा रही कोशिश मात्र है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के इस आरोप को खारिज कर दिया कि चुनाव आयुक्तों ज्ञानेश कुमार और सुखबीर संधू को ‘जल्दबाजी’ में नियुक्त किया गया था। सरकार ने तर्क दिया कि देश में इतने बड़े पैमाने पर लोकसभा चुनाव होने हैं और एक मुख्य चुनाव आयुक्त के भरोसे इस काम को पूरा किया जाना किसी भी सूरत में संभव नहीं है।
केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा- यह धारणा पूरी तरह से गलत है कि चुनाव आयोग तभी स्वतंत्र रूप से काम करेगा, जब नियुक्ति पैनल में कोई जज हो। चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था है। सरकार ने कांग्रेस नेता जया ठाकुर और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा सुप्रीॉम कोर्ट में दायर याचिका के जवाब में हलफनामा पेश किया था। याचिका में कहा गया था कि चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति को सिर्फ कार्यपालिका के हाथों में छोड़ना स्वस्थ, स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा हो सकता है।