प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को हराने के लिए बने 28 दलों के गठबंधन INDIA अलायंस में इन दिनों सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। इसकी ताजा मिसाल तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दी है।
ममता ने साफ कर दिया है कि पश्चिम बंगाल में वह अकेले चुनावी मैदान में उतरेंगी। इससे पहले वह कांग्रेस के लिए दो सीटें छोड़ने की बात कर रही थीं लेकिन अब दीदी ने सभी 42 सीटों पर दो-दो हाथ करने का ऐलान कर दिया है।
ममता ने गठबंधन पर क्या कहा
ममता बनर्जी ने यह ऐलान तब किया है, जब एक दिन पहले ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि सीटों के बंटवारे पर तृणमूल कांग्रेस के साथ बातचीत चल रही है। राहुल के बयान के अगले ही दिन बुधवार को ममता ने साफ कर दिया कि उन्होंने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए राज्य में सीटों के बंटवारे पर कांग्रेस में किसी से बात नहीं की है। बनर्जी ने पूर्वी बर्द्धमान के लिए रवाना होने से पहले पत्रकारों से कहा, “मैंने सीटों के बंटवारे पर कांग्रेस में किसी से बात नहीं की है।” उन्होंने कहा, “कांग्रेस को अपने दम पर 300 सीटों पर चुनाव लड़ने दीजिए। क्षेत्रीय दल एकजुट हैं और बाकी सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, हम उनके (कांग्रेस) किसी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
डैमेज कंट्रोल की कोशिश
कांग्रेस की तरफ से इस संकट के समाधान की कोशिशें तेज हो गई हैं। मंगलवार को ही राहुल गांधी ने कहा था कि ममता बनर्जी और उनके परिवार के बीच अच्छी ट्यूनिंग है। बुधवार को अब कांग्रेस महासचिव और कम्यूनिकेशन इंचार्ज जयराम रमेश ने कहा कि ममता बनर्जी पहले से कहती आ रही हैं कि हम बीजेपी को हराना चाहते हैं और हम बीजेपी को हराने के लिए कुछ भी करेंगे। ऐसे में राहुल गांधी ने साफ कहा है कि ममता जी और टीएमसी इंडिया गठबंधन के बहुत मजबूत स्तंभ हैं। हम ममता जी के बिना गठबंधन की कल्पना नहीं कर सकते।
रमेश ने कहा कि इंडिया गठबंधन पश्चिम बंगाल में गठबंधन बनाकर लड़ेगा। उन्होंने न्याय यात्रा में ममता के शामिल होने के मुद्दे पर कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने कई बार घोषणा की है कि गठबंधन के सभी दलों को भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है।
ममता-कांग्रेस में खटपट क्यों?
दरअसल, ममता इंडिया अलायंस से तीन मुद्दों पर नाराज हैं। पहला- वह राज्य में वाम दलों को गठबंधन में शामिल नहीं करना चाहती हैं और कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें देकर 40 पर खुद लड़ना चाहती हैं। वह एक महीने से दो सीट के ऑफर पर जवाब का इंतजार कर रही है लेकिन कांग्रेस ने कोई जवाब नहीं दिया। दूसरा- ममता कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी के बयानों से आहत हैं। वह उनकी बयानबाजी पर लगाम चाहती हैं लेकिन कांग्रेस आलाकमान के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रहा।
इंडिया गठबंधन की बेंगलुरू में हुई दूसरी बैठक में लालू यादव और हालिया वर्चुअल मीटिंग में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इस पर सवाल उठा चुके हैं कि जब हम गठबंधन में शामिल हैं तो सहयोगी दलों पर इस तरह की टीका-टिप्पणी सही नहीं है। इससे पब्लिक में गलत संदेश जाता है। और तीसरा- ममता नहीं चाहतीं कि इंडिया अलायंस में नीतीश कुमार को कोई अहम पद मिले या उन्हें गठबंधन का चेहरा बनाया जाए, जबकि कांग्रेस नीतीश को गठबंधन का संयोजक बनाने को तैयार है। नई दिल्ली में हुई मीटिंग में ममता ने ही नीतीश के नाम का विरोध किया था। ममता कांग्रेस और वाम दलों से इस बात को लेकर भी गुस्से में हैं क्योंकि पिछले साल जुलाई में हुए पंचायत चुनावों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। टीएमसी के मुताबिक उसमें बीजेपी के साथ कांग्रेस, और वाम दल भी शामिल थे।
नीतीश कौन सी टेंशन दे रहे?
वैसे तो विपक्षी दलों के एकजुट करने की पहल नीतीश कुमार ने ही शुरू की थी और उन्ही की कोशिशों के बाद 28 दलों का महागठबंधन बन सका। लेकिन जैसे-जैसे इस अलायंस में कांग्रेस हावी होती गई, वैसे-वैसे नीतीश किनारे होते गए। मुंबई बैठक में नाराजगी की खबरों के बाद नई दिल्ली की बैठक के बाद नीतीश ने भी इंडिया गठबंधन के नेताओं को टेंशन देना शुरू कर दिया।
पिछले साल दिसंबर के आखिरी दिनों में जब जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया, उससे कुछ दिनों पहले से ही नीतीश के पाला बदलने जैसी अटकलें तेज हो गई हैं। इसे नीतीश का प्रेशर पॉलिटिक्स माना जा रहा है। अब नीतीश कुमार ही जेडीयू के अध्यक्ष हैं। उन्होंने नई समिति में अपने पुराने वफादारों को फिर से जगह दी है। हाल ही में जब वर्चुअल मीटिंग में उन्होंने तल्ख लहजे में गठबंधन के संयोजक का पद लेने से इनकार किया और कहा कि वह किसी पद के भूखे नहीं हैं तो इसे उनकी नाराजगी के तौर पर लिया गया।
नीतीश बिहार में सीट बंटवारे को लेकर भी खुश नहीं बताए जा रहे हैं। राजद के साथ उनकी इस बात पर तनातनी जारी है। बीच में कांग्रेस भी अधिक सीटों की मांग कर गठबंधन में खटपट पैदा करती रही है। नीतीश जब एक दिन पहले अचानक गवर्नर से मिलने राजभवन पहुंच गए तो बिहार का सियासी पारा फिर से चढ़ गया। इसे नीतीश का तीसरा प्रेशर माना जा रहा है।
अखिलेश भी कतार में खड़े
यानी बंगाल में ममता लगातार इंडिया गठबंधन पर प्रेशर बना रही हैं तो बिहार में नीतीश कुमार वही काम कर रहे हैं। बहरहाल इंडिया गठबंधन के नेता दोनों क्षेत्रीय छत्रपों को शांत कराने और साधने की जुगत में लगे हैं। अगर बिहार और बंगाल में इंडिया अलायंस टूटा तो यूपी पर भी उसका बुरा असर पड़ सकता है क्योंकि अखिलेश यादव भी रह-रहकर कांग्रेस को आंख दिखाते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस 20 सीटें मांग रही है, जो अखिलेश को मंजूर नहीं हो रहा है।