केजरीवाल का आरोप, भाजपा अध्यादेश के जरिये दिल्ली को हथियाना चाहती है
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नई दिल्ली, 20 जून . दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को आरोप लगाया कि भाजपा अध्यादेश के जरिए दिल्ली हथियाने की कोशिश कर रही है.

केजरीवाल ने केंद्र सरकार की उसके अध्यादेश और हाल ही में स्थापित राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) के दुरुपयोग के लिए आलोचना की.

केजरीवाल ने कहा कि यह अध्यादेश मंत्रियों, मुख्यमंत्री और कैबिनेट के ऊपर अफसरों को बिठाता है.

उन्होंने कहा कि इसकी सबसे खतरनाक बात यह है कि हर विभाग में अब अंतिम निर्णय मंत्री का नहीं, विभाग सचिव का होगा. सचिव मंत्री के निर्णय को खारिज कर सकता है. इसके अलावा, मुख्य सचिव को कैबिनेट से ऊपर रखा जाएगा, जिससे उन्हें यह निर्धारित करने का अधिकार होगा कि कैबिनेट द्वारा किए गए कौन से फैसले सही हैं.

केजरीवाल ने यह भी आरोप लगाया कि एनसीसीएसए में फैसलों को पलटने के लिए, लोगों की इच्छा को पलटने के एक स्पष्ट प्रयास में मुख्यमंत्री के ऊपर दो अधिकारियों को नियुक्त किया गया है.

केजरीवाल ने आरोप लगाया, इन अधिकारियों की सहमति के बिना कोई भी प्रस्ताव कैबिनेट में नहीं लाया जा सकता है. यह कदम केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण में अधिकारियों के हाथों में प्रभावी रूप से सभी निर्णय लेने की शक्ति देता है.

केजरीवाल ने यह भी दावा किया कि एनसीसीएसए एक तमाशा है, क्योंकि इसके तहत किए जाने वाले फैसले पहले से ही केंद्र द्वारा निर्धारित किए जाते हैं, जो विधानसभा चुनावों में हार का सामना करने के बावजूद चालाक तरीके से इस निकाय के माध्यम से दिल्ली को हथियाने का प्रयास कर रहा है.

उन्होंने कहा, हमें पहले यह समझने की जरूरत है कि केंद्र इस अध्यादेश के माध्यम से क्या करने की कोशिश कर रहा है. दिल्ली में लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार अब इस अध्यादेश के माध्यम से शहर पर कब्जा करने का प्रयास कर रही है.

केजरीवाल ने कहा कि अध्यादेश के प्रावधान सरकारी अधिकारियों को कैबिनेट के फैसलों को रद्द करने का अधिकार देते हैं.

सीएम ने कहा, केंद्र सरकार ने इस अध्यादेश में कई प्रावधान शामिल किए हैं, जिसके माध्यम से उसके द्वारा नियुक्त सरकारी अधिकारी दिल्ली की चुनी हुई सरकार द्वारा किए गए हर फैसले की समीक्षा करता है.

मुख्यमंत्री ने कहा, एक सरकारी अधिकारी अब दिल्ली कैबिनेट के फैसलों की भी समीक्षा करेगा. इसलिए, सरकार के प्रत्येक विभाग में केंद्र द्वारा नियुक्त अधिकारी, न कि मंत्री, सर्वोच्च प्राधिकारी होगा.

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