कर्नाटक चुनाव : ईदगाह मैदान के मुद्दे की तपिश करेगी चुनाव को प्रभावित
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कर्नाटक के दो जुड़वा शहर हैं हुबली और धारवाड़। दोनों के बीच दूरी मानो है ही नहीं और प्रशासनिक व्यवस्था ज्यादातर धारवाड़ से चलती है। हुबली को व्यावसायिक शहर होने के कारण छोटा मुंबई कहा जाता है तो धारवाड़ को शिक्षा का केंद्र होने के कारण विद्या काशी भी कहते हैं।

इनके अलावा राजनीति से जुड़ी बात यह है कि नब्बे के दशक के आरंभ से ही यह क्षेत्र सांप्रदायिक आधार पर बेहद संवेदनशील रहा।

करीब डेढ़ साल पहले पुलिस को इलाके में न घुसने देने का मामला भी काफी चर्चित रहा था। इसके बाद पुलिस ने जवाबी कार्रवाई में अल्पसंख्यक समुदाय के सौ से ज्यादा मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार कर लिया। राजनीतिक दल यहां के चुनाव को इसी तरह के सांप्रदायिक मुद्दों पर बांधे रखना चाहते हैं।

भाजपा के दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार हुबली सेंट्रल सीट से कई बार विधायक रहे हैं। इस बार उन्हें भाजपा ने अबतक टिकट नहीं दिया है। शेट्टार ने बगावती तेवर अपनाते हुए हर हाल में यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। इस जिले में अभी सात में से पांच सीटें भाजपा के पास हैं और दो कांग्रेस के पास। भाजपा नेता प्रहलाद जोशी की हुबली-धारवाड़ संसदीय सीट में हावेरी जिले की शिगगांव सीट भी आती हैं। यहां से प्रदेश के मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई फिर से भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में होंगे।

क्या था ईदगाह मैदान विवाद
हुबली का ईदगाह मैदान एक मुस्लिम संगठन के पास लीज पर था और इसमें साल में दो बार नमाज होने के अलावा खेल और सांस्कृतिक गतिविधियां ही ज्यादा होती थीं। 31 साल पहले गणतंत्र दिवस के दिन भाजपा के नेताओं ने यहां तिरंगा फहराया तो विरोध में तनाव हो गया। इसके बाद यह मामला सुलगता रहा और 1994 में उमा भारती ने हुबली मैदान पहुंचने की घोषणा की।

पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया लेकिन इसके बाद जुटी भीड़ पर फायरिंग में चार लोगों की मौत हो गई। भाजपा ने इस मुद्दे पर प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर खूब प्रहार किए, वहीं, कांग्रेस नेता इसे माहौल बिगाड़ने की साजिश करार देते रहे। वैसे अब इसका नाम ईदगाह मैदान से बदलकर कित्तू रानी चैनम्मा मैदान रख दिया गया है लेकिन इस मुद्दे के इर्द-गिर्द अब भी यहां की राजनीति चलती रहती है।

लिंगायतों के होने से भाजपा मजबूत कांग्रेस भी कर सकती है पलटवार
इस क्षेत्र में धार्मिक ध्रुवीकरण के बीच भाजपा के मजबूत वोटर समुदाय लिंगायतों की संख्या अच्छी खासी है। सत्ता विरोधी रूझान की काट के लिए भाजपा ने इस बार यहां कई नए चेहरों पर दांव लगाया है। शेट्टर के अलावा कालाघटगी सीट से वर्तमान विधायक का टिकट काटकर कांग्रेस से आए एक नेता को मौका दिया गया है। पूर्व सीट पर कांग्रेस विधायक अभय प्रसाद के सामने यहां के मशहूर न्यूरो सर्जन डॉ क्रांति किरण पर पार्टी ने दांव लगाया है। वरिष्ठ पत्रकार नरसिंह मूर्ति पैती कहते हैं कि कई स्थानीय समीकरणों के कारण मुकाबला कड़ा होगा।

मुख्यमंत्री की सीट का समीकरण
शिवमोगा से हुबली जाते हुए बीच में हावेरी जिला पड़ता है। इस जिले में अधिकांश सीटें कस्बाई और ग्रामीण इलाके की हैं लेकिन मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई के शिगगांव क्षेत्र के कारण यह विधानसभा खास हो जाती है। लोगों ने कहा, सीएम की सीट होने के कारण उन्हें परेशानी तो नहीं होगी लेकिन धारवाड़ के चर्चित नेता के कांग्रेस से मैदान में उतरने से मुकाबला कड़ा जरूर हो जाएगा। लिंगायतों में भाजपा की पैठ कम करने के लिए कांग्रेस ने यहां लिंगायत नेताओं को ही आगे बढ़ाया है।

व्यापारी जीसी पाटिल का मानना है कि मुख्यमंत्री होने के नाते भाजपा को सीट जीतने में आसानी होगी लेकिन भ्रष्टाचार सहित दूसरे मुद्दे यहां भी हावी हैं। पिछली बार हावेरी जिले में भाजपा को छह में पांच सीटें मिली थीं। पाटिल कहते हैं पूरे जिले में इस बार मुकाबला बराबरी का होगा। जूता व्यापारी रियाज अहमद कहते हैं कि कांग्रेस के पूर्व सीएम सिद्धारमैया अच्छा बोलते हैं और लोग उन्हें पसंद भी करते हैं। हनगल कस्बे में मोबाइल की दुकान चलाने वाले मौ सईद का मानना है कि इस बार मुस्लिम वर्ग में वोटों का बंटवारा नहीं होगा।

भ्रष्टाचार से नाराजगी
प्रदेश सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ नाराजगी यहां भी झेलनी पड़ सकती है। ऑटोमोबाइल व्यापारी युद्दु पाटिल कहते हैं, प्रदेश सरकार ने सही तरह से काम किया होता तो इस तरह से नाराजगी नहीं झेलनी पड़ती। उन्होंने केंद्र सरकार के काम पर मुहर लगाई लेकिन स्थानीय तौर पर भ्रष्टाचार की बात कही। रामगौड़ा कहते हैं कि नेताओं ने काम करने से ज्यादा अपनी जेब भरने में ज्यादा रूचि रखी है। वैसे जुबली सर्किल पर मिठाई की दुकान चलाने वाले संजू कहते हैं, मोदी के नाम पर ही वोट डालते हैं और आगे भी डालेंगे।

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