किसान आंदोलन से क्यों दूर हैं राकेश टिकैत, यूपी में नहीं दिल्ली चलो का जोर; कैसे हुआ अलगाव
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हजारों किसानों ने पंजाब से दिल्ली की ओर कूच कर दिया है। इन किसानों की मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की गारंटी दी जाए। 2020 में हुए बड़े किसान आंदोलन की तरह इसमें 50 से ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं।

लेकिन एक बात चौंकाने वाली है और हर किसी के जेहन में यह सवाल आ रहा है कि 2020 में किसान आंदोलन का चेहरा बने राकेश टिकैत कहां हैं। वह इस आंदोलन में नजर नहीं आ रहे हैं, जो उस दौरान चेहरा बन गए थे और उनकी ही बात को हर दिन मीडिया कवरेज भी मिलती थी। यहां तक कि उनकी एक अपील पर पश्चिम यूपी, हरियाणा के हजारों किसानों ने गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर डेरा जमा लिया था।

फिर सवाल है कि इस बार राकेश टिकैत कहां हैं? दरअसल नवंबर 2020 में तमाम किसानों संगठनों के प्रतिनिधित्व के लिए संयुक्त किसान मोर्चा का गठन हुआ था। इस संगठन में गुरनाम सिंह चढ़ूनी, जोगिंदर सिंह उग्राहन, बलबीर सिंह राजेवाल, दर्शनपाल जैसे नेता शामिल थे। इसके अलावा राकेश टिकैत भी गाजीपुर बॉर्डर पर लगे मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे। लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक संयुक्त किसान मोर्चे में दोफाड़ हो चुकी है। यह संगठन सरकार से किसानों के मसले पर बातचीत के लिए बना था। सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के बीच 11 राउंड की बातचीत भी हुई और कृषि कानून वापस हो गए थे।

इसके बाद आंदोलन समाप्त हुआ और यूपी, हरियाणा, पंजाब समेत अलग-अलग राज्यों के किसान घर लौट गए। लेकिन बात तब बिगड़ी, जब 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव आए। किसानों के एक गुट ने चुनाव लड़ा, जो चाहते थे कि आम आदमी पार्टी से गठबंधन कर लिया जाए। एक गुट चाहता था कि दूर ही रहा जाए। अंत में बलबीर सिंह राजेवाल के नेतृत्व में संयुक्त किसान मोर्चा बना और 93 सीटों पर चुनाव लड़े। हालांकि सभी सीटों पर इनकी जमानत ही जब्त हो गई। पिछले महीने ही बलबीर सिंह राजेवाल के नेतृत्व में उन 5 संगठनों ने संयुक्त किसान मोर्चे में वापसी कर ली, जिन्होंने चुनाव लड़ा था।

फिर भी मतभेद खत्म नहीं हुए। इस बार के आंदोलन का नेतृत्व जगजीत सिंग डल्लेवाल कर रहे हैं और उन्होंने एकतरफा ही दिल्ली कूच का ऐलान किया है। इसके अलावा नए संगठन किसान मजदूर संघर्ष समिति के मुखिया सरवन सिंह पंढेर भी आंदोलन का चेहरा बने हैं। कहा जा रहा है कि पुराने नेताओं को भरोसे में नहीं लिया गया है। खबर है कि किसान नेताओं के बीच फंड की हेराफेरी, विदेशी फंडिंग जैसे कई मसलों पर मतभेद हैं। पुराने नेताओं में से कई लोगों का कहना है कि वह इस आंदोलन का हिस्सा नहीं हैं। वहीं कुछ ने वेट ऐंड वॉच की रणनीति अपना रखी है।

कहां हैं टिकैत और गुरनाम सिंह चढ़ूनी जैसे नेता

इस बारे में पूछे जाने पर गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा कि मुझे कोई न्योता नहीं मिला है। मेरे इस आंदोलन के बारे में कोई सुझाव भी नहीं लिया गया। कुछ संगठनों ने अपने स्तर पर यह फैसला लिया है। संयुक्त किसान मोर्चा ने बयान जारी किया है कि हम हिस्सा नहीं लेंगे और यह गलत तरीका है। जिन संगठनों ने इस आंदोलन से दूरी बनाई है, उममें भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी), भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राहन) शामिल हैं। एकता उग्राहन गुट का तो कहना है कि वे पंजाब सरकार के खिलाफ 24 फरवरी से चंडीगढ़ में आंदोलन करेंगे। इसके अलावा हरियाणा और यूपी के तमाम किसान आंदोलन भी इससे दूर हैं। इसी वजह से अभी यूपी और हरियाणा से लगे दिल्ली के बॉर्डरों पर फिलहाल कोई ज्यादा तनाव नहीं है।

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