केंद्र की नई शिक्षा नीति का पालन क्यों नहीं करता तमिलनाडु? नो-डिटेंशन पॉलिसी पर भी अलग रास्ता अपनाया
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केन्द्र सरकार ने सोमवार को नो-डिटेंशन पॉलिसी समाप्त कर दी. इसका मतलब ये है कि मौजूदा अकादमिक सत्र ही से पांचवी और आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे फेल होने की स्थिति में उसी कक्षा में रोक लिए जाएंगे. यानी पहले की व्यवस्था की तरह उन्हें अगली क्लास में प्रमोट नहीं किया जाएगा. केन्द्रीय विद्यालय, जवाहर नवोदय विद्यालय समेत केन्द्र सरकार के अधीन चल रहे सभी स्कलों में ये नियम लागू होगा. केन्द्र सरकार का ये फैसला सीधे तौर पर 3 हजार स्कूलों को प्रभावित करेगा.इनमें सैनिक स्कूल से लेकर एकलव्य म़ॉडल आवासीय स्कूल भी शामिल हैं, जिन्हें रक्षा मंत्रालय और आदिवासी मंत्रालय चलाता है. यहीं ये भी गौर किया जाना चाहिए कि जैसे ही मोदी सरकार ने नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करने का ऐलान किया, चंद घंटे के भीतर तमिलनाडु की स्टालिन सरकार का एक अलग रूख सामने आ गया. तमिलनाडु की सरकार ने कहा कि उनके राज्य में 8वीं तक नो डिटेंशन पॉलिसी जारी रहेगी. यानी वहां आठवीं कक्षा तक बच्चे अगर फेल हुए भी तो अगली कक्षा में प्रमोट कर दिए जाएंगे.
BJP के अन्नामलाई ने क्या कहा?
केन्द्र सरकार फैसले पर राजनीति शुरू हो गई. भारतीय जनता पार्टी के तमिलनाडु ईकाई के अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने कहा कि केन्द्र का फैसला शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए और छात्रों में सीखने की ललक बढ़ाने के लिए है. इसी के साथ उन्होंने दक्षिण के दूसरे राज्यों – खासकर केरल और तेलंगाना की तुलना में तमिलनाडु की शिक्षा व्यवस्था के पिछड़ने की बात की. जाहिर सी बात है कि तमिलनाडु सरकार का केन्द्र के फैसले से अलग रूख पहली बार नहीं है. केन्द्र की नई शिक्षा नीति पर भी तमिलनाडु को आपत्ति थी.
नई शिक्षा नीति पर तमिलनाडु की मुख्य आपत्तियां इस प्रकार की थीं –
पहला – तमिलनाडु को केन्द्र सरकार की नई शिक्षा नीति में मौजूद थ्री-लैंग्वेज फॉर्मूला (तीन भाषा पढ़ाने का फॉर्मूला) पसंद नहीं आया. वह तमिल और अंग्रेजी के साथ आगे बढ़ना चाहती थी और उसने ऐसा ही किया. संस्कृत या फिर हिन्दी को तीसरी भाषा के तौर पर स्वीकार करने में तमिलनाडु की हिचकिचाहट थी. तमिलनाडु में साल 1968 ही से दो-भाषा सिखाए जाने वाली शिक्षा पद्धति लागू है.
दूसरा – तमिलनाडु सरकार के समग्र शिक्षा अभियान को लेकर केन्द्र सरकार की ओर से फंड नहीं जारी करने पर भी तमिलनाडु को आपत्ति थी. साथ ही, उसे केन्द्र सरकार के पीएम-श्री से जोड़ने को भी तमिलनाडु की सरकार ने सही नहीं माना. इसके अलावा, तमिलनाडु की सरकार को तीसरी, पांचवी और आठवीं कक्षा के लिए भी सरकारी परीक्षा कराए जाने पर आपत्ति थी. साथ ही, वे चार साल के डिग्री प्रोग्राम को भी सही नहीं मानते. लिहाजा, उन्होंने नई शिक्षा नीति का विरोध किया था.

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