चुनावी हार के बाद ममता-अखिलेश ने दिखाए तेवर, लेकिन पवार-उद्धव क्यों कांग्रेस के साथ?
Sharing Is Caring:

लोकसभा चुनाव में इंडिया अलायंस के जरिए बीजेपी को मात देने की कोशिश में कांग्रेस को उस समय तगड़ा झटका लगा जब तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में बुरी हार हुई। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की जीत के बाद इंडिया अलायंस में शामिल टीएमसी, जेडीयू, सपा जैसे दलों ने कांग्रेस को आंखें दिखानी शुरू कर दीं।

टीएमसी और जेडीयू नेताओं ने छह दिसंबर को बुलाई गई मीटिंग में जाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद यह बैठक बाद के लिए टाल दी गई। ममता बनर्जी, अखिलेश यादव आदि जैसे नेताओं द्वारा सामने आए बयान के बीच महाराष्ट्र में सहयोगियों ने कांग्रेस को राहत दी। शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) गुट लगातार कांग्रेस का समर्थन कर रही है।

चुनाव परिणामों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए शरद पवार ने कहा, ”मुझे नहीं लगता कि विधानसभा चुनावों के नतीजों का इंडिया अलायंस पर कोई प्रभाव पड़ेगा। इसकी बैठक में हम परिणामों का विस्तार से विश्लेषण करेंगे। पवार की बेटी और उनके एनसीपी गुट की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले ने कहा, ”विधानसभा और लोकसभा चुनाव पूरी तरह से अलग हैं। 2018 में, कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव जीते। लेकिन 2019 के लोकसभा में बीजेपी का पलड़ा भारी रहा।”

उद्धव सेना के नेता संजय राउत ने कहा कि कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया होता अगर उसने इन चुनावों में अपने सहयोगियों को साथ लिया होता। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी न केवल लोकसभा चुनाव बल्कि सभी राज्यों के चुनाव एकजुट होकर लड़ने का मुद्दा उठाएगी। उन्होंने कहा, ”हमें वोटों को अपने ही इंडिया अलायंस गुट के साझेदारों के बीच बंटने से बचाना चाहिए। हमें एकजुट होकर चुनाव लड़ना चाहिए। अगर हम ऐसा करते हैं, तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि हम हर राज्य का चुनाव नहीं जीत सकें।” एनसीपी और शिवसेना के इन बयानों से साफ है कि उसने टीएमसी, जेडीयू, सपा आदि जैसे तेवर कांग्रेस को नहीं दिखाए हैं। ऐसे में फिर सवाल उठता है कि आखिर क्यों एमवीए गठबंधन महाराष्ट्र में कांग्रेस का समर्थन कर रहा है।

‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से एमवीए सहयोगियों ने मजबूती से एक साथ रहने का विकल्प चुना है। पहला, महाराष्ट्र, जिसमें 48 लोकसभा सीटें हैं – जो उत्तर प्रदेश की 80 सीटों के बाद देश में सीटों के हिसाब से दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। यह एनडीए के लिए आसान नहीं माना जा रहा है, क्योंकि उसकी टक्कर, उद्धव ठाकरे वाले शिवसेना, शरद पवार वाली एनसीपी और कांग्रेस के साथ होने जा रही है। राज्य से जुड़े पिछले कुछ सर्वे भी सामने आए, जहां पर एनडीए को वैसे नतीजे नहीं मिले, जैसे यूपी, राजस्थान जैसे राज्यों में मिलते रहे। इसके अलावा, एमवीए के दो दल हाल में टूट गए और उद्धव ठाकरे की शिवसेना से एकनाथ शिंदे ज्यादतार विधायकों और सांसदों को लेकर अलग हो गए और मुख्यमंत्री बन गए। उधर, शरद पवार वाली एनसीपी भी टूटकर अलग हो गई और भतीजे अजित पवार कई सांसदों व विधायकों को लेकर महाराष्ट्र सरकार का हिस्सा हो गई। ऐसे में दोनों दल पहले की तुलना में कमजोर हो गए हैं और जानते हैं कि उनकी सर्वश्रेष्ठता उनकी एकता ही है।

कई सालों से कमजोर पड़ी कांग्रेस पार्टी एक समय में महाराष्ट्र की राजनीति में काफी लंबे समय तक हावी रही। शरद पवार के पार्टी छोड़कर एनसीपी बनाने के बाद भी दोनों दलों के बीच गठबंधन हुआ। कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार का साल 2014 तक महाराष्ट्र की राजनीति में वर्चस्व रहा। साल 1999 के बाद से राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में सीटों और वोट शेयर दोनों के मामले में कांग्रेस ने लगातार गिरावट देखी है। पार्टी न केवल 2024 के चुनावों में एनडीए को एक महत्वपूर्ण चुनौती देने के लिए बल्कि खुद को मजबूत करने के लिए भी एमवीए पर भरोसा कर रही है। शिवसेना और एनसीपी में फूट के बाद अब कांग्रेस एमवीए गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।

राज्यों में कांग्रेस की हार को स्वीकार करते हुए, महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा, ”अगर हम महाराष्ट्र सीमा के साथ (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के) निर्वाचन क्षेत्रों को देखें, तो कांग्रेस ने इन चुनावों में वहां बेहतर प्रदर्शन किया है। यह हमें यह विश्वास करने का कारण देता है कि हम भाजपा को कड़ी चुनौती दे सकते हैं।” उन्होंने यह भी दावा किया, ”केंद्रीय और राज्य भाजपा नेतृत्व के खिलाफ लोगों में गुस्सा और अशांति है। इसका असर लोकसभा चुनाव में दिखेगा।” अभी भले ही एमवीए एक साथ दिखाई दे रही हो, लेकिन सीटों का बंटवारा काफी मुश्किलों भरा रहेगा। तीनों दल राज्य की राजनीति में काफी अहम हैं और तीनों ही ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ने की उम्मीद रखेंगे। वहीं, अब जब लोकसभा चुनाव को महज कुछ ही महीने बचे हुए हैं, अब तक सीटों के बंटवारे पर कोई चर्चा तक नहीं शुरू हुई है।

Sharing Is Caring:

Related post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *