गजवा-ए-हिंद को लेकर दारुल उलूम का एक फतवा विवादों में आ गया है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने डीएम व एसएसपी को पत्र लिखकर फतवे का संज्ञान लेते हुए मुकदमा दर्जं कर जांच के आदेश दिये हैं।
आयोग का पत्र मिलते ही डीएम ने एसएसपी से वार्ता कर मुकदमा दर्ज करने को कहा। वहीं, एसडीएम देवबंद व सीओ देवबंद ने दोपहर बाद दारुल उलूम पहुंचकर प्रकरण की जांच शुरू कर दी है। दारुल उलूम के मोहतमिम अबुल कासिम नोमानी ने कहा कि भारत लोकतांत्रिक देश है और इसका गजवा-ए-हिंद से कोई सरोकार नहीं है। यह फतवा नौ साल पुराना है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से सहारनपुर के डीएम व एसएसपी को 21 फरवरी को एक पत्र लिखा। इसमें मदरसा दारुल उलूम की वेबसाइट पर आपत्तिजनक फतवे का उल्लेख किया गया। पत्र में कहा गया है कि आयोग बाल अधिकारों और अन्य संबंधित मामलों की रक्षा के लिए बाल अधिकार संरक्षण आयोग (सीपीसीआर) अधिनियम, 2005 की धारा 3 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है। आयोग को दारुल उलूम देवबंद मदरसे की वेबसाइट पर एक और आपत्तिजनक सामग्री मिली है।
आयोग ने लिया संज्ञान
उर्दू में अपलोड एक फतवा गज़वा-ए-हिंद को लेकर है। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी इसमें शहीद होगा वह एक महान शहीद है। कहा कि दारुल उलूम देवबंद, एक मदरसा इस्लामी शिक्षा का एक शैक्षणिक निकाय है और पूरे दक्षिण एशिया में मदरसों को संबद्ध करता है। इस तरह के फतवे बच्चों में अपने ही देश के प्रति नफरत पैदा कर रहे हैं और अंततः उन्हें अनावश्यक मानसिक या शारीरिक पीड़ा पहुंचा रहे हैं। यह किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 का उल्लंघन है। आयोग का पत्र मिलते ही प्रशासिनक अफसर हरकत में आ गए। एसडीएम देवबंद व सीओ देवबंद के नेतृत्व में एक टीम गठित कर जांच सौंपी गई। साथ ही प्रकरण में मुकदमे की तैयारी शुरू कर दी गई है। सहारनपुर के एसएसपी विपिन ताडा ने बताया, प्रकरण में जांच की जा रही है। मुकदमा दर्ज कर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
सहारनपुर डीएम दिनेश चंद्र का कहना है कि आयोग की ओर से आदेश दिए गए हैं कि यह फतवा बाल अधिकारों के खिलाफ है। आदेश में मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए गए हैं। पत्र एसएसपी को भेज दिया गया है। एसडीएम देवबंद व सीओ देवबंद को जांच सौपी गई है। जांच में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
गजवा-ए-हिंद से कोई सरोकार नहीं
दारुल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने बताया, बाल सरंक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) से कोई नोटिस नहीं मिला है। दारुल उलूम ने अपनी बात प्रशासनिक अधिकारियों को बता दी है। फतवा पुराना है। वर्ष 2015 में उक्त फतवा हदीस की किताब के हवाले से दिया गया था। जो आज भी उनकी वेबसाईट पर मौजूद है। बर्रे-सगीर (एशिया देशो) में 711-713 ईसवी में मोहम्मद बिन कासिम का आक्रमण ही गजवा-ए-हिंद था। अब भारत लोकतांत्रिक देश है और इसका गजवा-ए-हिंद से कोई सरोकार नहीं है।
2015 का फतवा: यह था सवाल-जवाब
क्या हदीस में गज़वा ए हिंद का जिक्र है। जो बर्रे सगीर (मौजूदा एशियाई क्षेत्र) में होगा। जिसमें जो शहीद होगा वह अज़ीम शहीद कहलाएगा जो गाज़ी होगा वो जन्नती।
यह मिला था जवाब
दारुल उलूम के फतवा विभाग ने इसका जवाब इमाम निसाई के हवाले से देते हुए कहा कि साहबी अबू हुरैरा रज़ि. से रिवायत है की है और पैगम्बर मोहम्मद के हवाले से जिक्र किया है। सवाल के जवाब में दारुल उलूम की ओर से फतवा जारी किया गया। फतवे में ‘सुन्न अल नसा नाम की 211 ईसवी की किताब का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इस किताब में गजवा-ए-हिंद को लेकर पूरा का चैप्टर है। इसमें हजरत अबू हुरैरा की हदीस का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इस लड़ाई में मैं शामिल होऊंगा। यदि शहीद हो गया तो महान शहीद कहलाऊंगा और जिंदा रहा तो गाजी कहलाऊंगा।