क्या है चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारा, जिसका PM मोदी ने रूस में किया जिक्र; भारत के लिए कैसे वरदान?
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो दिवसीय रूस के दौरे पर है। अपनी यात्रा के दूसरे दिन मंगलवार को उन्होंने मॉस्को में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए रूस को भारत का ‘सुख-दुख का साथी’ और ‘सबसे भरोसेमंद दोस्त’ बताते हुए पिछले दो दशकों में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के नेतृत्व की प्रशंसा की।

इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत और रूस चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारे पर काम कर रहे हैं।

पीएम मोदी ने कहा कि वे गंगा-वोल्गा संवाद के माध्यम से एक-दूसरे को जान रहे हैं। पीएम ने कहा, “दो साल पहले उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे से पहली वाणिज्यिक खेप यहां पहुंची थी… अब हम चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारे पर भी काम कर रहे हैं। “

क्या है चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारा?
यह भारतीय बंदरगाह चेन्नई और रूसी बंदरगाह व्लादिवोस्तोक के बीच प्रस्तावित 10,300 KM लंबा समुद्री मार्ग है। अनुमान है कि इस गलियारे के बन जाने के बाद सुदूर पूर्व क्षेत्र में भारतीय और रूसी बंदरगाहों के बीच परिवहन समय में 16 दिन तक की कमी आ जाएगी। ऐसा अनुमान है कि चेन्नई से व्लादिवोस्तोक तक माल परिवहन में 24 दिन लगेंगे, जो फिलहाल 40 दिन लगते हैं।

भारत के पश्चिमी तट पर स्थित मुंबई और रूस के सेंट पीटर्सबर्ग के बीच वर्तमान व्यापार मार्ग 16,066 किलोमीटर लंबी है। चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारा बनने से भारत और रूस के बीच व्यापार मार्ग की दूरी घटकर 10,371 किलोमीटर रह जाएगी। यह स्वेज नहर के जरिए गुजरने वाली मौजूदा रूट की लंबाई से भी कम है। पूर्वी समुद्री गलियारा बन जाने से भारत के लिए रूस के अलावा चीन, जापान तक पहुंच भी सरल और सुलभ हो जाएगी।

चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारा क्यों अहम?
मौजूदा दौर में पश्चिम एशिया में तनाव चल रहा है और लाल सागर में सोमालियाई डाकुओं का खतरा बढ़ गया है। इससे वैश्विक व्यापार बाधित हुआ है। ऐसी स्थिति में चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारे को वैश्विक व्यापार को गति देने के लिए पुनर्जीवित किया जा रहा है। इस रूट के बन जाने से भारत के दक्षिणी बंदरगाह और रूस के सुदूर पूर्व के बीच बेहतर माल और यात्री संपर्क स्थापित हो सकेगा और भारत से मशीनरी, ऑटो पार्ट्स और इंजीनियरिंग सामान का निर्यात हो सकेगा। इससे द्विपक्षीय सहयोग बढ़ेगा और दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं का विकास हो सकेगा।

2019 में रखा गया था प्रस्ताव
इस गलियारे का प्रस्ताव सितंबर 2019 में रखा गया था, जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वी आर्थिक मंच की बैठक के लिए व्लादिवोस्तोक का दौरा किया था। तब दोनों देशों ने कोयला, तेल, तरलीकृत प्राकृतिक गैस, उर्वरक, कंटेनर और अन्य प्रकार के कार्गो के परिवहन के लिए चेन्नई और व्लादिवोस्तोक के बीच एक समुद्री मार्ग विकसित करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। हालांकि, यह पहले से ही द्विपक्षीय व्यापार का हिस्सा हैं। इसमें अन्य रूसी और अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाहों पर जहाजों के आने की भी परिकल्पना की गई है।

कोविड महामारी की वजह से इस परियोजना में कोई प्रगति नहीं हो सकी। फिर 2022 में शुरू हुए यूक्रेन युद्ध ने भी इसकी संभावित प्रगति को रोक दिया। इस योजना में अब भारत और रूस दोनों पक्षों की काफी रुचि है।

भारत के लिए कैसे खास
स्वेज मार्ग की तुलना में पूर्वी समुद्री गलियारा से सफर करने पर 5,608 किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी।इस वजह से लॉजिस्टिक्स लागत में भारी कमी आएगी और दोनों देशों के बीच माल परिवहन दक्षता में बढ़ोत्तरी होगी। 2022-23 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और कनाडा से 56 मिलियन टन कोकिंग कोल का आयात किया है। इस रूट के बन जाने से भारत रूस से कोकिंग कोल मंगवा सकेगा, जो पश्चिम के कोकिंग कोल की कक्वालिटी के बराबर है और सस्ता है।

इससे भारत को डबल फायदा होगा। एक तो सस्ता कोल मिलेगा और दूसरा उसकी ढुलाई पर भी कम पैसे खर्च होंगे। अनुमान है कि ऑस्ट्रेलिया से यही कोयला मंगाने की तुलना में रूस से मंगवाने पर प्रति टन 12 डॉलर की कमी आएगी। इसके अलावा भारत बड़े मैमाने पर उर्वरक का आयात करता है। इन सबकी ढुलाई लागत कम हो जाएगी। दूसरी तरफ भारतीय सामान के लिए नया बाजार मिल सकेगा।

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