क्या चंद्रशेखर आजाद की जीत ने किया मायावती को मजबूर
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बहुजन समाज पार्टी यानी BSP की सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। साथ ही राष्ट्रीय समन्वयक का पद भी लौटा दिया है। खास बात है कि बीते साल दिसंबर में ही उन्होंने भतीजे आनंद से पद छीन लिया था।

अब मायावती के इस यूटर्न को लेकर राजनीतिक चर्चाएं तेज हो गई हैं। अटकलें हैं कि इस फैसले की एक वजह उत्तर प्रदेश के नगीना लोकसभा सीट से चंद्रशेखर आजाद की जीत भी हो सकती है, जो बहुजन आंदोलन के एक विकल्प के तौर पर भी उभरते नजर आ रहे हैं। हालांकि, इसे लेकर पार्टी की ओर से साफतौर पर कुछ नहीं कहा गया है।

क्यों बदला फैसला?
पद से हटाए जाने के बाद ही आनंद ने लोकसभा चुनाव प्रचार से दूरी बना ली थी। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी को हारे हुए उम्मीदवारों से भी जानकारी मिली है कि अगर आनंद प्रचार अभियान जारी रखते, तो बसपा का कोर वोटर माने जाने वाले जाटव दलित और मुस्लिमों का एक वर्ग समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन का समर्थन नहीं करता।

अब एक ओर जहां मायावती कांग्रेस और सपा के खिलाफ हमलावर रहती हैं। वहीं, आनंद शिक्षा, गरीबी जैसे मुद्दों को लेकर भाजपा के खिलाफ बोल रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार, कुछ नेताओं का कहना है कि आनंद के जाने ने दलितों और मुसलमानों में संदेश दिया है कि मायावती भाजपा के दबाव में हैं। अखबार से बातचीत में एक नेता ने कहा, ‘उनका वापस आना बसपा को इस टैग से मुक्ति दिलाने में मदद करेगा कि पार्टी भाजपा की बी टीम है। यह जाटवों और अन्य दलितों के हमारे कोर वोटर बेस में फिर भरोसा तैयार करने में सहायक होगा और लोकसभा चुनाव में हार के बाद निराश कैडर में फिर ऊर्जा भर देगा।’

चंद्रशेखर आजाद की जीत
बीएसपी ने 2019 लोकसभा चुनाव में नगीना सीट से जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार पार्टी चौथे स्थान पर रही। अखबार के अनुसार, बसपा में कुछ का मानना है कि मायावती का फैसला बदलने का एक कारण आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) नेता आजाद की जीत भी हो सकती है। सपा में आनंद की बहाली की वजह संभावित रूप से आजाद के दलित और युवा नेता के तौर पर उभरना भी हो सकती है।

अखबार के अनुसार, बसपा के एक नेता ने कहा, ‘अब लोकसभा में बसपा का एक भी सांसद नहीं है और आजाद देशभर में घूमते हुए सदन में दलितों और मुसलमानों के मुद्दे को उठाएंगे। यह एक दलित नेता और मायावती के विकल्प के तौर पर उभरने में उनकी मदद करेगा और बसपा को कमजोर करेगा। इस डैमेज कंट्रोल के लिए आनंद की वापसी जरूरी थी।’ कहा जा रहा था कि लोकप्रिय चेहरे की कमी भी एक वजह हो सकती है, जिसके चलते बसपा को लोकसभा चुनाव में झटका लगा।

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